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वीर्य से जीतना होगा शौर्य को

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  उस समाज में जहां मर्दानगी का एकमात्र पैमाना वीर्य हो वहां और उम्मीद की भी क्या जा सकती है। यह वीर्य किसी जाति, धर्म या समाज में छोटा-बड़ा नहीं बल्कि मर्द होने की पहली शर्त है।  सबसे पहले रोशनी ( जुझारू लड़की को दिया एक नाम) वह लड़की जो रविवार रात सोलह दिसंबर की रात छह लोगों की हैवानियत का शिकार हुई, उसके लिए प्रार्थना कि वह जल्दी स्वस्थ हो। उन हैवानों ने तो सामूहिक बर्बरता करने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी। दुष्कर्म के बाद वह चलती हुई बस से सड़क पर फेंक दी गई। यह पहला मौका है जब पूरे देश में दुःख और दर्द की लहर दौड़ गई है। हर लड़की छली हुई महसूस कर रही है तो लड़का भी अपराधबोध से ग्रस्त हो गया है। वह बताना चाह रहा है कि कि हम इस दर्द में तुम्हारे साथ है। इसी का नतीजा है कि दिल्ली का इंडिया गेट इन हमदर्दों से भरा हुआ है। वे आ रहे हैं यह जानते हुए भी कि इस सरकार की मंशा जनरल डायर से कहीं कम नहीं है। जनरल डायर ने अमृतसर के जलियावाला बाग में आजादी के निहत्थे ऐसे ही परवानों पर गोलियां चला दी थीं। यह सरकार आंसू गैस के गोले छोड़ रही है। यह भूलकर कि ये युवक-युवतियां अपने ही देश के नागरिक

छीजता कुछ नहीं

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मुकम्मल नज़र आती देह में रूह का छीजना मुसलसल  अधूरे चाँद का  पूरेपन की और बढ़ना मुसलसल  छीजता कुछ नहीं  न ही बढ़ता है कुछ  महसूसने और देखने के  इस हुनर में ही एक दिन  ज़िन्दगी हो जाती है मुकम्मलI 

सॉफ्ट टार्गेट

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shaheen and her friend faced the charges for writing on facebook rimsha maseeh: pakistani girl facing blassfemy charges पकिस्तान में चौदह साल की किशोरी रिमशा मसीह को ईशनिंदा के इलज़ाम  में घेर लिया जाता है    तो भारत में दो लड़कियां  केवल इसलिए गिरफ्तार कर ली जाती हैं क्योंकि  उन्हें भारत की आर्थिक           राजधानी की रफ़्तार के       ठहरने पर एतराज़       था आखिर क्यों ढूंढे      जाते हैं सॉफ्ट टार्गेट   . . . द रसल हमारा तंत्र आसान टार्गेट ढूंढ़ता है। पाकिस्तान में एक किशोरी ईशनिंदा कानून से लड़ाई लड़ रही है, तो हमारे यहां मुम्बई में दो लड़कियों को इसलिए पकड़ लिया गया,क्योंकि उन्होंने बाल ठाकरे की मृत्यु पर मुम्बई बंद के दौरान हो रही परेशानियों का जिक्र फेसबुक पर कर दिया था। उन्हें अरेस्ट किया गया और बाद में जमानत पर छोड़ा गया। उनका कुसूर था कि उन्होंने खुद को अभिव्यक्त  किया था। एक ने लिखा और दूसरी ने उसके स्टेटस को लाइक किया था। शिव सैनिकों को यह बर्दाश्त नहीं हुआ। गुस्साए शिव सैनिकों ने स्टेटस लिखने वाली लड़की के चाचा के पालघर स्थित क्लिनिक पर हमला

बेवा तारीख़

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  एक डूबी तन्हा तारीख है आज कभी महकते थे फूल इस दिन चिराग भी होते थे रोशन यहाँ खुशबू भी डेरा डाले रहती थी तुम नहीं समझोगे  तारीख का डूबना क्या होता है नज़रों के सामने ही यह ऐसे ख़ुदकुशी करती  है   कोई हाथ भी नहीं दे पाता हैरां हूँ एक मुकम्मल तारीख यूं ओंधे मुंह पड़ी है मेरे सामने खामोश और तन्हा. मैंने देखा है एक जोड़ीदार तारीख को बेवा होते फिर भी मैं उदास नहीं मेरे यार न ही नमी है आँखों में इसी तारीख में जागते हैं बेसबब इरादे बेसुध लम्हें बेहिसाब बोसे बेखुद साँसें बेशुमार नेमतों से घिरी है यह तारीख...

