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फ़रवरी, 2012 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

मोहब्बत के शहर से

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अर्से से  संभाल रखी थी  मोहब्बत की धरोहर के लिए मशहूर  शहर से लाई एक सफ़ेद प्लेट उसकी संग ए मरमरी जाली के पास कई रंग थे  इक-दूजे की खूबसूरती में लिपटे  आज, वह प्लेट टूट गयी  रंग बिखर गए  सिर्फ सफ़ेद नज़र आता है अब टूटी यादों को फेंका नहीं   उसने जोड़ा और सहेज लिया खुद को भी कहाँ फेंका उसने सहेज रखा है  अक्षत वनपीस की तरह.

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अश्लीलता को शब्द  देने वाले भारतीय कानून के मूल में एक ही भाव है कि किसी महिला की गरिमा को ठेस न पहुंचे। यह भाव सर्वोपरि है कि किसी परिवार के सामाजिक रुतबे और साख पर कोई आंच नहीं आए। हमारे यहां ऐसा है और यूं ये परिकल्पना पूरी दुनिया के देशों में वहां की सांस्कृतिक अवधारणा के हिसाब से बदलती रहती है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि जब स्त्री की अपनी ही भूमिका परिवार और समाज में बहुत बदली है वहां  1860 के अंग्रजों के जमाने के ये कानून किस तरह साथ देते हैं। दूसरा सवाल यह उठता है कि जब सब कुछ एक क्लिक  की दूरी पर हो, शहर के थिएटर में 'जंगली जवानी'  जैसी कोई फिल्म चल रही हो, प्ले बॉय जैसी पत्रिकाओं में स्त्री की उत्तेजक तस्वीरें हो, पारिवारिक पत्रिकाओं में ही सर्वे के नाम पर कई बातें हो, वहां इस कानून की रक्षा किस कदर की जा सकती है? नर्स भंवरी देवी के एक विधायक मंत्री  महिपाल मदेरणा    के साथ संबंधों की सीडी को कुछ टीवी चैनल्स ने खूब दिखाया। अखबार के दफ्तरों ने भी इसे देखा। जाहिर है प्रकाशन और प्रसारण के निर्णय से पहले इसे देखना जरूरी था। कुछ मन