सॉफ्ट टार्गेट
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shaheen and her friend faced the charges for writing on facebook |
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rimsha maseeh: pakistani girl facing blassfemy charges |
में घेर लिया जाता है
तो भारत में दो लड़कियां
केवल इसलिए गिरफ्तार कर ली जाती हैं क्योंकि
उन्हें भारत की आर्थिक राजधानी की रफ़्तार के
ठहरने पर एतराज़
था आखिर क्यों ढूंढे
जाते हैं सॉफ्ट टार्गेट . . .
दरसल हमारा तंत्र आसान टार्गेट ढूंढ़ता है।
पाकिस्तान में एक किशोरी ईशनिंदा
कानून से लड़ाई लड़ रही है, तो हमारे
यहां मुम्बई में दो लड़कियों को इसलिए
पकड़ लिया गया,क्योंकि उन्होंने बाल
ठाकरे की मृत्यु पर मुम्बई बंद के दौरान
हो रही परेशानियों का जिक्र फेसबुक
पर कर दिया था। उन्हें अरेस्ट किया
गया और बाद में जमानत पर छोड़ा
गया। उनका कुसूर था कि उन्होंने खुद
को अभिव्यक्त किया था। एक ने लिखा
और दूसरी ने उसके स्टेटस को
लाइक किया था। शिव सैनिकों को यह
बर्दाश्त नहीं हुआ। गुस्साए शिव सैनिकों ने स्टेटस
लिखने वाली लड़की के चाचा के
पालघर स्थित क्लिनिक पर हमला बोल
दिया और खूब तोड़-फोड़ मचाई। यह
कैसी श्रद्धा थी कि उनके पुरोधा की चिता
अभी ठंडी भी नहीं हुई थी कि उन्होंने
क्लिनिक को ही तहस-नहस कर दिया।
हक्की-बक्की ये लड़कियां कुछ ही
समय में अपराधी करार दे दी गई थीं।उनके चेहरे ढके हुए थे।
वे माफी मांग रही थीं उस गुनाह की, जो
शायद उनसे हुआ ही नहीं था। माफी के
ये शब्द भीतर से नहीं, बल्कि डर से
उपजे थे।
एक पढ़े-लिखे व्यक्ति का तर्क था
कि मुझे तो गलती इन लड़कियों की ही
लगती है। क्या जरूरत है वहां अपनी
अक्ल का झंडा बुलंद करने की, जहां
पूरा शहर बंद होकर अपने नेता को
श्रद्धांजलि देने में जुटा हुआ है। आपको
लोगों की भावना का ध्यान रखना ही
चाहिए। जहां श्रद्धा है, वहां कोई तर्क
मायने नहीं रखता। विचारना जरूरी है
कि यह श्रद्धा है या भय? कहना मुश्किल
है कि बाजार, संस्थाएं, सिनेमाघर इस
डर से बंद हुए कि कहीं समर्थक
जबरदस्ती आकर ना बंद करवा दें या
फिर आस्था के सागर ने उन्हें बंद रहने
पर मजबूर किया। खैर , उस दिन पूरी
मुम्बई ने जरूरी चीजों की किल्लत
महसूस की। दूध नब्बे रुपए लीटर तक
मिला। अस्पताल जाना मुश्किल हुआ।
रोजी कमाने वालों को फाके की नौबत
आई। डर का असर कई हिस्सों में
सफर करता रहा।
मुम्बई के बाहर फेसबुक पर
सक्रिय कई मित्रों ने बाद में इन्हीं
लड़कियों के स्टेटस को साझा किया।
वह भी इस चुनौती के साथ कि हमें भी
गिरफ्तार कीजिए। इनमें कई लड़कियां
थीं, लेकिन यह अपराध भी
क्षेत्रीय साबित हुआ। इसका असर वहीं
तक था। हैरत होती है कि तोड़-फोड़
करने वाले दो सौ लोगों में से सिर्फ नौ
गिरफ्तार हुए, जबकि ये लड़कियां
