एक जवां सुबह के आंगन में

रोज़ सुबह मेरे आसपास एक तेज़ आवाज़ गूंजा करती है .. सफाई करा लो ओ ~ sss ... काँपता शरीर हाथ में फावड़ा ,बगल में पॉलिथीन  की एक थैली। बिला नागा यह आवाज़ कुछ बरसों से सुनाई दे रही है। फावड़ा जो उल्टा पकड़ने पर लाठी का भी काम करता है।
सोचती रह जाती हूँ कौन सफाई कराता होगा इनसे ? कोई तो होगा जिनके यहाँ काम करने के लिए रोज़ आती हैं ? बूढ़ा शरीर जो कभी तबीयत बिगड़ गई तो ?  इस कर्मठता को देख हैरान रह जाती हूँ और अपने निकम्मेपन पर शर्मिंदा भी। सुबह में जीवटता घोलती यह आवाज़ कोयल के मधुर गान से कम नहीं मालूम होती । कितने सीधे -सरल और मेहनती भारतीय जीवन का दर्शन यूं ही चलते -फिरते दे जाते हैं लेकिन हम और हमारे हुक्मरान इनकी तकलीफ़ों से बेख़बर झूठ -मूठ के बड़े-बड़े मुद्दों पर अड़े रहते हैं।
तुमको सलाम है माँ..


 

टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन एकात्म मानववाद के प्रणेता को सादर नमन : ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...

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  2. ऐसे कितने ही किरदार रोज़ प्रेरणा देते हैं पर शायद हम ही प्रेरणा ले नहि पाते ... अच्छी पोस्ट ...

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