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सितंबर, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है

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रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है बहुत करीब बैठे भी बेगाने से  हैं एक  पीली चादर बात करती हुई सी है बाल्टी का रंग भी  बोल पड़ता है कई बार वह बांस की टूटी ट्रे भी  सहेजी हुई  है  बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है   उन खतों के मुंह सीले हुए से  हैं वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं किसी  के खामोश होने से कितनी चीज़ें बोलती हैं मुसलसल मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे इतना कि हलक सूख जाए और ये सारी बोलियाँ थम जाए मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं तुम बोलो या फिर मुझसे ले लो इन आवाज़ों को समझने का फ़न.

तुम्हारे बाजू में

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तुम नहीं थे तुम थे तुम नहीं हो  तुम हो तुम्हारे होने या न होने के बीच मैं कहाँ हूँ ठीक वहीँ, जहाँ तुम हो तुम्हारे बाजू में   . मैंने तुम्हें न खोया न पाया न लिबास के रंग बदले इस आने - जाने पर न धातुएं ओढ़ी  न माथा  ही रंगा फिर ये किस रंग  में रंगी हूँ मैं? तेरा है ये  रंग तेरी रूह  पैबस्त है  मेरे भीतर ...और रूह कहीं नहीं आती-जाती जिस्म आते -जाते हैं |

हिंदी में ही करता है साइकल का पहिया पानी की कुल्लियां

 हिदी दिवस पर भी देरी का शिकार है मेरी यह पोस्ट ,उम्मीद है यह आपके कीमती समय का शिकार नहीं करेगी वैसे , कोई इरादा नहीं है कि हिंदी ही बोलने पर जोर दिया जाए या फिर अंग्रेजी की आलोचना की जाए। हिंदी बेहद काबिल और घोर वैज्ञानिक भाषा है जो खुद को समय के साथ कहीं भी ले चलने में सक्षम है। क से लेकर ड तक बोलकर देखिए तालू के एक खास हिस्से पर ही जोर होगा। च से ण तक जीभ हल्के-हल्के ऊपरी दांतों के नीचे से सरकती जाएगी और व्यंजन बदलते जाएंगे। ट से न तक के अक्षर तालू के अगले हिस्से से जीभ लगने पर उच्चारित होते हैं। सभी व्यंजनों के जोड़े ऐसे ही विभक्त हैं। हिंदी इतनी उदार है कि उसने हर दौर में नए शब्दों और मुहावरों को शामिल किया। अरबी से तारीख और औरत ले लिया तो फारसी से आदमी आबादी, बाग, चश्मा और चाकू। तुर्की से तोप और लाश, पोर्चूगीज से पादरी, कमरा, पलटन और अंग्रेजी के तो अनगिनत शब्दों ने हिंदी से भाईचारा बना लिया है। डॉक्टर, पैंसिल, कोर्ट, बैंक, होटल, स्टेशन को कौन अंग्रेजी शब्द मानता है। अंग्रेजी हमारी हुई, हम कब अंग्रेजी के हुए। हिंदी भाषा पर इतने फक्र की वजह, बेवजह नहीं है। हाल ही जब अंग्र

गोविंद से पहले

इससे पहले की हिंदी दिवस दस्तक दे ज़रूरी है कि शिक्षक दिवस पर लिखा आपसे साझा कर लिया जाए. देरी से पोस्ट करने की मुआफी के साथ तीसरी-चौथी कक्षा में हिंदी की पाठ्य पुस्तक  में एक कथा का शीर्षक  था आरुणी की गुरुभक्ति। वह ऋषि धौम्य के  यहां शिक्षा प्राप्त करता था। एक रात खूब बारिश हुई। आश्रम पानी से भर न जाए यह देखने के लिए वह खेतों पर गया। ऋषि धौम्य गहरी नींद में थे। आरुणी ने देखा कि खेत की मेड़ का एक हिस्सा टूट रहा है। उसने बहुत कोशिश की मेड़ की मिट्टी को फिर से जमा दे लेकिन तेज पानी उसे बहा ले जाता था। आरुणी पानी रोकने के लिए वहीं लेट गया। मेड़ पर लेटते ही पानी का बहाव रुक  गया। तड़के जब ऋषि की आँख  खुली तो आरुणी को ना पाकर वे चिंतित हुए। खेत में ढूंढ़ते हुए पहुंचे तो आरुणी वहां तेज बुखार के साथ सोया हुआ था। गुरुजी को सामने पाकर उसने पैर छू लिए और गुरुजी ने यह सब देख उसे गले से लगा लिया। क्या था यह? शिष्य को मिली शिक्षा या शिक्षक के प्रति उपजी स्वत:स्फूर्त श्रद्धा। दरअसल, ये दोनों थे। शिक्षक  का मान करना ही है , इसे लेकर कोई दुविधा नहीं थी लेिकन श्रद्धा, भक्ति के भाव निजी तौर पर

नकली है कविता मेरी

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  मौत तक नहीं पहुँचती कविता मेरी हाथ कांपते हैं मेरे डर जाती है देह मेरी उस मंज़र को दोहराने में  शांत और निश्छल मुकाम नहीं छूना चाहती कविता मेरी उसे ज़िन्दगी और मुस्कान चाहिए ऐसी कुर्बत चाहिए कि हवा भी ठहर जाए उसे आंसू और मातम से डर लगता है चुप्पी उसे घेरती है  सन्नाटा चीरता है  मौन तोड़ देता है... नकली है कविता मेरी वह सिर्फ मोहब्बत के तराने गाती है.