वहां तालिबान, यहाँ बयान

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brave girl: ham sab malala hain पडोसी मुल्क में जहाँ पढना चाहने वाली किशोरी मलाला पर गोली दागी जा रही वहीँ हमारे मुल्क बयानों के बाण गहरे घाव कर रहे हैं. इ न शब्दों को लिखते हुए स्वर प्रार्थना में डूबे हुए हैं। पंद्रह साल की मलाला युसुफजई के लिए इसके सिवाय किया भी क्या जा सकता है। महज स्कूल जाते रहने की जिद एक बच्ची को मौत देने का कारण कैसे बन सकती है। नौ अक्टूबर को मलाला के सर में उस वक्त गोली मारी गई जब वह परीक्षा देकर बस से घर लौट रही थी। दो अज्ञात व्यक्ति नकाब ओढे़ बस में चढ़े और पूछा कि तुममें से मलाला कौन है। मलाला के गोली लगते ही बस के फर्श पर खून फैल गया। हमले में उसकी दो सहेलियां भी घायल हो गईं। शाजिया को गोली उसके कंधे पर लगी। इस दर्दनाक मंजर की दास्तान दोहराते हुए मलाला की दोस्त शाजिया की  में कोई खौफ नहीं तैरता। वह कहती है, मलाला ठीक हो जाएगी और हम फिर स्कूल जाएंगे। मलाला को पता था कि उसके साथ यह हादसा हो सकता है। उसे लगातार धमकियां भी मिल रही थीं, लेकिन एक दिन भी वह स्कूल जाने से नहीं कतराई। पाकिस्तान की स्वात घाटी बेहद खूबसूरत है, लेकिन गोरे, सुर्ख चेह

पुष्कर के फूल

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कुदरत की गोद में बसा पुष्कर प्रथ्विवासियों के लिए बेहतरीन उपहार है लेकिन यहाँ  के कथित पुजारी इस सौंदर्य को नष्ट कर रहे हैं वह भी एक फूल देकर . आप सोच रहे होंगे की फूल ने कभी किसी का  क्या बिगाड़ा है लेकिन ये फूल इन दिनों सैलानियों को डराने का काम कर रहे हैं     ब्रह्मा जी के एकमात्र प्राचीन मंदिर के अलावा पुष्कर में कुछ ऐसा है जो आध्यात्मिक स्तर पर इनसान को बांधने की क्षमता रखता है। पहाड़ों की आभा, मंदिर के घंटों का नाद और घाट पर आस्था में डूबे लोग। यहां हरेक के लिए कुछ न कुछ है। लेकिन कुछ ऐसा भी है जो तकलीफ देता है। ब्रह्मा जी के मंदिर से घाट तक जाते हुए एक सैलानी जोड़ा भी हमारे साथ हो लिया। शायद उन्हें लगा था कि हमारे साथ रहते हुए वे धार्मिक आस्था को ठेस पहुंचाए बिना दर्शन कर सकते हैं। वे हर बार हमसे पूछते कि  क्या  हम  भीतर जा सकते हैं, क्या यहां जूते उतारने होंगे,   यहां झुककर प्रणाम करना होगा।   तमाम जिज्ञासाएं वे हमारे साथ साझा करते हुए चल रहे थे । वे स्पेन से आए थे। बार्सिलोना से। हमने स्पेन की राजधानी का नाम लिया, मेड्रिड। तब दोनों ने हमें टोकते हुए कहा मद्रीद,

रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है

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रिश्ता अब फ़रिश्ता सा है बहुत करीब बैठे भी बेगाने से  हैं एक  पीली चादर बात करती हुई सी है बाल्टी का रंग भी  बोल पड़ता है कई बार वह बांस की टूटी ट्रे भी  सहेजी हुई  है  बाबा की पेंटिंग तो रोज़ ही रास्ता रोक लेती है   उन खतों के मुंह सीले हुए से  हैं वह ब्रश, वह साबुन, सब बात करते हैं किसी  के खामोश होने से कितनी चीज़ें बोलती हैं मुसलसल मैं भी बोलना चाहती हूँ तुमसे इतना कि हलक सूख जाए और ये सारी बोलियाँ थम जाए मेरी इनमें कोई दिलचस्पी नहीं तुम बोलो या फिर मुझसे ले लो इन आवाज़ों को समझने का फ़न.

