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दिसंबर, 2009 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जायज हो जिस्मफरोशी ?

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पीला हाउस की असंख्य रंडिये शाम ढलते ही सस्ता पावडर और शोख लिपस्टिक पोत कर खड़ी होने लगी हैं फाकलैण्ड स्ट्रीट के दोनों तरफ क्या बसा है उनकी उजाड़ आंखों में सुकून नहीं इसरार नहीं ललक नही उम्मीद नहीं खौफ हां भूख हां बेचैनी हां अवमानना हां बेपनाह बोझे जैसी बेबसी बसी है पेट और उसके अतराफ अलाव की शक्ल में लोग कहते हैं एड्स दे रही हैं ये रंडियें कोई नहीं कहता हम उन्हें आखिर क्या देते हैं फाकलैंड रोड मुंबई का रेडलाइट एरिया है। विख्यात पत्रकार शाहिद मिर्जा की दो दशक पहले लिखी यह कविता आज भी सवाल करती है कि हम उन्हें आखिर क्या देते हैं। चंद रुपए, दलालों की सोहबत, बेहिसाब बीमारियां, पकड़े जाने पर हवालात, पुलिस की गालियां। और जो कभी जूतों की ठोकरें कम पड़ीं तो यही पुलिस अखबारों में उनकी चेहरा ढकी तस्वीरें दे कर उन्हें सरेआम बेपर्दा कर देती है कि लो देखो ये धंधेवालियां हैं। क्यों बनती हैं ये धंधेवालियां ? पिछले बुधवार को सर्वोच्च न्यायालय ने एक याचिका की सुनवाई करते हुए चौंकाने वाली टिप्पणी की कि सदियों पुराने इस व्यवसाय को यदि कानून के जरिए बंद नहीं किया जा सकता सरकार को इसे वैध कर देना चाहिए। जस्

एक लड़की की डायरी से

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एकता चौहान की कविताएं ये कविताएँ सीधे तेईस साल की एकता चौहान की डायरी से आयी हैं , जब उन्होंने पढ़ाईं तो लगा ताज़ा हवा का झोंका छूकर गुज़र गया. हालाँकि मेरी कविताओं की समझ बहुत सीमित है. हो सके तो आप बेहतर कीजियेगा.बतौर विसुअल डेली न्यूज़ की मगज़ीन खुशबू साथ है. मेरा पता शहर के बीचों-बीच वो जो चार लेन की रोड है दाएं-बाएं बंगले जिसके और बड़े-बड़े मॉल हैं वहीं आगे मोड़ पे एक लंबा काला नाला है घास वहां कचरे में पलती कीचड़ से सनी जमीन है और जो छठा तम्बू , किनारे वही मेरा घर है! 2. संदूक संभालें आओ जरा... गुड़िया,मोती,चवन्नी कहीं फिर से कट्टा ना हो जाएं! 3. सुबह-सुबह जब उठता हूं वो पहले से आ जाती है मैं उन्हें देख मुस्काता हूं वो मुझे देख मुस्काती हैं दाना डालो, भूख लगी है अपनी बोली में बतलाती हैं जाता हूं मैं, ये कह दूं तो हामी में सिर वो हिलाती हैं 4. डूबता है पर्वत के डूबता वो नीर में मन के भीतर डूबता वो डूबता शरीर में उलझा-सुलझा पहेली-सा शंकाओं से घिरा हुआ वो हर अक्षर में डूबता ढूंढता खुद को स्याही की लकीर में 5 चौक में प्रतिदिन तुलसी सींची जाती है प्रतिदिन भोगली से फूंक-फूंक के आंखें भी... ह