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अगस्त, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

लव जी हद

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लव जी हद, सिंधी भाषा में  इसके मायने हुए प्रेम की हद तय करना और कुछ लोग इस काम में इन दिनों बढ़ -चढ़कर लगे हुए हैं।  सोमवार की शाम  times now के एंकर अर्णव गोस्वामी ने एक बहस में भाजपा प्रवक्ता से तीन बार पूछा कि 'लव जिहाद'  क्या है फैक्ट या फिक्शन तो उन्होंने तीनों बार बहुत कुछ कहा लेकिन एक बार भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया 'लव जिहाद' और 'प्रेम युद्ध' इन दो शब्द युग्मों से इन दिनों  खूब पाला पड़ रहा है। प्रेम, मोहब्बत, लव ये अपने आप में मुकम्मल शब्द हैं इनके साथ जब कुछ और जुड़ता है तो तय मानिए मामला संदिग्ध है। इरफाना पढ़ी-लिखी समझदार लड़की है। लिखने का शौक उन्हें अखबार के कार्यालय तक ले गया। वहीं बेहद काबिल लेखक वसंत से उनकी मुलाकात हुई। मुलाकातें  क्या होती दुनिया के तमाम मुद्दों पर दो व्यक्ति विचारों की एेसी रेल बनाते कि वक्त का पता ही नहींं चलता। दोनों को लगा कि हम साथ रहने के लिए ही बने हैं। वसंत ने कहा न तुम्हें अपना धर्म बदलने की जरूरत है, न मुझे। क्या हम शादी कर सकते हैं? लड़की बोली ये तो मुश्किल है। काज़ी दो मुसलमान का निकाह कराते हैं और पंडित दो हिंदुओं

केवल पूछने से काम नहीं चलेगा

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बेशक, लाल किले की प्राचीर से दिया गया वह भाषण बिना पढ़े, बिना अटके, बिना बुलेट प्रुफ के धाराप्रवाह दिया गया था। बंधेज का लाल-हरा साफा इस भाषण को अतिरिक्त गरिमा प्रदान कर रहा था। जोधपुर के त्रिपोलिया बाजार से ऐसे छह साफे मंगवाए गए थे जिनमें से एक को चुना गया। साथ ही एक कलाकार भी दिल्ली भेजा गया जो साफा बांधने की कला में माहिर था। साफे से जहां राजस्थान का गौरव जगजाहिर था, वहीं राजस्थान का प्रतिनिधित्व सरकार में ना के बराबर होना भी एक बड़ा सवाल। खैर, प्रधानमंत्री के इस भाषण को स्तंभकार  शोभा डे   ने सिंघम की दहाड़ का नाम दिया, जिसमें सब कुछ हिन्दी फिल्मों की तरह लाउड-सा था। संवाद, एक्शन, प्रेम सभी कुछ जरूरत से ज्यादा। किसी ने कहा लगातार बढ़ते दुष्कर्मों के सन्दर्भ में यह राजनैतिक प्रतिबद्धता  का मामला न होकर   सोशल इंजीनियरिंग का पार्ट था, जिसमें प्रधानमंत्री समाज के बदलने की बात कर रहे थे, जबकि अपने चुनावी भाषणों में उन्होंने देश के तमाम हालात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने दावा किया था कि एक सशक्त सरकार और व्यक्ति के आते ही सबकुछ बदल जाएगा। प्रधान सेवक (उन्होंने खुद को यह

क्यों दें मेहनत की कमाई इस निकम्मे सिस्टम को

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पंद्रह अगस्त को हमारे आजाद देश के  67 साल पूरे होने वाले हैं। हम सब इस आजादी का खूब एहतराम करते हैं, अपने पुरखों के त्याग को याद करते हैं, अपने शहीदों के आगे सिर झुकाते हैं, लेकिन एक सवाल अकसर जेहन में उठता है कि क्या ऐसे ही भारत के लिए जिंदा लोगों ने अपना सब-कुछ कुर्बान किया था? क्या हम सही दिशा में हैं? जवाब तो नहीं आता, लेकिन एक छटपटाहट सामने आती है। यह अंतहीन बेचैनी कभी-कभी गुस्से और दुख को ऐसा पसरा देती है कि लगता है कि ये वो सुबह तो नहीं। मेरे शहर जयपुर    में  बीते एक पखवाड़े की तीन घटनाएं आपकी नजर-                 गांधी नगर स्थित पोस्ट ऑफिस में शुक्रवार सुबह साढ़े ग्यारह का वक्त। 'भाई साहब राखी पोस्ट करनी हैं, अजमेर। पहुंच तो जाएगी ना दो दिन में!' मेरा सहज सवाल था। 'सोमवार को पहुंचेगी।'डाक बाबू ने असहज-सा उत्तर दिया 'लेकिन विभाग तो दावा करता है कि स्पीड पोस्ट चौबीस घंटे में पहुंचाता है, फिर यह तो एक ही स्टेट का मामला है।' मैंने कहा। 'आप तो कुरिअर कर दो मैडम वो ही अच्छा  है।'डाककर्मी ने लिफाफा लौटाते हुए कहा। वाकई प्राइवेट कुरिअर से राखी अगले ही

नग्नता अपराध नहीं

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       क्या  एक निर्वस्त्र तस्वीर इस कदर विवादित और तकलीफदेह हो सकती है? नागपुर की एक अदालत में आमिर के पोस्टर के खिलाफ याचिका दायर हो गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पोस्टर अश्लील है और यौन हिंसा को बढ़ावा देता है। एक बिना कपड़ों की देह पर €क्या  शोर मचाना। देह नहीं उसका रवैया, आंखें, बॉडी लैंग्वेज तय करती हैं अपराध की तीव्रता। लखनऊ के मोहनलाल गंज क्षेत्र में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दो बच्चों की मां कृष्णा की नग्न देह में भला क्या  अपराध छिपा हो सकता है? वह तो फेंक दी गई थी, दुष्कर्म के बाद। अपराध का भाव जिनके भीतर था उन्होंने एक कपड़ा भी नहीं डाला उस देह पर।       आमिर खान की फिल्म  पीके के पोस्टर के बहाने हमारी उस मानसिकता की पोल खुल गई है, जो नग्नता को देखकर हायतौबा मचाने लगती है। अपराध वो है, जब एक स्त्री को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया जाता है, एक खौफ पैदा किया जाता है कि संभल जाओ अगर जो मर्यादा लांघी, हम तु्हारा भी यही हश्र करेंगे। हम उघाड़ेपन को लेकर बेहद अजीब समाज हैं। छोटे कपड़े पहने विदेशी सैलानियों का हम सड़क पर चलना मुश्किल कर देते हैं। अपराधबोध इतना ज़्यादा है