तुम्हारे बाजू में

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तुम नहीं थे तुम थे तुम नहीं हो  तुम हो तुम्हारे होने या न होने के बीच मैं कहाँ हूँ ठीक वहीँ, जहाँ तुम हो तुम्हारे बाजू में   . मैंने तुम्हें न खोया न पाया न लिबास के रंग बदले इस आने - जाने पर न धातुएं ओढ़ी  न माथा  ही रंगा फिर ये किस रंग  में रंगी हूँ मैं? तेरा है ये  रंग तेरी रूह  पैबस्त है  मेरे भीतर ...और रूह कहीं नहीं आती-जाती जिस्म आते -जाते हैं |

हिंदी में ही करता है साइकल का पहिया पानी की कुल्लियां

 हिदी दिवस पर भी देरी का शिकार है मेरी यह पोस्ट ,उम्मीद है यह आपके कीमती समय का शिकार नहीं करेगी वैसे , कोई इरादा नहीं है कि हिंदी ही बोलने पर जोर दिया जाए या फिर अंग्रेजी की आलोचना की जाए। हिंदी बेहद काबिल और घोर वैज्ञानिक भाषा है जो खुद को समय के साथ कहीं भी ले चलने में सक्षम है। क से लेकर ड तक बोलकर देखिए तालू के एक खास हिस्से पर ही जोर होगा। च से ण तक जीभ हल्के-हल्के ऊपरी दांतों के नीचे से सरकती जाएगी और व्यंजन बदलते जाएंगे। ट से न तक के अक्षर तालू के अगले हिस्से से जीभ लगने पर उच्चारित होते हैं। सभी व्यंजनों के जोड़े ऐसे ही विभक्त हैं। हिंदी इतनी उदार है कि उसने हर दौर में नए शब्दों और मुहावरों को शामिल किया। अरबी से तारीख और औरत ले लिया तो फारसी से आदमी आबादी, बाग, चश्मा और चाकू। तुर्की से तोप और लाश, पोर्चूगीज से पादरी, कमरा, पलटन और अंग्रेजी के तो अनगिनत शब्दों ने हिंदी से भाईचारा बना लिया है। डॉक्टर, पैंसिल, कोर्ट, बैंक, होटल, स्टेशन को कौन अंग्रेजी शब्द मानता है। अंग्रेजी हमारी हुई, हम कब अंग्रेजी के हुए। हिंदी भाषा पर इतने फक्र की वजह, बेवजह नहीं है। हाल ही जब अंग्र

गोविंद से पहले

इससे पहले की हिंदी दिवस दस्तक दे ज़रूरी है कि शिक्षक दिवस पर लिखा आपसे साझा कर लिया जाए. देरी से पोस्ट करने की मुआफी के साथ तीसरी-चौथी कक्षा में हिंदी की पाठ्य पुस्तक  में एक कथा का शीर्षक  था आरुणी की गुरुभक्ति। वह ऋषि धौम्य के  यहां शिक्षा प्राप्त करता था। एक रात खूब बारिश हुई। आश्रम पानी से भर न जाए यह देखने के लिए वह खेतों पर गया। ऋषि धौम्य गहरी नींद में थे। आरुणी ने देखा कि खेत की मेड़ का एक हिस्सा टूट रहा है। उसने बहुत कोशिश की मेड़ की मिट्टी को फिर से जमा दे लेकिन तेज पानी उसे बहा ले जाता था। आरुणी पानी रोकने के लिए वहीं लेट गया। मेड़ पर लेटते ही पानी का बहाव रुक  गया। तड़के जब ऋषि की आँख  खुली तो आरुणी को ना पाकर वे चिंतित हुए। खेत में ढूंढ़ते हुए पहुंचे तो आरुणी वहां तेज बुखार के साथ सोया हुआ था। गुरुजी को सामने पाकर उसने पैर छू लिए और गुरुजी ने यह सब देख उसे गले से लगा लिया। क्या था यह? शिष्य को मिली शिक्षा या शिक्षक के प्रति उपजी स्वत:स्फूर्त श्रद्धा। दरअसल, ये दोनों थे। शिक्षक  का मान करना ही है , इसे लेकर कोई दुविधा नहीं थी लेिकन श्रद्धा, भक्ति के भाव निजी तौर पर

