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सच का सूत

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दिल कहता है  तुम लिखो  फूल, पत्तों, परिंदों, प्रेम की बात  दिमाग़ कहता है  लिखो तकलीफ़  लिखो भीड़ में घिरने की बात  लिखो 'एनआरसी'  के पन्नों में छिपे नश्तरों को  लिखो इंसान को इंसान से  मिलने पर रोक की दास्तान  को  लिखो संवाद के विवाद में  बदलने के मंज़र को  लिखो उस नाम को  जिसे बताने में उसे डर लगता है  लिखो बच्चे को मोहल्ले से बाहर भेजती हुई  माँ के कांपते कलेजे को और बाप की दुविधा को  लिखो  कि वह बच्चे को ऐसा मंतर पढ़ाना चाह रहे जो मुसीबत में काम आए।  क्या कहा  नहीं लिखोगी  तो मत लिखो  तुम किसी क़ाबिल नहीं  दिलो दिमाग़ कुंद हैं तुम्हारे  तुम सो जाओ  जो ज़िंदा रही  तो ख़्वाब में ढूंढ लेना  परिंदो की परवाज़  और ओस की बूंदों से  पवित्र इरादों को।  शायद न मिलें वहां भी  स्वप्न को सवार होने के लिए  भी सच का एक सूत तो चाहिए ही। 

ये सुबह फ़ीकी है निस्तेज है

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बहुत इंतज़ार के बाद आख़िर सुबह सवा आठ बजे फ़ोन किया।  यह आशंका में घिरा फ़ोन था। मैंने पूछा- "नमस्कार, सब ठीक ?" उधर से डूबी हुई आवाज़ आई -"माँ expire हो गई हैं आज नहीं आ पाऊंगा। "मेरी आवाज़ भी जैसे बैठ गई फिर भी बोली -ओह माँ को हमारे भी श्रद्धा सुमन ,मैंने  डरते हुए ही कॉल किया था क्योंकि आप ख़ुद इतने नियमित और समर्पित हो कि ... इससे आगे कुछ कह नहीं पाई। कहना चाहती थी कि आप जब तक ना चाहो, ना आना। ये पैसे भी महीने  के बिल में जोड़ लेना। आप कहाँ रहते हो ? पूछना चाहती थी कि माँ को क्या हुआ ,कोई बीमारी थी लेकिन न कुछ पूछा ना कहा। सुबह जैसे अँधेरा दे गई। photo credit : udaipur times.com ये हमारे न्यूज़पपेर हॉकर हनुमान सैनी जी हैं जो बरसों से हमें अख़बार दे रहे हैं। मुंह अँधेरे अख़बार दे जाने की आदत में पता नहीं कितना हिस्सा क़ायदे का है। सामने के मकानों की बालकनी में अख़बार इतने सटीक ढंग से उछालते हैं कि कभी  नहीं चूकते। ये अख़बार बंद करना है और दूसरा शुरू करना है, इस काम में  भी नहीं। भुगतान लेते समय भी  ये अनुमान लगा के चलते हैं कि कितनी रेज़गारी उन्हें देनी पड़ सकती है। थोड़े

आधा विकास पूरे मुद्दे

भंवर के छोटे भाई की नौकरी जा चुकी है,नई मिल नहीं रही। नया निवेश नहीं ,नई कंपनी नहीं, नई पीढ़ी को भी रोज़गार नहीं। नतीजतन हर तरफ़ निराशा। शांत ... निराशा नहीं। किस बात की निराशा। भंवर को भी निराशा थी लेकिन दिमाग़ के किसी हिस्से में सुकून भी था। उसे शायद यह अहसास करा दिया गया था। असम की NRC से घुसपैठियों से हमेशा के लिए मुक्ति के साथ ही  कश्मीर की एकमात्र मुसीबत धारा 370 अब धाराशाई है।  कश्मीर अपने क़रीब आ गया है लेकिन  कश्मीरियों के बारे में अभी मत पूछना। असम जैसा कढ़ाव अभी और राज्यों में भी तो सुलगाना है। सब को साबित करने में लगा दो कि वे यहीं के हैं। अयोध्या में अपना भव्य मंदिर भी तो बनेगा। मत पूछना कि मंदिर मुद्दे से तहज़ीब का  कितना  ध्रुवीकरण हुआ । जो भी हो आधी रोटी खाएंगे मंदिर वहीं बनाएंगे। आधी रोटी खाएंगे धारा 370 हटाएंगे।  GDP भी आधी हो गई। होने दो। नाहक़  ही नौकरी-नौकरी का राग अलाप रहे हो।  पूरा ध्रुवीकरण भी तो कभी नहीं हुआ था। हम सब काम करंगे। जो भी कहा था सब। तुम आधे पेट के साथ तैयार रहना। घटने दो सब। स्वाभिमान नहीं घटना चाहिए। भंवर ख़ुश था कि अब किसी से डरना नहीं है ,वह सोने की को