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पति को माता-पिता से अलग करना पत्नी की क्रूरता और पति के सम्बन्ध क्रूरता नहीं

लगभग एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था कि पति को माता-पिता से अलग करना पत्नी की क्रूरता है और  हाल ही एक निर्णय आया है कि पति का विवाहेत्तर संबंध हमेशा क्रूरता नहीं होता, लेकिन यह तलाक का आधार हो सकता है। क्या ये दोनों ही फैसले स्त्रियों के सन्दर्भ में जड़वत बने रहने की पैरवी नहीं है? लगभग एक महीने पहले सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला आया था कि पति को उसके माता-पिता से अलग करना पत्नी की क्रूरता है। दो न्यायाधीशों की खंडपीठ ने अपने फैसेले में जो कहा वह इस प्रकार है-सामान्य परिस्थितियों में उम्मीद की जाती है कि पत्नी शादी के बाद पति का घर-परिवार संभालेगी। कोई नहीं सोचता कि वह पति को अपने माता-पिता से अलग करने की कोशिश करेगी। यदि वह पति को उनसे दूर करने की कोशिश करती है तो जरूर इसकी कोई गंभीर वजह होनी चाहिए लेकिन इस मामले में ऐसी कोई खास वजह नहीं है कि पत्नी पति को उसके माता-पिता से अलग करे सिवाय इसके कि पत्नी  को खर्च की चिंता है। आमतौर पर कोई पति इस तरह की बातों को बर्दाश्त नहीं करेगा। जिस माता-पिता ने उसे पढ़ा-लिखा कर बड़ा किया है उनके प्रति भी उसके कर्त्तव्य  हैं। सामाजिक

धूप पर कोई टैेक्स नहीं लगा है

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इमेज क्रेडिट -उपेंद्र शर्मा, अजमेर  भूल जाइये तमाम रंज ओ गम मजा लीजिए मौसम का कि सर्दी की दस्तक पर कोई बंदिश नहीं है धूप पर कोई टैेक्स नहीं लगा है धरा ने नहीं उपजी है कोई काली फसल रेत के धोरे भी बवंडर में नहीं बदले  हैं पेड़ों ने छाया देने से इंकार नहीं किया है परिंदों की परवाज में कोई कमी नहीं है आसमान का चांद अब भी शीतल  है दुनिया चलाने वाले ने निजाम नहीं बदला है फिर हम क्यों कागज के पुर्जों में खुद को खाक कर रहे हैं शुक्र मनाइये कि सब कुछ सलामत है नदी की रवानी भी बरकरार है कच्ची फुलवारी भी खिलने को बेकरार है करारे नोटों का नहीं यह हरेपन का करार है भूल जा तमाम रंज ओ गम कि कुदरत अब भी तेरी है ये बहार अब भी तेरी है हुक्मरां कोई हो हुकूमत केवल उसकी है और बदलते रहना उसकी ताकत भूल जाइये तमाम रंज ओ गम मजा लीजिए मौसम का किसी के काला कह देने से कुछ भी काला नहीं होता  ... और सफ़ेद कह देने से भी नहीं ।