हिंदी मेरी जान मेरी कोम मेरा मान
हिंदी दिवस पर काम करते हुए मेरी कॉम देख ली जाये तो फिर जो लिखा जाता है वही आपकी नज़र

पंच की बात चली है तो फिल्म मेरी कोम के जरिए एेसा कथा सत्य बाहर आया है कि हम सब उन्हें और भी जानने के लिए उत्सुक हो गए हैं, जिनके शब्दकोष में डर नाम का शब्द ही नहीं। अपनी ख्वाहिश के लिए जो पूरे समय पूरी बहादुरी के साथ खड़ी हैं । अभाव और आर्थिक बदहाली के बावजूद आंखों में लक्ष्य बसा है, वही लक्ष्य जिसने पूरी दुनिया में भारत का नाम रोशन किया है।
पांच बार की वर्ल्ड चैंपियन मेरी कोम मणिपुर से आती हैं। उत्तर-पूर्व के सात राज्यों में से एक मणिपुर। उग्रवाद के चलते विकास की राह में अब भी पिछड़ा हुआ। इरोम शर्मिला इसी संघर्ष को खत्म करने के लिए चौदह सालों से अन्न-जल त्यागे बैठी हैं। इरोम का संघर्ष मणिपुर के उन हालात को बदलने का संघर्ष है, जिसका मेरी कोम जैसे लोग शिकार हो जाते हैं। मेरी के ससुर की हत्या इसी उग्रवाद से हुई है।
मेरी कोम की कहानी उनके पति ओनलर के बिना अधूरी है। ओनलर का एेसा त्याग और समर्पण रहा है, जो आमतौर पर अपने पति के लिए भारतीय स्त्री का होता है। वे ऊंचाई पर कॅरिअर छोड़ देती हैं अपने पति और बच्चों के लिए। यहां इस भूमिका में मेरी कोम के पति हैं। एेसा करने का हौसला सिर्फ प्यार ही देता है तभी तो ओनलर कहते हैं, मेरी को केवल मैं ही संभाल सकता था इसलिए मैंने उसके साथ शादी की। ओनलर एक मां की तरह बच्चे संभालते हैं, जब मेरी विश्व बॉक्सिंग चैम्पियनशिप में हिस्सा लेती हैं। वह फुटबॉल छोड़ देते हैं ताकि मैरी बॉक्सिंग जारी रख सकें, फिल्म का एक संवाद बहुत अच्छा है, जब कोच कहते हैं मां बनने के बाद स्त्री की ताकत दोगुनी हो जाती है, तुम्हें चैंपियन बनने से कोई नहीं रोक सकता। फिल्म अच्छी है क्योंकि हरे खेत हैं, मणिपुरी हिंदी जैसी ज़ुबां है, तेरी मैं बालाएं लूं.. जैसी मीठी लोरी है , परिदृश्य में अस्थिर मणिपुर है।मैरी की सफलता एक बार दुनिया की चैंपियन बनने में नहीं है, बल्कि वे पांच बार विजेता रही हैं। 2012 के ओलंपिक में भले ही कांस्य मिला हो, लेकिन 2016 के लिए गोल्ड जीतने का माद्दा रखती हैं।
दरअसल, मैरी की कहानी उन महिलाओं के लिए बहुत अच्छा उत्तर है, जो मान बैठती हैं कि शादी और बच्चों ने उनका कॅरिअर खत्म कर दिया है। खत्म कुछ भी नहीं होता, यदि आपमें साहस बचा है। यह बहुत थोड़े समय का ही अवकाश होता है जो आपकी दृढ़ इच्छाशक्ति के कारण बाधा नहीं बनता। काम के प्रति लगन आपको फिर स्थापित कर सकती है। इस बीच एेसा कई बार लग सकता है कि मेरी प्रतिभा, मेरा काम अब बीते समय की बात हो गई, लेकिन एेसा होता नहीं है। हुनर हर हाल में मंजिल तलाश लेता है।
फिल्म भले ही मेरी कोम के विश्व चैंपियनशिप जीतने के साथ खत्म हो जाती है, लेकिन 31 साल की मैरी इन दिनों मणिपुर में बॉक्सिंग अकादमी चला रही हैं। इसमें कोई भी दाखिला ले सकता है, बशर्ते उसमें बॉक्सिंग सीखने का जुनून हो। पैसे की कमी यहां रोड़ा नहीं बनती, जबकि मेरी ने बहुत अभाव में बॉक्सिंग की शुरुआत की थी। मैरी वो स्त्री है, जो आंखों में ख्वाब लिए चलती है, बिना रुके, डरे बस चलती ही जाती हैं। दरअसल, यही आज के समय की भी मांग है। थोपे हुए फैसले मत लो। अपने मन को मान देना सीखो। जो फैसले आपके चेहरे पर मुस्कुराहट लाएंं, उनके लिए कभी अपराधबोध मत पालो। दरअसल, मेरी कोम जैसी स्त्रियां पूरी स्त्री कौम के लिए प्रेरणा का समंदर रचती हैं। फिल्म के अंत में जब राष्ट्रगान बजता है तो दर्शक स्वत:स्फूर्त खड़े हो जाते हैं, यह राष्ट्र गौरव से मेरी के जुड़ जाने का नतीजा है। हिंदी भी हमारा राष्ट्र गौरव है, इसे जानने के लिए खूब फ़क्र कीजिए, अंग्रेजी न जानने की फिक्र मत कीजिए, वह हमारी नहीं है।
सलाम मेरीकॉम को , हिंदी को और आपको भी !
जवाब देंहटाएंshukriya vaniji
जवाब देंहटाएंblog soone rahne lage hain in dinon!!