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नवंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

फक्र के फूल

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हेमंत करकरे ने सीने पर गोलियां खाई जिस पर नेता तोहमत लगा रहे थे कि वे पूर्वाग्रही हैं करकरे अगर पूर्वाग्रही हैं तो सारा देश ऐसा हो जाए । सबसे पहले ये नेता ... जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है ये जान तो आनी जानी है इस जां की तो कोई बात नहीं बकौल फैज़ अहमद फैज़ मुंबई मोर्चे पर अपना सर्वस्व त्याग करने वाले जांबाजों की शान निस्संदेह सदियों तक सलामत रहेगी। यह रुखसती फक्र के साथ है। क्रंदन ,विलाप ,जुगुप्सा भी है लेकिन नेताओं के लिए । हेमंत करकरे ,संदीप उन्नीथन और गजेन्द्र सिंह बेहद प्रखर ,पढ़े -लिखे ,फिट , काबिल और अपने काम में निष्णात रहे । ए टी एस प्रमुख चाहते तो नीचे आर्डर पास कर सकते थे लेकिन उन्होंने मोर्चा संभाला । अपेक्षाकृत कमज़ोर बुलेटप्रूफ ,हेलमेट जो उनका नहीं था और रायफल के साथ मैदान में कूद पड़े । सीने पर गोलियां खाई जिस पर नेता तोहमत लगा रहे थे कि वे पूर्वाग्रही हैं । करकरे अगर पूर्वाग्रही हैं तो सारा देश ऐसा हो जाए । सबसे पहले ये नेता जो सिवाय एक सोच रखने के कुछ नहीं कर पाये। कोई उसके पक्ष में कोई इसके । बराबरी की नज़र कभी किसी की नहीं रही अगर हो पाती त

पाकीजा काम

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बेशक शब्द कवि के दिल से आते हैं .तेरह साल पहले लिखी इस कविता का एक एक शब्द वक़्त के साथ अर्थ ग्रहण करता चला गया .समय के साथ शब्दों को सार्थक होते देखने के अनूठे अनुभव की समय साक्षी मैं शाहिद मिर्जा की इस कविता को पहली बार ब्लॉग पर दे रही हूँ .समय और शब्द की चेतना को समर्पित एक पत्रकार की रचना शायद पसंद आए प्रेम नहीं है सौ मीटर फर्राटा दौड़ मैराथन है प्रेम अछोर मेराथन प्रेम क्रिकेट में दोनों पक्ष सगर्व खेलना चाहतें हैं फोलोऑन क्यों बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं ग़ालिब की नाई निकम्मा हो जाना इश्क फरमाते हुए गो ज्यादातर बार होता यही है बावजूद प्रेम से जुड़ी तमाम कथाओं किम्वदंतियों के और बावजूद इस यथार्थ के कि अरसे से जर्द पड़ गए हैं प्रेम नाम की तमाम पातियों के रंग मुहैया करनी है मुझे ही प्रेम को अपूर्व गरिमा , गहराई सादगी और अर्थ देना है प्रेम को हूबहू प्रेम की शक्ल रचना है हज़ारराहा भयावह हददर्जा जहरआलूद हवाओं के मुकाबिल नाज़ुक और कारगर प्रतिरोध नहीं जानता ये काम ठीक ठीक अंजाम दे पाउँगा या नहीं लेकिन इन दिनों इस नियाहत वाहियात दौर में यही हे सबसे ज़रूरी और पाकीजा काम

काले नहीं हैं ओबामा

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ओबामा न तो काले हैं ना ही गोरे, `काले-गोरे´ हैं। काले पिता और गोरी मां की संतान। हाइब्रिड ओबामा। संकरित ओबामा। सारी दुनिया एक जैसी सोच की शिकार है। फिफ्टी-फिफ्टी को सौ फीसदी काला बना दिया। बहरहाल दो संस्कृतियों में पला-बढ़ा शख्स दुनिया को एक आंख से तो नहीं देखेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ब्लैक एंड वाइट के बीच बिखरे बहुत से रंगों की पहचान रखते होंगे ओबामा..ओबामा..ओबामा.. हर तरफ यही गूंज। सोचा था ब्लॉग पर नहीं करूंगी ओबामा का जिक्र। कुछ लोगों की तकलीफ भी थी कि ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं हमारे नहीं। वह अमेरिका जो दुनिया पर दादागिरी करने में यकीन रखता है। ओबामा भी अमेरिकी प्रशासन का मोहरा भर होंगे।राष्ट्रपति ओबामा बने या मैक्केन हम क्यों फूल कर कुप्पा हुए जा रहे हैं। माफ कीजिएगा दोस्तो, फूलने की वजह है। वे युवा हैं। इतना बढ़िया बोलते हैं कि अमेरिकी ही नहीं, दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला वोटर उन्हें वोट देने का मन बना लेता है। वे पत्नी मिशेल और दो बेटियों के साथ पारिवारिक मूल्यों में भरोसा करते हुए नजर आते हैं और लास्ट बट नॉट लीस्ट, वे काले हैं। हमारे जैसे काले, जिनका ग