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जून, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न्यू यॉर्क के बहाने...

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स्लमडॉग मिलिनेअर के बाद, कल संडे को थिएटर का रुख किया। फिल्मों के मामले में खांटी भारतीय हूं, न्यू यॉर्क तक चली गई।[लगा था की फिल्म एवेंइ होगी] अंधेरे में चमकती रुपहली स्क्रीन स्पंदित करती है और न्यू यॉर्क ने तो दिल और दिमाग दोनों को। कबीर नाम से गहरा फेसिनेशन रहा है। चक दे इंडिया का पात्र कबीर खान भी पसंद रहा. संत कबीर के प्रति गहरी आसक्ति है और अब कबीर खान यानी न्यू यॉर्क के डायरेक्टर। क्या खास है जो न्यूयार्क पर लिखने के लिए बाध्य करता है। कैटरीना, जॉन या नील नितिन मुकेश या फिर हमारे जयपुर के इरफान खान? लेकिन वह घटना जो अमरीकी इतिहास में नासूर की तरह दर्ज हो गई। 9/11 का हादसा कई दिलों में नश्तर चुभो गया। पहले मरने वालों के परिजनों के दिलों में और फिर एक खास मजहब के सीनों में। दर्द में कराहते अमरीका में उन दिनों एफबीआई ने 1200 लोगों को हिरासत में लेकर तफ्तीश की थी जिनका बस नाम ही काफी था। इन कथित कैदियों के दिलों में चुभे नश्तर से फूटता लावा ही न्यू यॉर्क है। प्रख्यात स्तंभकार आदरणीय जयप्रकाश चौकसे जी सही फरमाते हैं कि पाकिस्तानी फिल्म खुदा के लिए´ देखने के बाद न्यू यॉर्क क्लासि

अब कोई अवतार नहीं होनेवाला

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विख्यात पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा के व्याख्यान की समापन किस्त हम पढे़-लिखे देश भी हो रहे हैं। साक्षर देश भी हो रहे हैं। जिम्मेदार निर्वाचन कानून बनाने से मतदाता जिम्मेदार नहीं होगा। और चुनाव आयोग के बूते की भी नहीं है कि वह अपराधियों की पूरी पहचान कर ले। कई बार बडे़ अपराधी भी बडे़ सफेदपोश बन जाते हैं। बडे़ अच्छे रिकॉर्ड्स ले आते हैं। थाने से पंचनामा ही फड़वा देते हैं। तो कई सारा छल-छद्म इसमें होता है। लेकिन मैं शाहिद मिर्जा यदि जयपुर का निवासी हूं तो मैं जानता हूं कि मेरे सांसद महोदय कैसे हैं? किस माजने के हैं? कितने पढे़-लिखे हैं? कितने सक्रिय रहेंगे? जनता से उनको कितना लगाव है? है या नहीं? लेकिन मैं तो पलायनकारी हूं। ना मैं काम करने जाता हूं। मुझे कोई मतलब ही नहीं है कि देश में किस अदा से काम चल रहा है। खासतौर पर शिक्षित मध्यवर्ग है। इसके बारे में पवन वर्मा ने बहुत सुंदर किताब लिखी है, ग्रेट इंडियन मिडिल क्लास। उन्होंने कहा कहा कि भारत की आजादी लाने वाले यही लोग हैं। लेकिन ये ही अब चोट्टे हो गए हैं। ये ही सबसे अधिक भ्रष्ट हो गए हैं। ये शाम को कहते हैं कि देश में बहुत भ्रष्टाचार है ओर सुब

जोधाराम ही जोजेफ क्यों बनते हैं?

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ख्यात पत्रकार शाहिद मिर्ज़ा के व्याख्यान का दूसरा हिस्सा कोई जमील खां, जोजेफ क्यों नहीं बनते? जोधाराम ही जोजेफ क्यों बनते हैं? दंगे से वो भी परेशान हैं। बेरोजगार वो भी हैं। अदक्ष तो वो भी हैं। जैसे जोधाराम हैं वैसे जमील खां हैं। तो इस पर विचार करना चाहिए। मैं हिन्दू नेताओं से कहता हूं। खासतौर पर विश्व हिन्दू परिषद के सभी लोगों से मिलने-जुलने का मौका मिल जाता है। जाति प्रणाली का जिक्र इसलिए किया कि वो अपना उम्मीदवार बनाते हैं। तब यह ध्यान रखते हैं कि अच्छा वो गांव है, यादवों का है। किसी यादव को टिकट दे दो। कोई यादव गाजियाबाद से क्यों नहीं? यादव है तो क्या दिक्कत है। उसे वहां से चुनाव लड़ने दो। मतलब आदमी को भी जाति का टूल बना लिया है और यह बहुत विभाजन करेगा। वोट बैंक पॉलिटिक्स भी इसीलिए हो रही है। तथाकथित तुष्टीकरण की पॉलिटिक्स भी इसी कारण हो रही है। जयपुर विश्वविद्यालय से आई थीं प्रोफेसर। मैंने उनसे कहा कि तुष्टीकरण से मुसलमान का रत्तीभर भी फायदा नहीं होगा। मुसलमान को दो बीघा जमीन नहीं मिली। उनको उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण नहीं मिला। जॉब का वादा नहीं मिला। जीवन जीने की सुरक्षा और द