नकली है कविता मेरी

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  मौत तक नहीं पहुँचती कविता मेरी हाथ कांपते हैं मेरे डर जाती है देह मेरी उस मंज़र को दोहराने में  शांत और निश्छल मुकाम नहीं छूना चाहती कविता मेरी उसे ज़िन्दगी और मुस्कान चाहिए ऐसी कुर्बत चाहिए कि हवा भी ठहर जाए उसे आंसू और मातम से डर लगता है चुप्पी उसे घेरती है  सन्नाटा चीरता है  मौन तोड़ देता है... नकली है कविता मेरी वह सिर्फ मोहब्बत के तराने गाती है.

हरी आँखोंवाली लड़की

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शफ्फाफ़  रंगतवाली एक लड़की हरी आँखों से हैरत टपकाए पूछती है वाकई , उन्होंने आपसे कहा था जीवन के किसी भी मोड़ पर तुम्हें लगे कि बस, अब इस रिश्ते से बहार जा चुकी है और तुम्हें बाहर आना है मैं एक पल भी नहीं लगाऊंगा अलग होने में ? हाँ, कहा था रिश्तों की जम्हूरियत पर जब हरियाली पनपती है  ये ज़मीं जन्नत  मालूम होती है ...और मैंने जी है वो जन्नत जीते जी  तुम उम्मीद कायम रखो लड़की.

रंग ए उल्फ़त

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सोच रही हूँ मेरे तुम्हारे बीच कौन सा रंग है स्लेटी, इसी रंग की तो थी कमीज़ जो  पहली  बार तुम्हें तोहफे में दी थी तुमने उसे पहना ज़रूर पसंद नहीं किया . लाल, जब पंडित ने कहा था लड़की से कहना यही रंग पहने... हम दोनों को रास नहीं आया ख़ास पीला, तुम्हारे उजले रंग में खो-सा जाता था  गुलाबी,  में तुम्हे छुई-मुई लगती तुम ऐसे नहीं देखना चाहते थे मुझे सफ़ेद , में तुम फ़रिश्ता नज़र आते यह लिखते हुए एक पानी से भरा बादल घिर आया है हरा और केसरिया इन पर तो जाने किन का कब्ज़ा हो गया है नीला यही, यही तो था जिस पर मेरी तुम्हारी युति थी नीले पर कोई शक शुबहा नहीं था हमें फ़िदा थे हम दिलों जान से . अब ये सारे रंग मिलकर काला बुन देते हैं मेरे आस-पास. मैं हूँ कि वही इन्द्रधनुष बनाने पर तुली हूँ  जो था हमारे आस-पास नीलम आभा के  साथ   |

यूं ही दो ख़याल

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प्रेम  तुम थे तो थी  जिद  तकरार  अनबन  उलझन  केवल तब ही था  संगीत  सृजन हरापन  ...और बस  तब ही  तब ही तो हुआ था मुझे प्रेम | हिचकी नहीं  सिसकी  अरसा हुआ कोई हिचकी नहीं आई उसे  जुबां भी नहीं दबी  दाँतों के नीचे बस, याद....  शायद, हिचकी अब  सिसकी हो गयी है |

