दो बच्चों के साथ लापता मां का सुराग नहीं
खाली छोड़े गए फ्रेम में आप एक स्त्री
और दो बच्चों की तस्वीर की कल्पना
कर लीजिए। दो बच्चों के साथ लापता
मां का सुराग नहीं शीर्षक के साथ यह खबर मय तस्वीर के मंगलवार को जयपुर के एक एक बड़े अखबार में प्रकाशित हुई है । खबर के अनुसार थाने में 13
जुलाई को रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि
12 जुलाई को सुबह ग्यारह बजे उसकी [पति का नाम ]
पत्नी (27), बेटी (11) और बेटा (2)
के साथ कहीं चली गई। उसके पास
चालीस हजार रुपए भी हैं। यह रकम
पति ने मकान का पट्टा प्राप्त करने के
लिए दी थी। पति और उसके परिजनों ने
महिला को किसी व्यक्ति द्वारा बहलाकर
ले जाने की आशंका व्यक्त की है।
सवाल यह उठता है कि किसी भी
महिला की तस्वीर छापकर या उसे
'भगौरिया घोषित कर हम क्या बताना
चाहते हैं। वह वयस्क और दो
बच्चों की मां है। बच्चे भले ही नाबालिग
हों, मां बालिग है और अपने फैसले ले सकती है। ऐसी खबरें किसी भी
स्त्री के आत्न्सम्मान को ठेस ही
पहुंचाएगी। यह कहकर भी
अपमान किया गया है कि कोई उसे
बहला-फुसलाकर ले गया और वह
चालीस हजार रुपए लेकर गई है यानी
चोर कहने से भी कोई बाज नहीं आया
है। यह सूचना मय स्त्री और बच्चों की
तस्वीर के है। एक किशोर होती बच्ची
और मासूम बेटे को गैर-इरादतन दंडित
करने की यह मिसाल समाज में स्त्री को
अपनी भूमिका पर गौर करने के लिए
प्रेरित करती है।
शायद यहां पत्रकार का इरादा उस
महिला का सुराग भर लगाने का रहा
हो, लेकिन एक अखबार किस हद तक जाकर सुराग लगाने की कोशिश कर
सकता है इस पर भी विचार ज़रूरी है .यह मीडिया डॉन [मुग़ल नहीं] रूपर्ट मर्डोक से कम बड़ा अपराध नहीं कि लोगों की निजता में इतना दखल हो और स्त्री का घर से जाना भी सुर्ख़ियों में हो .
ऐसी ही अवमानना से स्त्री को बचाने के
लिए सर्वोच्च न्यायालय ने बलात्कार जैसे
मामलों में स्त्री का नाम न छापने के दिशा निर्देश दिए हैं, यहां तक कि
वेश्यावृत्ति कानून के तहत आप उनकी
तस्वीर भी आम नहीं कर सकते। न्याय
प्रक्रिया के दौरान भी बलात्कार पीड़िता की पहचान
उजागर करना जरूरी नहीं है। रास्ते
निकाल लिए गए है मुंह पर कपड़ा
डालकर तस्वीरें छाप दी जाती हैं।
बहुत कम पीडि़त स्त्रियां इस हिम्मत के साथ सामने आई होंगी कि हां
हमें इंसाफ चाहिए, हमारे साथ हुआ है
अन्याय। दरअसल, समूची परिस्थितियां
ही काफी शर्मिंदगी उठाने वाली होती हैं,
जो उन्हें बलात्कार जैसी दरिंदगी जितनी
ही खौफनाक लगती हैं।
बहरहाल भारतीय दंड विधान की
धारा 366 के तहत किसी महिला को
उसकी मर्जी के खिलाफ ले जाने
और उसके साथ ज्यादती करने पर
अधिकतम दस साल की सजा और
जुर्माने का प्रावधान है। आपराधिक
खबरों को पढ़ते हुए पाठक महसूस
करता है कि वह एक बने बनाए फ्रेम में
होती हैं, जैसे मामला दर्ज करने से
पहले उसे कानूनी धाराओं में फिट
करना हो। इन ख़बरों में अक्सर लड़कियां या महिलाएं
बहला-फुसलाकर ही ले जाई जाती हैं,
वे घर से धन लेकर भी भागी होती हैं।
इस मामले में भी यही है। स्त्री की
तस्वीर देकर उसे घोषित अपराधी बना दिया गया है।
कई वर्षों से अखबार में क्राइम
रिपोर्टिंग संभाल रहे
वरिष्ठ पत्रकार का कहना है- ऐसे
मामले वाकई संवेदनशील हैं किसी ने
इस बारे में आवाज नहीं उठाई, इसलिए
ऐसा चल रहा है। यहां अखबार और
पुलिस का इरादा महिला को नुकसान
पहुंचाने का नहीं होगा, लेकिन ऐसा हो
जाता है। ऐसी खबरों से दूरी बरता जाना
ही बेहतर होता है।
दरअसल, हमारी निगाह में महिला
के निर्णय का कोई मान नहीं है। यही
माना जाता है कि वह इस्तेमाल
हो सकती है। कोई स्त्री कभी अपने पति
के लिए ऐसा मुकदमा दर्ज नहीं करा
सकती कि उसका पति पैसे लेकर दो
बच्चों के साथ चला गया है। यह तो
उसका हक है, वह जहां चाहे जाए। न
मुकदमा दर्ज होगा, ना अखबार में
तस्वीर छपेगी।
स्त्री को अब भी अबोध [ बेवक़ूफ़ भी ] और मिल्कियत
माना जाता है, लेकिन पिछले कुछ बरसों
से शहरी इलाकों में शिक्षा पर दिए जा
रहे जोर से उसमें फैसला लेने की ताकत
आई है। उसके फैसलों को नासमझी
और नादानी बताने की होड़ चारों तरफ
है। ऐसे में कई बार वह जलील भी की
जाती है। अपने फैसलों को मान दिला
पाने की लड़ाई लंबी है। कई बार उसके
दिमाग पर देह को हावी कर दिया जाता
है। स्त्री देह पाने का मतलब यह नहीं है
कि वह दिमाग भी नाजुक-सा लेकर
पैदा हुई है। उसे गरिमा से जीने का हक
तो हमें देना ही होगा। यूं बेवजह अपराधी
बनने के लिए उसे भी प्रस्तुत नहीं होना
चाहिए। खुद को बुलंद करने के बाद ही
खुदा की रजामंदी मिलती है।
खुद को बुलंद करने के बाद ही
जवाब देंहटाएंखुदा की रजामंदी मिलती है।
सच कहा आपने।
बहुत गंभीर प्रश्न है. उससे भी अधिक इसे गंभीरता से उठाने का साधुवाद.
जवाब देंहटाएंआपके शब्द खाली न जाएंगे.
इस महत्वपूर्ण विषय को इतनी सार्थकता से उठाने के लिए आपका बहुत बहुत आभार...
जवाब देंहटाएंखबर मर्द लिखते है... महिलाएँ भुगतती हैँ...
जवाब देंहटाएंpraveenji, k c, ranjanaji aur premchandji aabhaar.
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