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फक्र के फूल

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हेमंत करकरे ने सीने पर गोलियां खाई जिस पर नेता तोहमत लगा रहे थे कि वे पूर्वाग्रही हैं करकरे अगर पूर्वाग्रही हैं तो सारा देश ऐसा हो जाए । सबसे पहले ये नेता ... जिस धज से कोई मकतल में गया वो शान सलामत रहती है ये जान तो आनी जानी है इस जां की तो कोई बात नहीं बकौल फैज़ अहमद फैज़ मुंबई मोर्चे पर अपना सर्वस्व त्याग करने वाले जांबाजों की शान निस्संदेह सदियों तक सलामत रहेगी। यह रुखसती फक्र के साथ है। क्रंदन ,विलाप ,जुगुप्सा भी है लेकिन नेताओं के लिए । हेमंत करकरे ,संदीप उन्नीथन और गजेन्द्र सिंह बेहद प्रखर ,पढ़े -लिखे ,फिट , काबिल और अपने काम में निष्णात रहे । ए टी एस प्रमुख चाहते तो नीचे आर्डर पास कर सकते थे लेकिन उन्होंने मोर्चा संभाला । अपेक्षाकृत कमज़ोर बुलेटप्रूफ ,हेलमेट जो उनका नहीं था और रायफल के साथ मैदान में कूद पड़े । सीने पर गोलियां खाई जिस पर नेता तोहमत लगा रहे थे कि वे पूर्वाग्रही हैं । करकरे अगर पूर्वाग्रही हैं तो सारा देश ऐसा हो जाए । सबसे पहले ये नेता जो सिवाय एक सोच रखने के कुछ नहीं कर पाये। कोई उसके पक्ष में कोई इसके । बराबरी की नज़र कभी किसी की नहीं रही अगर हो पाती त

पाकीजा काम

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बेशक शब्द कवि के दिल से आते हैं .तेरह साल पहले लिखी इस कविता का एक एक शब्द वक़्त के साथ अर्थ ग्रहण करता चला गया .समय के साथ शब्दों को सार्थक होते देखने के अनूठे अनुभव की समय साक्षी मैं शाहिद मिर्जा की इस कविता को पहली बार ब्लॉग पर दे रही हूँ .समय और शब्द की चेतना को समर्पित एक पत्रकार की रचना शायद पसंद आए प्रेम नहीं है सौ मीटर फर्राटा दौड़ मैराथन है प्रेम अछोर मेराथन प्रेम क्रिकेट में दोनों पक्ष सगर्व खेलना चाहतें हैं फोलोऑन क्यों बिल्कुल भी ज़रूरी नहीं ग़ालिब की नाई निकम्मा हो जाना इश्क फरमाते हुए गो ज्यादातर बार होता यही है बावजूद प्रेम से जुड़ी तमाम कथाओं किम्वदंतियों के और बावजूद इस यथार्थ के कि अरसे से जर्द पड़ गए हैं प्रेम नाम की तमाम पातियों के रंग मुहैया करनी है मुझे ही प्रेम को अपूर्व गरिमा , गहराई सादगी और अर्थ देना है प्रेम को हूबहू प्रेम की शक्ल रचना है हज़ारराहा भयावह हददर्जा जहरआलूद हवाओं के मुकाबिल नाज़ुक और कारगर प्रतिरोध नहीं जानता ये काम ठीक ठीक अंजाम दे पाउँगा या नहीं लेकिन इन दिनों इस नियाहत वाहियात दौर में यही हे सबसे ज़रूरी और पाकीजा काम

