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सितंबर, 2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

कोई क्यों बहाए एशियाड के लिए पसीना

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पिंकी प्रमाणिक याद हैं आपको? पश्चिम बंगाल की एथलीट पिंकी जिसने 2006 के दोहा एशियाड में 4 गुणा 100 रिले टीम में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। अफसोस कि ये पिंकी अब इस नाते से अपनी पहचान नहीं रखती। वे उस आरोप से पहचानी जाती हैं जिसे उनकी साथी अनामिका आचार्य ने लगाया था। अनामिका ने कहा था कि पिंकी स्त्री नहीं पुरुष हैं और उन्होंने उसके साथ दुष्कर्म किया। जून 2012 में लगे आरोप के बाद पिंकी गिरफ्तार हो गईं। उन्हें लिंग परीक्षण के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जाता रहा। मर्द पुलिस कभी उनके कंधों पर हाथ धरती तो कभी उन्हें तंज के साथ छेड़ती। और तो और मेडिकल मुआयनों के दौरान उनका एमएमएस भी पुलिस ने लीक कर दिया। एक स्त्री के लिए यह बहुत ही भयावह अनुभव रहा होगा। बहरहाल  एक बहुत अच्छी खबर यह है कि बीते सप्ताह कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुब्रत तालुकदार ने पिंकी को यह कहते हुए बाइज्जत बरी कर दिया है कि वे स्त्री हैं और दुष्कर्म के इलजाम का कोई आधार नहीं है।        पिंकी को न्याय पाने में पूरे दो बरस लगे इस बीच यह एशियाई पदक विजेता एथलीट कई त्रासदियों से गुजरीं। जेल में उसे मर्दों क

हिंदी मेरी जान मेरी कोम मेरा मान

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हिंदी दिवस पर काम करते हुए मेरी कॉम देख ली जाये तो फिर जो लिखा जाता है वही आपकी नज़र  जहां उत्तर पूर्व की बॉक्सर  मेरी कोम पर हिंदी में फिल्म बनकर पूरे देश में उन्हें सम्मान दिला सकती है, जहां प्रधानमंत्री बच्चों की पाठशाला में अंग्रेजी सवालों का जवाब भी हिंदी में देते हों, जहां के दिग्गज खिलाड़ी  (सुनील गावस्कर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली) जो केवल अंग्रेजी में ही शब्दों की जुगाली किया करते थे, वे भी अब हिंदी में धड़ाधड़ क्रिकेट टिप्पणियां कर रहे हों, वहां हिंदी को लेकर चिंता की क्या बात हो सकती है? हर तरफ हिंदी का ही जलवा तो है। और तो और, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी खिलाड़ी खूब हिंदी बोलते नजर आ रहे हैं। वसीम अकरम, शोएब अख्तर, रमीज राजा सब हिंदी के ही रथ पर सवार हैं। विज्ञापन दुनिया के बड़े-बड़े कॉपी राइटर इन दिनों हिंदी में पंच लाइन ढूंढते फिर रहे हैं।            पंच की बात चली है तो फिल्म मेरी कोम के जरिए एेसा कथा सत्य बाहर आया है कि हम सब उन्हें और भी जानने के लिए उत्सुक हो गए हैं, जिनके शब्दकोष में डर नाम का शब्द ही नहीं। अपनी ख्वाहिश के लिए जो पूरे समय पूरी बहादुरी के साथ

आधे घंटे का आसमां

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ये आधे घंटे का आसमां  कोई जादुई करिश्मा-सा था  एक ऐसा रंगमंच  जहाँ ज़िन्दगी खेली जा रही थी।   साँझ के इस अनुपम टुकड़े से  आँखें तब तक जुडी रहीं  जब तक वहां रौशनी मौजूद रही  आखिरी कतरे तक  काले बादलों के बीच ।   कभी के अस्त हो चुके सूरज से  सुनहरी रेखाएं चमकीले बिंदु  एक विराट खेल  रच रहे थे  ऐसा खेल जो कह रहा था रोशन दिल ही शिनाख्त है  ज़िन्दगी की।   ज्यों ही आसमां गहराया  रेखाओं  और बिन्दुओं  की  लय-ताल टूटी  निगाह भी छूटी  हाँ केवल और केवल  रौशनी ही शिनाख़्त  है ज़िन्दगी की  आज के दिन यही पाठ  पढ़ाया कुदरत ने