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deepika's chaapaak from cleavage to jnu

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क़द-काठी में तो दीपिका पादुकोण पसंद थी ही लेकिन अब उनके भीतरी सौंदर्य ने भी मोह लिया है। यूं अपने अवसाद का ज़िक्र करके और क्लीवेज की तस्वीर छापने के दौरान टाइम्स ऑफ़ इंडिया से लोहा लेकर वे ख़ुद को अलग तो बहुत पहले ही साबित कर चुकी हैं। ठीक है कि उनकी फिल्म छपाक 10 जनवरी को थिएटर्स में आ रही है लेकिन JNU आकर अपना स्टैंड रखना उनकी हिम्मत और समझ की दाद मांगता है। उनकी फ़िल्म पद्मावत का ज़िक्र भी लाज़मी होगा क्योंकि उस समय भी गुंडा तत्वों ने तोड़ -फोड़ और आगज़नी की थी। तब भी इस बिरादरी की कोई मुखर आवाज़ सामने नहीं आई थी। जोधा अक़बर, पद्मावत ,पानीपत जैसी कई फ़िल्मों को यूं रोका जाता है जैसे  क़ानून नहीं गुंडों का राज हो। इस दौर में जब कई बिलों में जा घुसे हैं दीपिका का यूं प्रकट होना उनके अलग होने की पहचान ज़ाहिर करता है।  कहा  जा  सकता है  कि उनकी छपाक को जो एक एसिड अटैक  सर्वाइवर  लड़की की जिजीविषा की कहानी है, उसके प्रचार में यह मंच मददगार साबित हो सकता है। ऐसा है तब भी कोई दिक़्क़त नहीं होनी चाहिए। फिल्म तो अजय काजोल की भी उसी दिन आ रही है। छपाक मेघना गुलज़ार की  है और गुलज़ार साहब की भी है। ज़ुल्म के

और रा ज करेगी ख़ल्क़ ए ख़ुदा

शायर या कवि की क़द्र कीजिये , उन्हें प्रेम कीजिये। फ़ैज़ अहमद  'फ़ैज़' बड़े शायर हैं इसलिए नहीं कि उनका लिखा मक़बूल हुआ बल्कि इसलिए कि उन्होंने जो लिखा वह इंसानियत का गीत बन गया। ऐसा कोई चाहकर भी नहीं कर सकता जो कर सकता होता तो आज तंगदिल हुक्मरानों के गीत हरेक की ज़ुबां पर होते। ये शायर अपने वतन से बाहर नहीं फैंके  जाते या वतन के भीतर उनका दूसरा घर हर वक़्त जेल नहीं होता।   मनोहर श्याम जोशी का धारावाहिक हमलोग देखकर जो पीढ़ी बड़ी हुई यह उस शीर्षक गीत को कैसे भूल सकती  है। ये फ़ैज़ की ही नज़्म है।  आइये हाथ उठाएं हम भी हम जिन्हें रस्मे-दुआ याद नहीं  हम जिन्हें सोज़ ए मोहब्बत के सिवा  कोई  बुत  कोई  ख़ुदा  याद नहीं  एक शायर जो सिर्फ़ मोहब्बत का पैग़ाम देता है वह किसी व्यवस्था में यूं अपमानित किया जाए यह किसी भी संस्थान के लिए फ़ख़्र की बात कैसे हो सकती है। फ़ैज़ साहब के इस शेर को देखिये थे कितने अच्छे लोग कि जिनको अपने ग़म से फुर्सत थी  सब पूछे थे अहवाल जो कोई दर्द का मारा गुज़रे था   तीन  शेर उस बेहतरीन ग़ज़ल से जो उन्होंने मांटगोमरी जेल में लिखी  कब याद में तेरा साथ नहीं ,कब हाथ में तेरा हा