काले नहीं हैं ओबामा

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ओबामा न तो काले हैं ना ही गोरे, `काले-गोरे´ हैं। काले पिता और गोरी मां की संतान। हाइब्रिड ओबामा। संकरित ओबामा। सारी दुनिया एक जैसी सोच की शिकार है। फिफ्टी-फिफ्टी को सौ फीसदी काला बना दिया। बहरहाल दो संस्कृतियों में पला-बढ़ा शख्स दुनिया को एक आंख से तो नहीं देखेगा। उम्मीद की जानी चाहिए कि वे ब्लैक एंड वाइट के बीच बिखरे बहुत से रंगों की पहचान रखते होंगे ओबामा..ओबामा..ओबामा.. हर तरफ यही गूंज। सोचा था ब्लॉग पर नहीं करूंगी ओबामा का जिक्र। कुछ लोगों की तकलीफ भी थी कि ओबामा अमेरिका के राष्ट्रपति बने हैं हमारे नहीं। वह अमेरिका जो दुनिया पर दादागिरी करने में यकीन रखता है। ओबामा भी अमेरिकी प्रशासन का मोहरा भर होंगे।राष्ट्रपति ओबामा बने या मैक्केन हम क्यों फूल कर कुप्पा हुए जा रहे हैं। माफ कीजिएगा दोस्तो, फूलने की वजह है। वे युवा हैं। इतना बढ़िया बोलते हैं कि अमेरिकी ही नहीं, दुनिया के किसी भी हिस्से में रहने वाला वोटर उन्हें वोट देने का मन बना लेता है। वे पत्नी मिशेल और दो बेटियों के साथ पारिवारिक मूल्यों में भरोसा करते हुए नजर आते हैं और लास्ट बट नॉट लीस्ट, वे काले हैं। हमारे जैसे काले, जिनका ग

हैप्पी रावण सा...

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थोडी देर पहले हुआ एक छोटा सा संवाद पेश है । me: हैप्पी रावण सा abhishek3939: रावण कोई इतनी अच्छी चीज नहीं है। ।बुराई का प्रतीक चारों तरफ़ रावणabhishek3939: रावण 2008 पर सद् विचार ....???me: रावण मुझे अच्छा लगने लगा है 100 रूपए पर फीट का रावणबच्चों को भी खुश कर देता है सीता को स्पर्श भी नहीं कियाआज कल रेप मर्डर सब कुछ नॉन रावण कर रहेabhishek3939: आज कल की सीताओं पर आपके सद् विचार me: त्रेता युग की सीता ने भी लक्ष्मण रेखा तो लांघी थीलेकिन इससे रावण का अपराध कम तो नहीं माना गया यही फर्क है कल युग और त्रेता युग के नज़रिए का abhishek3939: बोलो रावण महाराज की ...जयme: आप क्यों सहमत हो रहे हैंabhishek3939: आपसे सहमत हो रहा हूँ दरअसल आज का आदमी उस रावण से कहीं ज्यादा खतरनाक सिद्ध हो रहा है..... me: शुक्रिया 2:23 जुगल किशोर शर्मा का यह फोटो जयपुर की गुर्जर की थडी का है जहाँ सैकडों की तादाद में रावण बिकने लिए आए हैं

हर मुसलमान आतंकवादी नही होता......

आज सुबह एक अख़बार में एक बड़े लेखक के  लेख की शुरुआत में वही बात थी . हर मुसलमान आतंकवादी नहीं होता लेकिन हर अतंकवादी मुसलमान होता हे. हालाँकि लेख में सिख ,नाजी , तमिल हिंदू, तमाम आतंकवादियों का ज़िक्र हे लेकिन निजी तौर पर लगता हे कि यह मज़हबी चश्मा कई बार हमें कमज़ोर करता है. आतंक का कोई धर्म नहीं होता यह हर बार साबित हो रहा हे. मुद्दे पर आते हैं भारतीय मुसलमान पर. उन्होंने लिखा हे वह इस्तेमाल हो रहा है . कोई कब इस्तेमाल होता है? गरीबी अशिक्षा के अलावा एकं और खास कारण है नफरत. हम उन्हें अस्प्रश्य समझते हैं . मुझे याद हे जब मै और मेरे पति किराये पर मकान देखने जाते तो लोग हमारा खूब स्वागत करते. अरे आप इस अख़बार में काम करते हैं आप इन्हें जानतें हैं, उन्हें जानते हैं . कबसे रहने के लिए आयेंगे ? आपका नाम क्या हे? मैं शाहिद मिर्जा और ये मेरी पत्नी वर्षा. हमारी हिंदू मुस्लिम शादी है इसको पकाना आता नही इसलिए नॉन वेज कि चिंता न करें ये लीजिये किराया शाहिदजी कहते ... मकान मालिक का चेहरा सफ़ेद पड़ रहा है शब्द गुम हो रहे हैं . अभी मेरी बीवी घर पर नहीं है . आप बाद में फोन कर लेना. ऐसा एक बार नही ७७

