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फ़रवरी, 2023 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

इनके तंज उनका तंत्र

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 माहौल में फाग के रंग घुलने लगे हैं और समूचा उत्तर भारत इस समय बौराने की मुद्रा में आ जाता है। हंसी ठठ्ठे होने लगते हैं, होली की ठिठोली भी होती है और होता है राग रंग। ऐसे में कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी पवन खेड़ा की ज़बान फिसल गई तो क्या गज़ब हो गया लेकिन गज़ब तो हो गया। उनके खिलाफ आपराधिक साजिश, माहौल बिगाड़ना , देश की एकता पर चोट जैसी तमाम  धाराएं लग गई। अब कोई देश की संस्कृति को ही नहीं समझे और व्यंग्य को साज़िश मान ले तब तो फिर घर-घर अपराधी होने लगेंगे, कवि सम्मेलनों से हास्य का रस उड़ जाएगा। हो सकता है कि पवन खेड़ा  की ज़बान जानबूझ कर फिसली हो तब भी गालियां और अपशब्द सहकर मज़बूती के साथ उभरने वालों को यहाँ भी अपना दिल दरिया रखना चाहिए था। तंज तो एक और भी हुआ था क्यों नहीं नेहरू का नाम लगाते। यह  देश की संस्कृति से जुदा था। असम के दीमा हसाओ ज़िले की मुस्तैद पुलिस 24 घंटे के भीतर पवन खेड़ा को पकड़ने असम के दीमा हसाओ ज़िले से आ गई। ठीक उस वक्त जब वे कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए दिल्ली से रायपुर की ओर उड़ने वाले थे।  गिरफ्तारी बताती है कि सत्ता को अब हास-परिहास बिलकुल बर्दाश्त न

विपक्षी एकता मेंढकों को तराज़ू में तौलने सा मुश्किल !

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क्या इस समय विपक्ष की एकता मेंढकों को तराज़ू में तौलने सा मुश्किल काम है? क्या क्षेत्रीय दल मसलन, तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी), आम आदमी पार्टी और समाजवादी पार्टी कांग्रेस की अगुवाई में दिक्कत महसूस कर रहे हैं? क्या विपक्ष नहीं समझ रहा है कि अगर इस बार बात नहीं बनी तो फिर कभी नहीं वाले हालत में वे ला दिए जाएंगे? क्या शिवसेना की जो हालत चुनाव आयोग ने अभी कर दी है, वैसी ही आगे किसी और दल की  हो सकती है? क्या कांग्रेस शेष विपक्षी दलों से दूरी बनाकर चल रही है? इन सारे सवालों के जवाब यदि हां हैं तो  विपक्षी एकता फिर दूर की कौड़ी है। 2024 की हार का ठीकरा किसी और पर फोड़ने की बजाय अभी से बिखरे हुए विपक्ष को अपने सर पर फोड़ लेना चाहिए क्योंकि इस वक्त जो जनता देख रही है वह बिखरा हुआ विपक्ष है। सीटों का गणित और जनता के सामने सरकार के विरोध  की सही भूमिका नहीं बनी तो फिर बदलाव केवल ख़याली पुलाव बन कर रह जाने वाला है। बोफोर्स तोप के हमले जो राजीव गांधी के खिलाफ विपक्ष ने किए थे वैसा अडानी मामला कर सकता है।  हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने सारा कच्चा-चिटठा उपलब्ध करा दिया है और शेष किस्सा अडानी की कंपनियों के गिरते

असम सरकार ने क्यों मचाया है हाहाकार

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एक समय था जब असम से पूरे देश में संगीत की स्वर लहरियां आती थी। लोहित के किनारों से गूंजती हुई वो मधुर आवाज़ सबको भावविभोर कर देती, बहती नदियों का सुर खुद ब खुद चला आता। फिर कवि की कविता में बुना  सवाल आता  कि ओ गंगा तुम बहती हो क्यों। भूपेन हजारिका की आवाज़ ने जैसे हर हिंदुस्तानी को सम्मोहित कर दिया था। फिर एक दिन वह आवाज़ सो गई।  आवाज़ क्या सोई असम से आते हुए सुर भी पहले शोर और फिर दर्द में बदलने लगे। घृणित सियासी बयानों का अड्डा हो गया यह कोमल प्रदेश। कभी आबादी को खोजो, उसे गिनो और भगाओ के बयान तो कभी उनके लिए तैयार हो गए डिटेंशन कैंपों का ब्योरा । इन दिनों असम से जो सुनाई दे रहा है वह वहां के  लोगों की सिसकियां और चीत्कार हैं। जिन लड़कियों की शादी कानूनी उम्र से पहले हो गई ऐसे बाल विवाह असम में पुलिसिया धरपकड़ का कारण बन गए हैं। अब तक ढाई हज़ार से ज़्यादा गिरफ्तारियां हो चुकी हैं। पुजारी, मौलवी, पादरी  सब पर शिकंजा है।  सबसे ख़राब हालत कम उम्र में ब्याही गई लड़कियों के पिता और पति की हैं।  कई जेल में हैं और कइयों  पर गिरफ्तारी की तलवार लटकी है। यह डर इतना बड़ा है कि गर्भवती लड़कियां अस्पताल

