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एक मुलाकात शहनाई के उस्ताद से

२८ जून 1995 को शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से रूबरू होना किसी जादुई अनुभव से कम नहीं था .तेरह साल पहले इन्दौर के होटल में जब बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो लगा उस्ताद शहनाई के ही नहीं तबीयत के भी शहंशाह है। यकायक एक मोहतरमा ने आकर पूछा -यहां आपको कोई तकलीफ तो नहीं? हमसे कोई गलती तो नहीं हुई? खां साहब कहां चुप रहने वाले थे तुरंत बोल पडे़-गलती तो आप कर चुकी हैं, लेकिन यह खूबसूरत गलती आप फिर दोहरा सकती हैं। इतना कहकर वे खुद भी ठहाका मारकर हंस पड़े। खां साहब के लबों पर जब शहनाई नहीं होती तब जुबां कब एक राग से निकलकर दूसरे में प्रवेश कर जाती, पता ही नहीं लगता था। बनारस और बिस्मिल्लाह का क्या रिश्ता है? बनारस को अब वाराणसी कहा जाने लगा है यूं तो बनारस के नाम में ही रस है। वहां की हर बात में रस है। हम पांच या छह साल के थे जब बनारस आ गए थे। एक तरफ बालाजी का मंदिर दूसरी ओर देवी का और बीच में गंगा मां। अपने मामू अली खां के साथ रियाज करते हुए दिन कब शाम में ढल जाता पता ही नहीं चलता था। आज के लड़कों की तरह नहीं कि सबकुछ झटपट पाने की चाह रही हो। पैर दबाए हैं हमने उस्ताद के। जूते पॉलिश किए हैं।

सॉरी बिप्स .. हार गए विजेंद्र

विपाशा बासु का छः फुट के विजेंद्र के साथ डेट पर जाने का ख्वाब अधूरा रह गया । उनका सपना तोडा हे खानदानी boxer एमिलियो कोरिया ने । वे क्यूबा के हैं और जबरदस्त मुक्केबाज़ हैं । हमारे विजुभैया को कासे के साथ ही संतोष करना पड़ेगा । वैसे इस बांग्ला ब्यूटी की कोई गलती नहीं उन्होंने प्रोतसाहित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी ।तमाम सरकारों ने जहाँ धन वर्षा कर दी वहीं बीप्स ने डेट पर जाने का प्रस्ताव कर दिया । देश भिवानी के इस handsom मुक्केबाज़ और बॉलीवुड की हॉट ऐक्टर विपाशा की मुलाकात से तो महरूम रहा ही गोल्ड से भी चूक गया .वरना आज हमारे पास दो गोल्ड होते । सॉरी दोस्तों.. क्रिकेट -बॉलीवुड का मेल तो बहुत देखा लेकिन बोक्सिंग-बॉलीवुड का यह बेमिसाल जोड़ नहीं देख पाये विपाशा का प्रयास ज़रूर सराहा जाना चाहिए । बहरहाल विजेंद्र को बधाई क्योंकि छोटे शहरों से क्या खूब झोला उठाया हे उन्होंने ।

माँ को मिले मारने का हक़ ?

निकिता और हरेश मेहता ने अदालत से गुजारिश की थी कि उन्हें छह माह के गर्भस्थ शिशु को मारने की इजाजत दी जाए क्योंकि उसके दिल में छेद है और वह दुनिया में आकर सामान्य जिंदगी नहीं बसर कर सकता। एक सीधी सपाट राय हो सकती है कि मां को यह हक होना चाहिए लेकिन उस मां का क्या जिसका बच्चा पैदा होते ही मेनेनजाइटिस (दिमागी बुखार) का शिकार हो मानसिक विकलांग हो जाता है? वह मां जिसका बच्चा अस्पताल की लापरवाही से इन्क्यूबेटर में ही बुरी तरह झुलस जाता है? वह मां जिसका नवजात पोलियो का शिकार होकर हमेशा के लिए अपाहिज हो जाता है? तो क्या ये माताएं अपने प्रेम का मोल-तोल करने लग जाती हैं? कवि प्रयाग शुक्ल की पंक्तियां है- तुम घटाना मत अपना प्रेम तब भी नहीं जब लोग करने लगें उसका हिसाब ठगा हुआ पाओअपने को एक दिन तब भी नहीं। मत घटानाअपना प्रेम बंद कर देगी तुमसे बोलना धरती यह, चिडि़या यह,घास घास यह मुंह फेर लेगा आसमा न नहीं , तुम नहीं घटाना अपना प्रेम । प्रेम की यही परंपरा अब तक हमारी आंखों ने देखी है। मां का प्रेम, जहा आकर सारे शक दम तोड़ देते हैं। सर्वाधिक प्रेम तो कमजोर संतान पर ही बरसता है। गर्भ में बीज पड़ते ही