गाली , मसाज का बॉडी बॉस

सबसे पहले एक कन्फैशन कि तथाकथित फैमिली शो बिग बॉस रोज देखती हूं और मौजूद महिलाओं को निर्वस्त्र करने या होने के उतावलेपन को देख वितृष्णा से भर उठती हूं। शो में स्त्री मानसिक नग्नता की भी शिकार है। या तो बेवजह छोटे-छोटे कपड़े पहन रही है या किसी लड़के से लिपट रही है या फिर लगाई-बुझाई करते हुए रसोई में खाना पका रही है। ये लड़कियां फुटेज के लिए किसी भी हद तक गिर रहीं हैं। एक ही लक्ष्य है कि बिग बॉस के घर में रहते हुए ज्यादा से ज्यादा निर्माता, निर्देशक उनकी त्वचा के दर्शन कर लें और यहां से निकलते ही ऑफर्स के अंबार से उनकी झोली भर जाए। दरअसल बिग बॉस को एक फॅमिली शो बताया जा रहा है। इसमें सेलेब्रिटीज (जिनके खाते में विवाद के अलावा कुछ दर्ज नहीं ) को एक घर में बंद कर दिया जाता है। तीन महीनों के लिए बाहर की दुनिया से कटकर ये अपना खाना-पीना लड़ना-झगड़ना, मोहब्बत-नफरत जारी रखते हैं। घरवाले सदस्यों को एक-एक करके बाहर निकालने की साजिश रचते हैं और बाहर वाली जनता उन्हें एसएमएस कर बचाने की कोशिश करती हैं। कनसेप्ट और कमाई के लेवल पर शो नंबर वन है। शो में शामिल आइटम डांसर संभावना सेठ, अबू सलेम की पू

हत्या के बाद चीरहरण

आखिर क्यों पुलिस हर तहकीकात की शुरूआत ही महिला पीडि़ता के चरित्रहनन से करती है वह भी हत्या की शिकार महिला के । अखबार -चैनल उसे परम सत्य मानकर छापते -दिखाते हैं? गोआ में स्कारलेट हो या नोएडा में आरूषि या जयपुर में मारी गई ये तीन लड़कियां । हाल ही में जयपुर की एक युवती की सेन्ट्रल पार्क में एक हत्यारे ने गला रेत कर हत्या कर दी। नाम, परिचय, काम के पचड़े में न पड़ें क्योंकि वह किसी भी शहर की कोई भी लड़की हो सकती है। वह उन हजारों मध्यवगीüय लड़कियों में से एक थी जो पढ़ी-लिखी थी, कुछ बनना चाहती थी और हाल-फिलहाल एक बैंक नौकरी कर रही थी। जिंदगी है कई लोग मिलते हैं। कोई शायद ऐसा भी होगा जिससे थोड़ी नजदीकियां रही होंगी लेकिन पुलिस ने जिस तरह से कहानी पेश करने की कोशिश की है उससे लगता है कि दोनों में अथाह प्रेम था और प्रेम परिणति पर नहीं पहुंचा इसलिए यह हत्या हुई। क्या है यह एक हत्या को `डायल्यूट´ करने की कोशिश नहीं है? बताया गया है लड़के की शादी कहीं ओर हो रही थी, लड़की ने विरोध किया इसलिए लड़के ने उसे मार दिया। एक तरफ पुलिस लड़के को प्रेमी बता रही है और दूसरे ही पल उस प्रेमी के कहीं ओर शादी कर

