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गुलाबो सिताबो -अचार तो है लेकिन चटखारे नहीं

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  फत्तो 95, माफ़ कीजियेगा गुलाबो सिताबो का ये नाम ज़्यादा मुफ़ीद होता। क्लाइमेक्स में केक पर लिखे यही शब्द होठों पर मुस्कान ला देते हैं। कहना मुश्किल है कि इस कठिन कोरोना काल में इतने बड़े सितारों की इस फ़िल्म को छोटी-छोटी स्क्रीन पर डिजिटल रिलीज़ करना डायरेक्टर और कलाकारों को कैसा लगा होगा। बतौर दर्शक हम अपनी बात करें तो सिनेमा हॉल में देखने के बाद छोटे पर्दे पर फ़िल्म दोबारा देखने में तो आनंद आता है लेकिन गुलाबो  सिताबो   को देखने के बाद थिएटर में दोबारा जाएंगे  या  नहीं तो इसका जवाब ना ही होगा। अमिताभ बच्चन ने शूजित सरकार की गुलाबो   सि ताबो में झंडे गाड़ दिए हैं। मिर्ज़ा के  इस लालची क़िरदार में वे इस क़दर लालची पाए गए हैं कि कोई भी मिसाल कम होगी। जनाब अपनी ही हवेली का क़ीमती सामान कौड़ियों के दाम में बेचते जाते हैं।  फ़ातिमा महल लखनऊ की बड़ी-सी हवेली का नाम है जिसमें कई किराएदार मामूली से किराए के एवज़ में रहते हैं। हवेली मिर्ज़ा की ही तरह जर्ज़र होते हुए भी दमख़म से खड़ी है। यदा-कदा उसकी भी दीवारें ढहती रहती हैं ज्यों मिर्ज़ा भी गिरने से पहले अक्सर संभल जाते   हैं। बांके  (आयुष्मान खुराना

कोई नेता है देश में

लोग महामारी में  सांस वेंटीलेटर में  लोकतंत्र बाड़ों में  अर्थतंत्र गर्त में  समाज दर्द में  चीन सरहद में   नेपाल नक़्शे में .. कोई नेता है देश में ??

फ़त्तो के मिर्ज़ा में न ग़ुलाब हैं न सितारे

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  फत्तो 95, माफ़ कीजियेगा गुलाबो सिताबो का ये नाम ज़्यादा मुफ़ीद होता। क्लाइमेक्स में केक पर लिखे यही शब्द होठों पर मुस्कान ला देते हैं। कहना मुश्किल है कि इस कठिन कोरोना काल में इतने बड़े सितारों की इस फ़िल्म को छोटी-छोटी स्क्रीन पर डिजिटल रिलीज़ करना डायरेक्टर और कलाकारों को कैसा लगा होगा। बतौर दर्शक हम अपनी बात करें तो सिनेमा हॉल में देखने के बाद छोटे पर्दे पर फ़िल्म दोबारा देखने में तो आनंद आता है लेकिन गुलाबो  सिताबो   को देखने के बाद थिएटर में दोबारा जाएंगे  या  नहीं तो इसका जवाब ना ही होगा। अमिताभ बच्चन ने शूजित सरकार की गुलाबो   सि ताबो में झंडे गाड़ दिए हैं। मिर्ज़ा के  इस लालची क़िरदार में वे इस क़दर लालची पाए गए हैं कि कोई भी मिसाल कम होगी। जनाब अपनी ही हवेली का क़ीमती सामान कौड़ियों के दाम में बेचते जाते हैं।  फ़ातिमा महल लखनऊ की बड़ी-सी हवेली का नाम है जिसमें कई किराएदार मामूली से किराए के एवज़ में रहते हैं। हवेली मिर्ज़ा की ही तरह जर्ज़र होते हुए भी दमख़म से खड़ी है। यदा-कदा उसकी भी दीवारें ढहती रहती हैं ज्यों मिर्ज़ा भी गिरने से पहले अक्सर संभल जाते   हैं। बांके (आयुष्मान खुराना) आ