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मौत का एक दिन मुअय्यन है नींद क्यों रात भर नहीं आती

मौत  का एक दिन मुअय्यन  है  नींद क्यों रात भर नहीं आती   चचा ग़ालिब इस शेर को भले ही दो सदी पहले लिख गए हों लेकिन आज यह हर हिन्दुस्तानी का हाल हो गया है। डर का साया उसके दिल ओ दिमाग पर खुद गया है।इस हाल में उसे कोई उम्मीद तसल्ली के दो शब्द कहीं नज़र नहीं आते। हमने अपने ध्येय वाक्य 'प्राणी मात्र पर दया' से भी मुँह मोड़ लिया है और आज प्राणवायु के लिए ठोकरे खा रहे हैं। इस बुरे वक्त में प्राण निकल भी  रहे हैं तो भी तसल्ली कहाँ है। दो गज  जमीन का भी संकट है और बैकुंठ जाने के लिए लकड़ी भी रास्ता रोक रही है। श्मशान घाट और  कब्रिस्तान दोनों एक ही कहानी कह  रहे हैं। ऐसे में इंसान के कोमल मन पर रुई के फाहे रखे कौन ? हम सब जानते हैं कौन ,उम्मीद भी बहुत रखी लेकिन अब सिर्फ और सिर्फ हमें करना होगा। किसी से उम्मीद न रखते हुए हमारी प्राचीन विरासत और संस्कारों के हवाले से।  हमें बिना किसी अपेक्षा के बस मदद के हाथ बढ़ाने होंगे। मानव सभ्यता पर ऐसा संकट अभूतपूर्व है। आज़ाद भारत के लिए तो और भी नया क्योंकि  इंसान-इंसान के बीच दूरी को ही जीवन रक्षक कहना पड़ रहा है । इस अजीब समय में हम सब नए नहीं हैं, पिछला

हे कलेक्टर! ये अपमान और एहसान क्यों

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 हम सब अनजाने ही एक महामारी की चपेट में धकेल दिए गए हैं। ऐसी महामारी जिसके बारे  में किसी को भी सही-सही कुछ नहीं पता। सारे विशेषज्ञ इस कोरोना महामारी के लिए ज़िम्मेदार वायरस पर टकटकी लगाए बैठे हैं लेकिन हर रोज़ लगता है जैसे शिकार उनके हाथ आया है फिर अचानक किसी चंचल पंछी की तरह हाथ से छूट भागता है। विशेषज्ञ हाथ मलते रह जाते हैं और हाथ आए पंख या फिर पंछी की ऊष्मा के आधार पर अपनी समझ का गणित बैठाते रहते हैं। ठीक है माना कि इसके अलावा कोई और रास्ता भी नहीं लेकिन आधी-अधूरी जानकारी और शोध के आधार पर यह सख्ती का माद्दा अपनाने का हुनर भला कहां से आता है। शहरों की तालाबंदी ,वैक्सीन को लेकर जोर जबरदस्ती क्यों ? लॉकडाउन ज़िन्दगियों के लिए जानलेवा साबित हो रहे हैं। यह धीमा ज़हर है जो उन्हें मौत के करीब ले जा रहा है और जो मरेंगे उन्हें यह यकीन बिलकुल भी नहीं है कि कोरोना उन्हें मारेगा ही मारेगा। ये तम्बाकू चबाते और नशा पीती  ये बेरोज़गार आबादी जब बीमार होगी  तो उनके लिए अस्पताल होंगे आपके पास ? खबर राजस्थान के धौलपुर से है।  यहाँ के कलेक्टर ने आदेश दिया है कि जब तक यहां के लोग टीका नहीं लगवा लेते तब तक