एक मुलाकात शहनाई के उस्ताद से

२८ जून 1995 को शहनाई के उस्ताद बिस्मिल्लाह खां से रूबरू होना किसी जादुई अनुभव से कम नहीं था .तेरह साल पहले इन्दौर के होटल में जब बातचीत का सिलसिला शुरू हुआ तो लगा उस्ताद शहनाई के ही नहीं तबीयत के भी शहंशाह है। यकायक एक मोहतरमा ने आकर पूछा -यहां आपको कोई तकलीफ तो नहीं? हमसे कोई गलती तो नहीं हुई? खां साहब कहां चुप रहने वाले थे तुरंत बोल पडे़-गलती तो आप कर चुकी हैं, लेकिन यह खूबसूरत गलती आप फिर दोहरा सकती हैं। इतना कहकर वे खुद भी ठहाका मारकर हंस पड़े। खां साहब के लबों पर जब शहनाई नहीं होती तब जुबां कब एक राग से निकलकर दूसरे में प्रवेश कर जाती, पता ही नहीं लगता था। बनारस और बिस्मिल्लाह का क्या रिश्ता है? बनारस को अब वाराणसी कहा जाने लगा है यूं तो बनारस के नाम में ही रस है। वहां की हर बात में रस है। हम पांच या छह साल के थे जब बनारस आ गए थे। एक तरफ बालाजी का मंदिर दूसरी ओर देवी का और बीच में गंगा मां। अपने मामू अली खां के साथ रियाज करते हुए दिन कब शाम में ढल जाता पता ही नहीं चलता था। आज के लड़कों की तरह नहीं कि सबकुछ झटपट पाने की चाह रही हो। पैर दबाए हैं हमने उस्ताद के। जूते पॉलिश किए हैं।

सॉरी बिप्स .. हार गए विजेंद्र

विपाशा बासु का छः फुट के विजेंद्र के साथ डेट पर जाने का ख्वाब अधूरा रह गया । उनका सपना तोडा हे खानदानी boxer एमिलियो कोरिया ने । वे क्यूबा के हैं और जबरदस्त मुक्केबाज़ हैं । हमारे विजुभैया को कासे के साथ ही संतोष करना पड़ेगा । वैसे इस बांग्ला ब्यूटी की कोई गलती नहीं उन्होंने प्रोतसाहित करने में कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी ।तमाम सरकारों ने जहाँ धन वर्षा कर दी वहीं बीप्स ने डेट पर जाने का प्रस्ताव कर दिया । देश भिवानी के इस handsom मुक्केबाज़ और बॉलीवुड की हॉट ऐक्टर विपाशा की मुलाकात से तो महरूम रहा ही गोल्ड से भी चूक गया .वरना आज हमारे पास दो गोल्ड होते । सॉरी दोस्तों.. क्रिकेट -बॉलीवुड का मेल तो बहुत देखा लेकिन बोक्सिंग-बॉलीवुड का यह बेमिसाल जोड़ नहीं देख पाये विपाशा का प्रयास ज़रूर सराहा जाना चाहिए । बहरहाल विजेंद्र को बधाई क्योंकि छोटे शहरों से क्या खूब झोला उठाया हे उन्होंने ।

माँ को मिले मारने का हक़ ?

निकिता और हरेश मेहता ने अदालत से गुजारिश की थी कि उन्हें छह माह के गर्भस्थ शिशु को मारने की इजाजत दी जाए क्योंकि उसके दिल में छेद है और वह दुनिया में आकर सामान्य जिंदगी नहीं बसर कर सकता। एक सीधी सपाट राय हो सकती है कि मां को यह हक होना चाहिए लेकिन उस मां का क्या जिसका बच्चा पैदा होते ही मेनेनजाइटिस (दिमागी बुखार) का शिकार हो मानसिक विकलांग हो जाता है? वह मां जिसका बच्चा अस्पताल की लापरवाही से इन्क्यूबेटर में ही बुरी तरह झुलस जाता है? वह मां जिसका नवजात पोलियो का शिकार होकर हमेशा के लिए अपाहिज हो जाता है? तो क्या ये माताएं अपने प्रेम का मोल-तोल करने लग जाती हैं? कवि प्रयाग शुक्ल की पंक्तियां है- तुम घटाना मत अपना प्रेम तब भी नहीं जब लोग करने लगें उसका हिसाब ठगा हुआ पाओअपने को एक दिन तब भी नहीं। मत घटानाअपना प्रेम बंद कर देगी तुमसे बोलना धरती यह, चिडि़या यह,घास घास यह मुंह फेर लेगा आसमा न नहीं , तुम नहीं घटाना अपना प्रेम । प्रेम की यही परंपरा अब तक हमारी आंखों ने देखी है। मां का प्रेम, जहा आकर सारे शक दम तोड़ देते हैं। सर्वाधिक प्रेम तो कमजोर संतान पर ही बरसता है। गर्भ में बीज पड़ते ही

