संदेश

अगस्त, 2015 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

सानदार, जबरजस्त, जिंदाबाद,

चित्र
सानदार, जबरजस्त, जिंदाबाद,  केतन मेहता की हालिया रिलीज मांझी का नायक दशरथ मांंझी जब ये तीन शब्द बोलता है तो उस पूरे मंजर में जान पड़ जाती है फिर चाहे हालात कितने भी बदतर, वाहियात और मुर्दानगी वाले क्यों ना हों। हालात और व्यवस्था के खिलाफ लडऩे वाला मांझी खुद इस कदर तकलीफों का मारा है कि देखने वाले को घनघोर निराशा होती है और जब फिल्म में यही सब गरीबी और अभाव की पृष्ठभूमि में हो तो कम अज कम भारतीय दर्शक उस फिल्म को सिनेमा हॉल तक देखने नहीं जाता। उसके लिए फिल्म के मायने मसाला मनोरंजन से है। मांझी कुव्यवस्थाओं के बीच से रास्ता निकालने की कोशिश है, जो आखिर में मोहब्बत के शाहकार ताजमहल से भी बड़ी पैरवी मोहब्बत के लिए कर जाती है। अपनी बीवी फगुनिया को याद करने वाला दशरथ  मोहब्बत का मसीहा मालूम होता है। दिलों को जोडऩेवाला दशरथ सब बराबर सब बराबर गाता है लेकिन जात-पांत की गहरी खाई में फंसे देश में होते कई प्रयास भी इस खाई को नहीं पाट पाते।       दशरथ मांझी की पत्नी फगुनिया का पैर उस समय पहाड़ से फिसल जाता है जब वह पति के लिए रोटी ला रही होती है। गेहलोर गांव (बिहार में गया के समीप) एक ऐसा गांव ह