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जुलाई, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

न चीर होंगे न हरण होगा !!!

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पिछले दिनों कनाडा के टोरंटो शहर में एक पुलिस कांस्टेबल ने महिला विद्यार्थियों से कह दिया कि अवॉइड ड्रेसिंग लाइक स्लट्स...... पुलिसवाला नहीं जानता था कि उसकी इस एक टिप्पणी से तूफान आ जाएगा और स्लट वॉक नाम का आंदोलन शुरू हो जाएगा। महिलाएं कम कपड़े पहनकर सड़कों पर निकल आएंगी और  कहेंगी देखो कपडे कम हो या पूरे छेड़छाड़ न हो इसके लिए कपड़े नहीं वह  मानसिकता जिम्मेदार है जो ऐसा करना  अपना हक़ समझती है .  आंदोलन की सोच ने समूचे कनाडा और अमेरिका को झकझोर डाला। महिलाओं ने यह बताने की कोशिश की कि अगर कम कपड़े पहनने पर आप हमें स्लट् यानी फूहड़, कुलटा और ढीठ की संज्ञा देंगे तो यही सही। ऐसा कहकर आप अपराधी को तो बरी कर देते हैं और स्त्री को अपराधी ठहरा देते हैं। यह और बात है कि सकारात्मक भाव के साथ दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी.के. गुप्ता भी यही कह चुके हैं कि देर रात किसी महिला को बाहर निकलना हो तो वह अपने रिश्तेदार या फ्रेंड के साथ हो। जाहिर है पुलिस प्रशासन यह स्वीकार चुका है कि महिलाएं अपने भरोसेमंद पुरुष के साथ ही ज्यादा सुरक्षित हैं। जब स्त्री अपने-आप में ही असुरक्षित है तो उसके कपड़े और कम

दो बच्चों के साथ लापता मां का सुराग नहीं

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खाली छोड़े गए फ्रेम में आप एक स्त्री और दो बच्चों की तस्वीर की कल्पना कर लीजिए। दो बच्चों के साथ लापता मां का सुराग नहीं शीर्षक के साथ यह खबर मय तस्वीर के मंगलवार को जयपुर के एक एक बड़े अखबार में प्रकाशित हुई है । खबर के अनुसार थाने में 13 जुलाई को रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि 12 जुलाई को सुबह ग्यारह बजे उसकी [पति का नाम ] पत्नी (27), बेटी (11) और बेटा (2) के साथ कहीं चली गई। उसके पास चालीस हजार रुपए भी हैं। यह रकम पति ने मकान का पट्टा प्राप्त करने के लिए दी थी। पति और उसके परिजनों ने महिला को किसी व्यक्ति द्वारा बहलाकर ले जाने की आशंका व्यक्त की है। सवाल यह उठता है कि किसी भी महिला की तस्वीर छापकर या उसे 'भगौरिया घोषित कर हम क्या बताना चाहते हैं। वह  वयस्क और दो बच्चों की मां है। बच्चे भले ही नाबालिग हों, मां बालिग है और अपने फैसले ले सकती है। ऐसी खबरें किसी भी स्त्री के आत्न्सम्मान को ठेस ही पहुंचाएगी। यह कहकर भी अपमान किया गया है कि कोई उसे बहला-फुसलाकर ले गया और वह चालीस हजार रुपए लेकर गई है यानी चोर कहने से भी कोई बाज नहीं आया है। यह सूचना मय स्त्री और बच्चों की तस्वीर के

मेरे करीब मेरे पास

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यादों में मसरूफ़ एक सुबह तुम्हारे आते ही भीग जाती हैं ये आंखें इतनी शिद्दत से कोई नहीं  आता मेरे पास ये जो धरती का सिंगार देख रहे हो इन दिनों   इतना हरापन तुम्हीं से आया है मेरे पास   हर मुश्किल हालात में मेरा तेरी ओर ताकना अब कहीं से कोई जवाब नहीं आता मेरे पास टू टते तारे का नज़र आना भी अच्छा होता है कभी गम में शरीक होने ही आ जाओ मेरे पास ये जो मधुर कलरव हमारे पंछियों का है तुम हो यहीं मेरे बेहद करीब मेरे पास

जान का सदका

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मैं फिर जिंदा हो जाना चाहती हूँ तेरी जान का सदका लेना चाहती हूँ   नज़र ए बद से दुआ का सफ़र एक  पल में करना चाहती हूँ   ये जो ख्वाहिश  दिल ने की है  अल सुबह तेरे ज़ख्मों में खुद को पैबस्त करना चाहती हूँ  माजी कहकर भूलने को न कहना दोस्त स्वर्णिम दौर को लौटा लाना चाहती हूँ   पाषाण युग से यही आरज़ू  रही है मेरी तेरे लिए  कायनात किनारे कर देना चाहती हूँ   यह लोह - ओ-क़लम   भी ले जा रहा है तेरे  करीब मैं तो बस इसमें सवार हो जाना चाहती हूँ   होगी जब कभी क़यामत एक रोज़  मैं  पूरी तरह सज जाना चाहती हूँ

जीना नहीं आएगा

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 इसमें न कविता की लय है न ग़ज़ल का सलीका ...एक असर है जो बस मुखर हो जाना चाहता है . . . तेरे बिना जीना नहीं आएगा बिन बरसे सावन  कैसे जाएगा   बेमायने है सहज होने की कल्पना समंदर अपना अक्स छोड़  ही जाएगा       ये जो सीली-सीली सी आँखें हैं मेरी एक दिन आएगा पानी सूख जाएगा जानते हो वह दिन क़यामत का होगा तेरा-मेरा सिलसिला फिर जुड़ जाएगा     इसे विलाप का आलाप न समझना दोस्त आस का यह दिया अब नहीं बुझाया जाएगा