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सितंबर, 2008 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

हर मुसलमान आतंकवादी नही होता......

आज सुबह एक अख़बार में एक बड़े लेखक के  लेख की शुरुआत में वही बात थी . हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर अतंकवादी मुसलमान होता हे. हालाँकि लेख में सिख ,नाजी , तमिल हिंदू, तमाम आतंकवादियों का ज़िक्र हे लेकिन निजी तौर पर लगता हे कि यह मज़हबी चश्मा कई बार हमें कमज़ोर करता है. आतंक का कोई धर्म नहीं होता यह हर बार साबित हो रहा हे. मुद्दे पर आते हैं भारतीय मुसलमान पर. उन्होंने लिखा हे वह इस्तेमाल हो रहा है . कोई कब इस्तेमाल होता है? गरीबी अशिक्षा के अलावा एकं और खास कारण है नफरत. हम उन्हें अस्प्रश्य समझते हैं . मुझे याद हे जब मै और मेरे पति किराये पर मकान देखने जाते तो लोग हमारा खूब स्वागत करते. अरे आप इस अख़बार में काम करते हैं आप इन्हें जानतें हैं, उन्हें जानते हैं . कबसे रहने के लिए आयेंगे ? आपका नाम क्या हे? मैं शाहिद मिर्जा और ये मेरी पत्नी वर्षा. हमारी हिंदू मुस्लिम शादी है इसको पकाना आता नही इसलिए नॉन वेज कि चिंता न करें ये लीजिये किराया शाहिदजी कहते ... मकान मालिक का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा है शब्द गुम हो रहे हैं . अभी मेरी बीवी घर पर नहीं है . आप बाद में फोन कर लेना. ऐसा एक बार नही ७७

गाली , मसाज का बॉडी बॉस

सबसे पहले एक कन्फैशन कि तथाकथित फैमिली शो बिग बॉस रोज देखती हूं और मौजूद महिलाओं को निर्वस्त्र करने या होने के उतावलेपन को देख वितृष्णा से भर उठती हूं। शो में स्त्री मानसिक नग्नता की भी शिकार है। या तो बेवजह छोटे-छोटे कपड़े पहन रही है या किसी लड़के से लिपट रही है या फिर लगाई-बुझाई करते हुए रसोई में खाना पका रही है। ये लड़कियां फुटेज के लिए किसी भी हद तक गिर रहीं हैं। एक ही लक्ष्य है कि बिग बॉस के घर में रहते हुए ज्यादा से ज्यादा निर्माता, निर्देशक उनकी त्वचा के दर्शन कर लें और यहां से निकलते ही ऑफर्स के अंबार से उनकी झोली भर जाए। दरअसल बिग बॉस को एक फॅमिली शो बताया जा रहा है। इसमें सेलेब्रिटीज (जिनके खाते में विवाद के अलावा कुछ दर्ज नहीं ) को एक घर में बंद कर दिया जाता है। तीन महीनों के लिए बाहर की दुनिया से कटकर ये अपना खाना-पीना लड़ना-झगड़ना, मोहब्बत-नफरत जारी रखते हैं। घरवाले सदस्यों को एक-एक करके बाहर निकालने की साजिश रचते हैं और बाहर वाली जनता उन्हें एसएमएस कर बचाने की कोशिश करती हैं। कनसेप्ट और कमाई के लेवल पर शो नंबर वन है। शो में शामिल आइटम डांसर संभावना सेठ, अबू सलेम की पू

हत्या के बाद चीरहरण

आखिर क्यों पुलिस हर तहकीकात की शुरूआत ही महिला पीडि़ता के चरित्रहनन से करती है वह भी हत्या की शिकार महिला के । अखबार -चैनल उसे परम सत्य मानकर छापते -दिखाते हैं? गोआ में स्कारलेट हो या नोएडा में आरूषि या जयपुर में मारी गई ये तीन लड़कियां । हाल ही में जयपुर की एक युवती की सेन्ट्रल पार्क में एक हत्यारे ने गला रेत कर हत्या कर दी। नाम, परिचय, काम के पचड़े में न पड़ें क्योंकि वह किसी भी शहर की कोई भी लड़की हो सकती है। वह उन हजारों मध्यवगीüय लड़कियों में से एक थी जो पढ़ी-लिखी थी, कुछ बनना चाहती थी और हाल-फिलहाल एक बैंक नौकरी कर रही थी। जिंदगी है कई लोग मिलते हैं। कोई शायद ऐसा भी होगा जिससे थोड़ी नजदीकियां रही होंगी लेकिन पुलिस ने जिस तरह से कहानी पेश करने की कोशिश की है उससे लगता है कि दोनों में अथाह प्रेम था और प्रेम परिणति पर नहीं पहुंचा इसलिए यह हत्या हुई। क्या है यह एक हत्या को `डायल्यूट´ करने की कोशिश नहीं है? बताया गया है लड़के की शादी कहीं ओर हो रही थी, लड़की ने विरोध किया इसलिए लड़के ने उसे मार दिया। एक तरफ पुलिस लड़के को प्रेमी बता रही है और दूसरे ही पल उस प्रेमी के कहीं ओर शादी कर