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मुलाकात प्रेम शिकवा

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शिकवा  मैंने देखा आज सूरज को  बड़ी तसल्ली और करार से  ओझल होता है  पहाड़ नहीं हैं  मेरे घर के आस-पास  बिजली घर के पीछे ही चला गया  कल फिर आने के लिए और तुम? यूं ही अकस्मात् अनायास अचानक कहाँ चले गए मेरे यार जाने कहाँ उदय होने के लिए ? नहीं सोचा इस हरेपन को तुम्हारी ही रश्मियों की आदत है ***   मुलाक़ात तुम्हें याद करते हुए जब घिर आई आँखों में नमी खुद से कहा जाओ मेरी रूह मुलाकात का वक़्त ख़त्म हुआ | *** प्रेम  ऐ शुक्र तेरा शुक्रिया कि आज तमतमाए सूरज पर तुम किसी खूबसूरत तिल की तरह मौजूद थे. क्या हुआ... सुबह ठंडी थी और परिंदे हैरान प्रेम यूं भी लाता है खुशियों के पैगाम सौ साल में एक बार. ***  

चरित्र पर फैसला सुनाना हम अपना फर्ज समझते हैं

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मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सीता को अग्नि में समर्पित कर आत्मसम्मान  की रक्षा की थी हमारे समाज में यह आज भी बुरा नहीं है। चरित्रहीनता पर फैसला सुनाना हम अपना फर्ज समझते हैं। ओगड़सिंह तो बेटी का सर काटकर ही  थाने ले  गया जयवंती और राजेश की आंखों में बेटी की विदाई की नमी के साथ-साथ चमक भी थी। अपने हिसाब से अपनी बेटी को ब्याह देने की चमक। उनकी बातों से झलक रहा था कि वे उनके संस्कार ही थे जो बेटी कहीं 'भटकी' नहीं। करीब के रिश्तेदार भी उन्हें कहने से नहीं चूक रहे थे कि वाह, जयवंती तूने तो गंगा नहा ली। वरना आजकल के बच्चे मां-बाप को नाकों चने चबवा देते हैं। ये निर्मला को ही देख इसकी बेटी ने क्या  कम तांडव किए थे। तू तो बहुत भाग्यशाली है। दरअसल निर्मला की बेटी ने मां-बाप के तय रिश्ते से इनकार कर दिया था। नहीं मानने पर खाना-पीना छोड़, वह उदास बंद कमरों में अपने दिन बिताने लगी थी, लेकिन एक दिन मां-बाप की धमकी ने उसे डरा दिया, 'अगर तू यही सब करेगी तो हम जहर खा लेंगे। मत भूल की तेरी एक छोटी बहन भी है। उस दिन वह बेटी बहुत डर गई थी। खुद पर कष्ट तो वह बरदाश्त कर

आत्मालाप

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अभी तो बहुत कुछ कहना-सुनना बाकी था  क्यों तुमने बीच रास्ते ही जहाज डुबो दिए ढल ही जाती एक रोज़ ये गहरी काली शब्  क्यों तुमने सुन्दर उम्मीद के पंख क़तर दिए   मिल ही जाता हमें हमारे हिस्से का आसमां तुमने क्यों अब्र के हवाले उजाले कर दिए क्या मैं ही वक़्त से हारने लगी थीं मेरी जां ज़ख्म क्यों फिर आज अपने हरे कर दिए नहीं कह पाती खुद से कि यह उसकी रज़ा थी मैंने देखें हैं तूफ़ानी हवाओं में जलते हुए दीए एक-दूजे पर था जब चन्दन-पानी सा यकीं फिर किसने ये रास्ते हमारे जुदा कर दिए अभी तो बहुत कुछ कहना-सुनना बाकी था  क्यों तुमने बीच रास्ते ही जहाज डुबो दिए अब्र-बादल शब्-रात   

आगत का गीत

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सत्ताईस की वह सुबह हैरत भरी थी  एक आँख सूखी और दूसरी गीली थी  एक ज़िन्दगी से चमकती  और दूसरी विदा गीत गाती  हुई   चमकती आँख ने हौले से भीगी आँख को देखा  मानो पी जाना चाहती हो उसके भीतर की नमी  इस बात से बेखबर  कि फिर नमी ही उसकी मेहमां होगी. आख़िर, ज़िन्दगी  से चमकती आँखे  क्यों विदा गीत गाना चाहती थीं  वह चौंक गयी ख्व़ाब से  ...और देखा कि उसकी तो दोनों ही आँखें  एक ही गीत गा रही हैं  आ गत का गीत ....