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खबर और मनोहर कहानियां का फर्क मिटा दिया इस दौर ने

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जेएनयू में अब वेज v/ s नॉनवेज हो गया। रामनवमी पर मांसाहार नहीं परोसना तय किया गया। दूसरा पक्ष भिड़ गया कि दिखाओ कहां कोई लिखित आदेश है। अब ऐसे तमाम मसलो के कहां कोई आदेश-वादेश होते हैं। रामनवमी थी। आराध्य  का दिन था ,इससे बड़ा क्या कोई मौका होता विवाद पैदा करने के लिए। वे लड़ लिए। नए नवेलों की राजनीति चमक गई, उनके बुजुर्ग नेताओं ने भी देख लिया और अख़बार टीवी की कृपा दृष्टि भी हो गई। ये  ऐसे ही चटपटे मसालों की तलाश में रहते हैं लेकिन उन्हें नहीं पता कि ये चटपटे मसाले पुराने हो गए हैं। जाले पड़ गए हैं इनमें,बांस रहे हैं बांसी सामग्रियों के साथ। घिन आती है ऐसे मुद्दों पर और ऐसी सियासत पर। मत खाओ एक दिन। शोर नहीं मचाओगे तो वे भी क्या  कर लेंगे। तुम शोर मचाते जाते हो, वे मामले ढूंढ के लाते जाते है। सब मौजूद है हमारे देश में । वेज -नॉनवेज,पर्दा बेपर्दगी , मूर्त-अमूर्त। सब एक साथ। अब आप इन्हीं पर भिड़ रहे हो ,लड़ रहे हो ,अड़ रहे हो। क्या बेरोज़गारी ख़त्म हो गई ?महंगाई मर गई ?बलात्कारी बेहोश हो गए ? पत्रकार बेखौफ लिख रहे ? गैर ज़रूरी मुद्दों पर आप लड़ रहे हो। आप कायदे के मुद्दे उठाओगे तो वे भी रास्ते पर आ