हमें अफ़सोस है पिंकी प्रमाणिक

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लेकिन ख़ुशी  है कि लिंग प्रमाणित  होने से पहले तुम्हारी ज़मानत हो ग यी पि छले दिनों हम सबने एक खबर पढ़ी कि एशियाई खेलों की स्वर्ण पदक विजेता एथलीट पिंकी प्रमाणिक पर पश्चिम बंगाल के 24 परगना क्षेत्र में एक स्त्री ने आरोप लगाया कि वह एक पुरुष है और उसके साथ दुष्कृत्य करने की कोशिश की। खबर ने चौंका दिया कि एशियाई एथलेटिक्स जैसी स्पर्धाओं में स्वर्ण पदक विजेता महिला के महिला होने पर ही संदेह हो गया है। लगा था कि पुलिस और अस्पताल मिलकर जल्दी ही परिणाम दे देंगे लेकिन यह इतना आसान नहीं था। एक लाइन की पुख्ता  खबर किसी को नहीं मिली है कि पिंकी का जेंडर क्या  है। इस बीच इस एथलीट के साथ कई अनाचार हुए। उन्हें पुरुषों की जेल में रखा गया। पुलिस ने उनके साथ दुर्व्यवहार किया और लिंग परीक्षण के मेडिकल मुआयने के दौरान उनका एमएमएस भी बनाकर लीक कर दिया गया। शायद, यही सोचकर कि यह तो पुरुष की देह है, क्या फर्क पड़ता है, लेकिन दो मिनट ठहरकर विचार कीजिए कि जिसने पूरी जिंदगी खुद को स्त्री माना हो और वैसी ही पहचान रखी हो उसे यकायक आप कैसे बदल सकते हैं। वह कैसे प्रस्तुत हो सकती

जयपुर के अदबी ठिकाने और एक किताब

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किताबों के लिए हमारे हृदय में पूजा भाव है। सर माथे लगाते हैं हम उन्हें। कभी गलती से पैर भी लग जाए तो पेशानी से लगा लेते हैं, जैसे माफी मांग रहे हों। क्यों न हो रामायण, कुरान शरीफ, बाइबल और गुरुग्रंथ साहब, सभी किताबें ही तो हैं। लिखे शब्दों का हम सभी एहतराम करते हैं ,पूजते हैं। इन ग्रंथों को बड़ी पवित्रता के साथ शुद्ध कपड़ों में लपेटकर रखने वाले  हम सभी ने देखे हैं। जाहिर है हम किताबों को इज्जत देने वाला समाज हैं। यहां से चलकर किताबें किस होड़ में शामिल हो गई हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। एक पूरा मार्केट है जो लेखक और लेखन की पैकेजिंग करता है। कुछ ऐसे भी हैं जो बहुत कम दाम में ज्यादा किताबें पढ़ाने का बीड़ा उठाए हुए हैं। कुछ ऐसे भी लेखक हैं, जिन्हें लगता है अगर दो साल में एक किताब ना निकली तो व्यर्थ है जिंदगी, फिर चाहे उस किताब से जिंदगी के तत्व कोसों गायब हों। खैर, इस चिंता में ना पड़ते हुए पिछले दिनों जिस किताब से नजरें मिली उसका जिक्र। किताब की दुकान किसी हीरों की दुकान-सी लगती है। हीरे तिजोरी के अंधेरे को रोशन कर देते हैं तो नई किताब दिमाग के अंधेरे में र

मुलाकात प्रेम शिकवा

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शिकवा  मैंने देखा आज सूरज को  बड़ी तसल्ली और करार से  ओझल होता है  पहाड़ नहीं हैं  मेरे घर के आस-पास  बिजली घर के पीछे ही चला गया  कल फिर आने के लिए और तुम? यूं ही अकस्मात् अनायास अचानक कहाँ चले गए मेरे यार जाने कहाँ उदय होने के लिए ? नहीं सोचा इस हरेपन को तुम्हारी ही रश्मियों की आदत है ***   मुलाक़ात तुम्हें याद करते हुए जब घिर आई आँखों में नमी खुद से कहा जाओ मेरी रूह मुलाकात का वक़्त ख़त्म हुआ | *** प्रेम  ऐ शुक्र तेरा शुक्रिया कि आज तमतमाए सूरज पर तुम किसी खूबसूरत तिल की तरह मौजूद थे. क्या हुआ... सुबह ठंडी थी और परिंदे हैरान प्रेम यूं भी लाता है खुशियों के पैगाम सौ साल में एक बार. ***  

