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घर टूट रहे हैं

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वह पिता है। उम्र कोई तीस-बत्तीस साल। दो साल की बेटी के उस पिता की आंख में आंसू थे। जाने कैसा दुखद संयोग था कि वह फादर्स डे के दिन ही रो रहा था जबकि उसे पता ही नहीं था कि आज फादर्स डे है क्योंकि वह पिछले पांच दिन से परेशान था। उसकी पत्नी बेटी को लेकर मायके चली गई थी और अब लौटना नहीं चाहती थी। सासू मां से झगड़ा हुआ और वह चल दी। कह दिया कि अब मुझे लेने आने की जरूरत नहीं मैं आप लोगों के साथ नहीं रह सकती। बहू के इस रवैये से खिन्न परिवार दो साल की पोती को नहीं भूल पा रहा हंै और उसे याद करते ही सबकी आवाज रूंधने लगती हैं।     अकसर हम कहानी के उस छोर पर होते हैं जहां बहू होती है। वह ससुराल में रहते हुए आपबीती सुना रही होती है जिसमें उसके सपनों के टूटने और कष्टों का ब्योरा होता है। इस बार ससुराल पक्ष था। उसकी शिकायत थी कि बहू को साफ-सफाई की समझ नहीं है। उसे बच्ची को पालना नहीं आता है। वह कभी हंसती भी नहीं है। जब-तब अगले मोहल्ले में अपने मायके जाना चाहती है। सुबह दस बजे से रात आठ बजे तक नौकरी करती है। घर का काम भी करती है तो टालते हुए। बेटा कहता है कई बार मैंने उससे कहा कि जॉब बदल ले। छह बजे त