इनके तंज उनका तंत्र
माहौल में फाग के रंग घुलने लगे हैं और समूचा उत्तर भारत इस समय बौराने की मुद्रा में आ जाता है। हंसी ठठ्ठे होने लगते हैं, होली की ठिठोली भी होती है और होता है राग रंग। ऐसे में कांग्रेस मीडिया सेल के प्रभारी पवन खेड़ा की ज़बान फिसल गई तो क्या गज़ब हो गया लेकिन गज़ब तो हो गया। उनके खिलाफ आपराधिक साजिश, माहौल बिगाड़ना , देश की एकता पर चोट जैसी तमाम धाराएं लग गई। अब कोई देश की संस्कृति को ही नहीं समझे और व्यंग्य को साज़िश मान ले तब तो फिर घर-घर अपराधी होने लगेंगे, कवि सम्मेलनों से हास्य का रस उड़ जाएगा। हो सकता है कि पवन खेड़ा की ज़बान जानबूझ कर फिसली हो तब भी गालियां और अपशब्द सहकर मज़बूती के साथ उभरने वालों को यहाँ भी अपना दिल दरिया रखना चाहिए था। तंज तो एक और भी हुआ था क्यों नहीं नेहरू का नाम लगाते। यह देश की संस्कृति से जुदा था। असम के दीमा हसाओ ज़िले की मुस्तैद पुलिस 24 घंटे के भीतर पवन खेड़ा को पकड़ने असम के दीमा हसाओ ज़िले से आ गई। ठीक उस वक्त जब वे कांग्रेस अधिवेशन में भाग लेने के लिए दिल्ली से रायपुर की ओर उड़ने वाले थे। गिरफ्तारी बताती है कि सत्ता को अब हास-परिहास बिलकुल बर्दाश्त न