चरित्र पर फैसला सुनाना हम अपना फर्ज समझते हैं

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मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने भी सीता को अग्नि में समर्पित कर आत्मसम्मान  की रक्षा की थी हमारे समाज में यह आज भी बुरा नहीं है। चरित्रहीनता पर फैसला सुनाना हम अपना फर्ज समझते हैं। ओगड़सिंह तो बेटी का सर काटकर ही  थाने ले  गया जयवंती और राजेश की आंखों में बेटी की विदाई की नमी के साथ-साथ चमक भी थी। अपने हिसाब से अपनी बेटी को ब्याह देने की चमक। उनकी बातों से झलक रहा था कि वे उनके संस्कार ही थे जो बेटी कहीं 'भटकी' नहीं। करीब के रिश्तेदार भी उन्हें कहने से नहीं चूक रहे थे कि वाह, जयवंती तूने तो गंगा नहा ली। वरना आजकल के बच्चे मां-बाप को नाकों चने चबवा देते हैं। ये निर्मला को ही देख इसकी बेटी ने क्या  कम तांडव किए थे। तू तो बहुत भाग्यशाली है। दरअसल निर्मला की बेटी ने मां-बाप के तय रिश्ते से इनकार कर दिया था। नहीं मानने पर खाना-पीना छोड़, वह उदास बंद कमरों में अपने दिन बिताने लगी थी, लेकिन एक दिन मां-बाप की धमकी ने उसे डरा दिया, 'अगर तू यही सब करेगी तो हम जहर खा लेंगे। मत भूल की तेरी एक छोटी बहन भी है। उस दिन वह बेटी बहुत डर गई थी। खुद पर कष्ट तो वह बरदाश्त कर

आत्मालाप

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अभी तो बहुत कुछ कहना-सुनना बाकी था  क्यों तुमने बीच रास्ते ही जहाज डुबो दिए ढल ही जाती एक रोज़ ये गहरी काली शब्  क्यों तुमने सुन्दर उम्मीद के पंख क़तर दिए   मिल ही जाता हमें हमारे हिस्से का आसमां तुमने क्यों अब्र के हवाले उजाले कर दिए क्या मैं ही वक़्त से हारने लगी थीं मेरी जां ज़ख्म क्यों फिर आज अपने हरे कर दिए नहीं कह पाती खुद से कि यह उसकी रज़ा थी मैंने देखें हैं तूफ़ानी हवाओं में जलते हुए दीए एक-दूजे पर था जब चन्दन-पानी सा यकीं फिर किसने ये रास्ते हमारे जुदा कर दिए अभी तो बहुत कुछ कहना-सुनना बाकी था  क्यों तुमने बीच रास्ते ही जहाज डुबो दिए अब्र-बादल शब्-रात   

आगत का गीत

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सत्ताईस की वह सुबह हैरत भरी थी  एक आँख सूखी और दूसरी गीली थी  एक ज़िन्दगी से चमकती  और दूसरी विदा गीत गाती  हुई   चमकती आँख ने हौले से भीगी आँख को देखा  मानो पी जाना चाहती हो उसके भीतर की नमी  इस बात से बेखबर  कि फिर नमी ही उसकी मेहमां होगी. आख़िर, ज़िन्दगी  से चमकती आँखे  क्यों विदा गीत गाना चाहती थीं  वह चौंक गयी ख्व़ाब से  ...और देखा कि उसकी तो दोनों ही आँखें  एक ही गीत गा रही हैं  आ गत का गीत ....

सत्यमेव जयते के पत्रकार आमिर

जनकनंदिनी सीता, कुंतीपुत्र अर्जुन या फिर गंगापुत्र   भीष्म  और    द्रुपद नंदिनी द्रौपदी  कितनी समरसता है इस वंशावली में। इन व्याख्याओं में ना पड़ते हुए कि पुत्र के साथ मां का और पुत्री के साथ पिता का नाम क्यों है, खुश होने के लिए काफी है कि हम उस परंपरा के वाहक हैं जहां मां का नाम एक उपनाम की तरह नहीं, बल्कि मूल नाम की तरह चलता रहा है। वंश उन्हीं के नाम से आबाद हुए। मां को मान देने वाली संस्कृति का हिस्सा होने के बावजूद ऐसे कौनसे जैविक परिवर्तन के शिकार हम हो गए हैं कि बेटी को कोख में ही मार देने में पारंगत हो गए। विज्ञान का ऐसा घृणित इस्तेमाल। अल्ट्रासॉनिक मशीन को ईजाद करने वाले वैज्ञानिक अगर इस घिनौने पक्ष को सोच लेते तो उनकी रूह कांप जाती। जो मशीन एक स्वस्थ संतान को जन्म देने का सबब है, उसका इस्तेमाल हम मौत देने के लिए कर रहे हैं।  हालत यह हो गयी  कि जहां पश्चिमी देशों में बच्चे का लिंग पहले ही बता दिया जाता है, वहां हमारे यहां इसे प्रतिबंधित करना पड़ा है।  किस्सा जोधपुर का है। रेडियोलॉजिस्ट ने उस नए कपल के बच्चे की जांच कर मुस्कुराते हुए कहा कि पांचवें महीने के हिसाब से