मेरे क़त्ल पे आप भी चुप हैं अगला नंबर आपका है

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   बीबीसी के ख़िलाफ़ आयकर सर्वे की कार्रवाई और सरकार के प्रवक्ताओं की लगातार जारी कमेंट्री को अगर सुन लिया जाए तो इरादे बहुत हद तक साफ हो जाते हैं कि ऐसा दंडित करने की मंशा से किया गया है। बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री 'इंडिया: द मोदी क्वेश्चन' से खासी नाराज़गी है वरना इस समय इसे 'भ्रष्ट और बकवास कॉरपोरेशन' करार दिए जाने की कोई ज़रूरत नहीं थी। बुधवार को उपराष्ट्रपति स्वयं भी सरकार के बचाव में आकर बिना बीबीसी का नाम लिए बोले कि एक वैश्विक मीडिया हाउस है जो दस साल से भारत की विकास गाथा को रोक रहा है। अगर सरकार की नीयत वाकई आय संबंधी गड़बड़ियों की जांच करना ही था, जैसा कि कहा जा रहा है, तो इस नरेटिव को स्थापित करने की कोई दरकार नहीं थी। इससे पहले भी ऐसे बेशुमार उदाहरण देखे गए हैं जब सरकार की अपेक्षा से अलग कोई रिपोर्ट आई हो और सरकार ने अपने पिंजरों के तोतों को उनके पीछे नहीं लगाया हो। नियम-कायदे उस वक्त धुंधले पड़ जाते हैं जब मुख्य धारा का मीडिया प्रति दिन उन्मादी बहस को छेड़ रहा होता है या इतिहास को तोड़ -मरोड़ रहा होता है।  बड़े मीडिया संस्थानों से लेकर हर वह छोटा पत्रकार सरकार की

तू एक ज़लील सी गाली से बेहतरीन नहीं

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  राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव में लोकसभा और राज्यसभा में सदस्यों ने जो वक्तव्य दिए वे ऐसे मालूम होते थे जैसे 'तुम कहो खेत तो मैं कहूं खलिहान'। कई बार लगा कि जैसे फ़र्ज़ी रण लड़े जा रहे हों। फिर बीच-बीच में बड़े शायरों की नर्म सी शायरियों को लाया जाता था। पक्ष-विपक्ष दोनों के सदस्य कई बड़े कवियों की आड़ में कह तो बहुत कुछ कह रहे थे लेकिन लगता यही था कि इस ओर से आएगा तो उन पर सही होगा और उस ओर से आएगा तो इन पर सही हो जाएगा। विपक्ष के वक्तव्य में सब तरफ़ अंधेरा दिखाई दे रहा था तो सत्ता पक्ष को सब कुछ सूरज की तरह चमकीला और उज्ज्वल। चांद, तारों और जुगनुओं का तो जैसे कोई वजूद ही नहीं था यहां। सत्तापक्ष की जिम्मेदारी बड़ी होती है और उम्मीद थी कि प्रधानमंत्री का भाषण देश की हकीकत से रूबरू कराता हुआ, अपने शासन के गुण-दोषों की गणना कराते हुए राष्ट्रपति को धन्यवाद देगा। उनका संबोधन सुनते हुए लगा कि देश में हरेक परिवार के पास अपना पक्का घर और हर महिला धुंए से  मुक्त होकर मुस्कुराते हुए खाना बना रही है। ... और तो और उसके महीने के कठिन दिनों के लिए सैनिटरी नैपकिन भी प्रधानमंत्री ने

एक अमीर का कारोबार और सरकार

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आम तौर पर यह समय आम बजट के बाद सरकार से सवाल-जवाब का होता ,उसे घेरने का होता लेकिन हिंडनबर्ग की रिपोर्ट ने अडानी समूह के कारोबार की कलई खोलकर ऐसा भूचाल ला दिया है कि संसद बजट भूलकर सिर्फ अडानी की कंपनियों की 'बजट-बांट और उसके लेनदेन की बात कर रही है। बिखरा हुआ विपक्ष एकजुट होकर एक सुर में जांच की मांग कर रहा है। किसी की राय में यह बोफोर्स और टू जी से भी बड़ा घोटाला है तो किसी की राय में सरकार की मदद से इस समूह के शेयर फुलाए गए और वे दुनिया के तीसरे अमीर बन गए। एक भारतीय होने के नाते हम तो इस अमीरी पर भी फूल ही रहे थे कि अचानक अमरीकी रिसर्च फर्म हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आ गई।रिपोर्ट क्या आई अडाणी दुनिया के तीसरे अमीर से बीस में भी नहीं रहे । समूह का मार्केट शेयर धड़ल्ले से गिरने लगा और एलआईसी के साथ उन भारतीय बैंकों की हालत भी कमज़ोर दिखाई देने लगी जिन्होंने अडाणी को भारी क़र्ज़ दे रखा था। देश की सरकार का विश्वास इन पर था तो पूरी दुनिया के कई काम भी इस समूह के जिम्मे आते जा रहे थे। अब धीरे-धीरे वे देश आंखें दिखा रहे हैं। सरकार के प्रवक्ता पहले तो लगातार अडाणी समूह को रक्षा कवच पहनाते रहे फिर