शाहिद मिर्जा की एक कविता

फाकलैण्ड रोड पीला हाउस की असंख्य रंडिये शाम ढलते ही सस्ता पावडर और शोख लिपस्टिक पोत कर खड़ी होने लगी हैं फाकलैण्ड स्ट्रीट के दोनों तरफ क्या बसा है उनकी उजाड़ आंखों में सुकून नहीं इसरार नहीं ललक नही उम्मीद नहीं खौफ हां भूख हां बेचैनी हां अवमानना हां बेपनाह बोझे जैसी बेबसी बसी है पेट और उसके अतराफ अलाव की शक्ल में लोग कहते हैं एड्स दे रही हैं ये रंडियें कोई नहीं कहता हम उन्हें आखिर क्या देते हैं?

जिंदगी में कभी कभी

खुशबू की आवरण कथा में इस बार न कुछ उजागर करने की मंशा है और न किसी ज्वलंत मुद्दे पर किसी की टीका टिप्पणी। जिंदगी में कभी-कभी कुछ ऐसा हो जाता है जिसके लिए हम बिलकुल प्रस्तुत नहीं होते हैं और तो और यह सोचते हैं कि यदि हमारे साथ ऐसा होता तो कम से कम हम तो यह गलती कभी नहीं करते। किसी भी भारतीय स्त्री के लिए बच्चे सबसे बड़ी धुरी होते हैं। एक चुंबकीय आकर्षण बच्चों की खातिर वह बहुत कुछ ऐसा करती है जो उसकी सोच और चाहत के बिलकुल उल्टा होता है। उसे यह भी लगता है कि यदि मैंने कुछ किया तो बच्चों की जिंदगी तबाह हो जाएगी। क्या वाकई ऐसा है? जयपुर की एक महिला है उम्र पचास के आसपास। दो बच्चे भी हैं ।शादी चली नहीं। तलाक लिया। इस बीच कोई दूसरा करीब आया। यकीन नहीं हुआ कि दुनिया इतनी खूबसूरत हो सकती है और किसी से इतनी ट्यूनिंग भी। रिश्ता जारी है। समझ की राह भी परस्पर लंबी होती जा रही है। फिर बच्चे? वो तो तबाह हो गए होंगे। इमोशनली पूरी छिन्न -भिन्न। शरत्चन्द्र के नायक की तरह टूटे, उखड़े और दिशाहीन। नहीं जनाब। वह दौर अब गया। आज के बच्चे एक हद तक ही चीजों को अपने ऊपर हावी होने देते हैं। खुदपरस्त (आत्मकेंदि्

कुंठित कनेक्शन

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स्त्री-पुरुष संबंध, सृष्टि की बेहद भरोसेमंद बुनियाद। परस्पर विपरीत होकर भी एक-दूसरे के लिए समर्पित । ऐसा समभाव जहां न कोई छोटा न बड़ा। बावजूद इसके जब हम आधी दुनिया में झांकते हैं तो यह खूबसूरत कनेक्शन एक कुंठित कनेक्शन बतौर सामने आता है। इस कुंठा से घर भी महफूज नहीं। हर चेहरे की अपनी कहानी है। सदियों से होते आए व्या भिचार में आज बड़ा टि्वस्ट आया है। आज की लड़की तूफान से पहले ही किसी सायरन की तरह गूंज जाना चाहती है.. हर कहानी के पहले चंद पंक्तियां होती हैं-`इस कहानी के सभी पात्र काल्पनिक हैं। इनका सच होना महज संयोग हो सकता है, लेकिन हम स्पष्ट करना चाहते हैं कि खुशबू की कथा के सभी पात्र सच्चे हैं और इनका सच होना महज संयोग नहीं, बल्कि वास्तविक होगा।´ सजला अपने नाम के उलट थी। रोना-धोना उसकी फितरत के विपरीत था, लेकिन आज आंखें बह रही थीं। पन्द्रह साल की काव्या ने जो यथार्थ साझा किया था, उसे सुनकर वह कांपने लगी थी। काव्या ने बताया कि पिछले रविवार जब हम मौसाजी के घर गए थे तो ऊपर के कमरे में काव्या को अकेली देख उन्होंने उसे बाहों में भींचकर किस करने की कोशिश की। काव्या ने अपने पूरे द