पाकीजा काम


बेशक शब्द कवि के दिल से आते हैं .तेरह साल पहले लिखी इस कविता का एक एक शब्द वक़्त के साथ अर्थ ग्रहण करता चला गया .समय के साथ शब्दों को सार्थक होते देखने के अनूठे अनुभव की समय साक्षी मैं शाहिद मिर्जा की इस कविता को पहली बार ब्लॉग पर दे रही हूँ .समय और शब्द की चेतना को समर्पित एक पत्रकार की रचना शायद पसंद आए


प्रेम नहीं है
सौ मीटर फर्राटा दौड़
मैराथन है प्रेम
अछोर मेराथन
प्रेम क्रिकेट में
दोनों पक्ष सगर्व
खेलना चाहतें हैं
फोलोऑन

क्यों
बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं
ग़ालिब की नाई
निकम्मा हो जाना
इश्क फरमाते हुए
गो
ज्यादातर बार
होता यही है
बावजूद
प्रेम से जुड़ी तमाम कथाओं किम्वदंतियों के
और बावजूद इस यथार्थ के

कि अरसे से जर्द पड़ गए हैं
प्रेम नाम की तमाम पातियों के रंग
मुहैया करनी है मुझे ही
प्रेम को अपूर्व गरिमा , गहराई सादगी और अर्थ
देना है प्रेम को
हूबहू प्रेम की शक्ल
रचना है हज़ारराहा भयावह
हददर्जा जहरआलूद हवाओं के मुकाबिल
नाज़ुक और कारगर प्रतिरोध
नहीं जानता
ये काम ठीक ठीक
अंजाम
दे पाउँगा या नहीं
लेकिन इन दिनों
इस नियाहत वाहियात दौर में
यही हे
सबसे ज़रूरी और पाकीजा काम

टिप्पणियाँ

  1. Bahut Sunder Kavita...Humse Mila Hi Nahi Koi Hmara Bankar...Hum Doob Gye Hain Aaj Gam K Dariya Me...Rahte The Kabhi Hum Bhi Kinara Bankar...

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  2. देना है प्रेम को
    हूबहू प्रेम की शक्ल
    रचना है हज़ारराहा भयावह
    हददर्जा जहरआलूद हवाओं के मुकाबिल
    नाज़ुक और कारगर प्रतिरोध
    ...........
    बिल्कुल शाहिद जी के मिजाज की हैं ये पंक्तियाँ. उनकी इस पवित्र आकांक्षा को सहेजे रहिये.

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  3. aapne achha kiya... yeh kavita hame padhane ko mili.. its wonderful..

    जवाब देंहटाएं
  4. शाहिद जी की
    इस पाकीजा कविता
    को पढ़कर
    जयप्रकाश चौकसे जी की इंदौर में
    कही गयी
    एक बात याद आ गयी.." शाहिद आदमी नही दरवेश है..."

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  5. सुंदर अभिव्यक्ति..
    बहुत सुंदर लगी यह रचना

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