किसी अपराधी की तरह मुंह ढककर
थाने में बैठा दी गई थीं।
उधर, पड़ोसी पाकिस्तान में किशोरी
मलाला युसूफजई को पढऩे की तमन्ना
के लिए तालिबानी गोलियों से छलनी
कर देते हैं, तो चौदह वर्षीय रिमशा
मसीह केवल इसलिए ईशनिंदा
(ब्लासफेमी) कानून का सामना कर
रही है, क्योंकि उसके बस्ते से पवित्र
कुरान शरीफ के जले हुए टुकडे़ मिलते
हैं। फर्ज कीजिए, घर के मंदिर में रखी
भागवत गीता दीपक की आग से
जल जाए । मां इसे दोबारा बाइंडिंग के
लिए बेटी को दे । सोचिए, अगर
किसी सख्त और तंग सोच वाले की
नजर इस पर पड़ती और बेटी किसी
और धार्मिक पहचान का अनुसरण कर
रही होती, तो जाहिर है उस पर यही
आरोप लगता। पाकिस्तान में ईशनिंदा
कानून का सामना कर रही रिमशा
ईसाई है। हालांकि, हाल ही उसे राहत
मिली है, लेकिन दोषी को मौत की सजा
का भी प्रावधान है।
कितने असहिष्णु हो चले हैं हम?
अपनी पहचान और आस्था को लेकर
यही क्यों लगता है कि दूसरा हमारा
विरोधी है और अहित ही चाहता है। इसी
तंग सोच ने पेंटर मकबूल फिदा हुसैन
को भारत से कतर जाने पर मजबूर कर
दिया। तस्लीमा नसरीन ढाका से दूर
कर दी गईं। सलमान रुश्दी को फतवा
जारी होने के बाद नौ साल तक पहचान
छिपाकर रहना पड़ा। अभिव्यक्ति की
आजादी की बातें केवल तंत्र चलाने
वाली किताबों में ही क्यों नजर आती हैं? अपनी बात बेखौफ
कहनेवाले क्यों सलाखों के पीछे और इन पर हमला
करनेवाले क्यों आज़ाद घूमते हैं। अपनी बात खुलकर कहने वालों से यही
आग्रह- दोस्तो, जरा संभलकर इतनी
आसां नहीं है बदलाव की पैरोकारी।
कलम को कटघरे में रखने का कायम है चलन
हुक्मरानों की यह अदा बदली नहीं है अभी
इन दो लाइनों मे ही सब लिख दिया आपने ...
जवाब देंहटाएं"कलम को कटघरे में रखने का कायम है चलन
हुक्मरानों की यह अदा बदली नहीं है अभी"
सादर !
नानक नाम चढ़दी कला, तेरे भाने सरबत दा भला - ब्लॉग बुलेटिन "आज गुरु नानक देव जी का प्रकाश पर्व और कार्तिक पूर्णिमा है , आप सब को मेरी और पूरी ब्लॉग बुलेटिन टीम की ओर से गुरुपर्व की और कार्तिक पूर्णिमा की बहुत बहुत हार्दिक बधाइयाँ और मंगलकामनाएँ !”आज की ब्लॉग बुलेटिन मे आपकी पोस्ट को भी शामिल किया गया है ... सादर आभार !
abhivyakti ki azadi sirf kagazo par hai ..lekin ye bhi sahi hai ki sankuchit soch rakhane vale itane himmati bhi nahi hote ki kisi takatvar par hamla kar sake isliye hamesha SOFT TARGET dhundhe jate hai..sateek post.
जवाब देंहटाएंअच्छा लिखा।
जवाब देंहटाएंअपनों से ही जंग जारी है,
जवाब देंहटाएंबस यही बीमारी है।
bahut shukria shivam mishraji
जवाब देंहटाएंkavita tum aayeen achha laga
anupji praveenji dhanywaad.
bahut shukria shivam mishraji
जवाब देंहटाएंkavita tum aayeen achha laga
anupji praveenji dhanywaad.