मेरी कुड़माई में

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 मेरी कुड़माई  में  मुझे मिले थे माटी के गणेशजी और एक लकड़ी की कंघी  वही जो आदिवासी लड़का लड़की को देता है  मैं भी हो गयी थी तेरी  सदा के लिए. क्या कोई मंतर था   मिटटी और लकड़ी के टुकड़ों में  या थी वो नज़र  जो  सिवाय भरोसे  के  कुछ और देती ही नहीं थी. समझ रही हूँ  मिटटी-लकड़ी देने का सबब सच, तुम्हारी निगाहें बहुत दूर तक  देख  लेती थीं .

खांकर बजती है राह बनती है

अपने जीते जी मैं कभी शृंगार नहीं करूंगी लेकिन अंत्येष्टि के समय वे मुझे सजा देंगे। वसीयत में साफ-साफ लिख देने पर वे ऐसा नहीं करेंगे । क्यूं लिखूं मैं? करने दो उन्हें, जिंदगी में एक बार मैं खूबसूरत लगूंगी -वेरा पावलोवा   वेरा रूसी कवयित्री हैं, जो शायद अपने सादगी पर फिदा हैं और इसी को ही अंतिम सांस तक कायम रखना चाहती हैं। कोई  ख्वाहिश नहीं सुंदर दिखने की फिर भी एक ख् वाहिश कि मरने के बाद भी खूबसूरत लगूं। सुंदर दिखना हम में से हरेक की चाहत होती है, लेकिन क्या सुंदरता केवल लिबास और अंगों की होती है। मुझे तो छतीसगढ़ के बस्तर जिले में जगदलपुर के पास कोटमसर गांव की वह आदिवासी स्त्री भी बहुत खूबसूरत लगती है जो सड़कों पर धान फैला रही होती है और वह मेवाती स्त्री भी जो अलवर के गांव में प्याज़  उगा रही है। उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल की वे स्त्रियां भी जिन्होंने अपने दम पर खोए हुए वन फिर से विकसित कर लिए हैं। अपने पुरुषों का पलायन रोक दिया है। उन्होंने अपना पानी, अपना चारा, अपना ईंधन तो पाया ही है, अपना स्वाभिमान भी ऊंचा रखा है। वे बारी-बारी से इस वन की रक्षा करती हैं। इसके लिए उनके पास एक ला

हम भरे-भरे ही हैं दोस्त

उसने कहा  मुझसे  फिर क्यों नहीं  मैंने कहा  प्याला रीतता  ही नहीं  ख़ालीपन के  एक निर्वात  दो आंसूं  तीन हिचकियों  चार बातों  और अनगिन यादों  के बाद  फिर भर उठता है  अजब जादूई मसला है कभी मैं रीतती हूँ  तो प्याला मुझे भर देता है  और प्याला रीतता है तो मैं  हम भरे-भरे ही हैं दोस्त.

अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं

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अच्छे लोग मेरा पीछा करते हैं ढूंढ ही लेते हैं मुझे  आखिरकार    बावजूद कि मैं हद दर्जा बेपरवाह   ज़िन्दगी का सबसे कीमती तोहफा भी ऐसे ही मिला मुझे  मैं बेखबर  वह कुर्बान  मैं जड़ वह  चैतन्य   मैं सुप्त वह जाग्रत मैं ठूंठ तो वह हरा वट   मैं तार वह सितार    मैं  बुत  वह   प्राण     मैं   इंतज़ार वह इश्क़  तेरा लाख शुकराना मेरे रब दे तौफीक   मुझे   के मैं  कर सकूं पीछा   अच्छाइयों का  जो न कर सकूं अच्छे लोगों का तो .