मेरी प्यारी नानी और उनका गांव गणदेवी


कल शाम जब मां से बात हो रही थी ,स्वर थोड़ा उदास लगा। उन्होंने बताया कि कल तुम्हारी नानी की अठारहवीं पुण्यतिथि है। मां से बात होने के बाद मन जैसे सुनहरे अतीत में खो गया। ननिहाल जिसकी कल्पना या हकीकत दोनों के केंद्र में अगर कोई है तो केवल नानी। नानी ने ही तो एक ऐसी दुनिया से परिचय कराया जहां प्रेम और कर्तव्य के सिवा किसी और के टिकने की कोई जगह ही नहीं थी। वह दिन-रात काम करतीं ताकि हम ढेर सारे मौसेरे भाई-बहन और उन सबकी मम्मियां ख़ुशी से अपनी छुट्टियां बिता सकें। उन दिनों हमने अपनी मां को सबसे ज़्यादा ख़ुश वहीं देखा था। परिवार और ससुराल की तमाम ज़िम्मेदारियों से कुछ दिन अलग रहकर वे किसी बच्ची -सी खिल जातीं । नानी ने ऐसे प्यारे रिश्ते दिए जो खून के तो नहीं थे लेकिन बहुत अपने थे। किन-किन का नाम लूं , गुजरात के इस छोटे से गांव गणदेवी में सब हमारे मामा और मौसियां थे। इतने बरसों में वहां जाते हुए कभी ऐसा नहीं लगा कि किसी ने भी कभी कोई दिल दुखाया हो। सिर्फ प्यार ही बरसता था,यहां तक की आस-पास बसे मां के मामा-मामियों ने भी सिर्फ दुलार ही दिया। पापा बताते हैं कि जब पहली बार मेरे नानाजी ने गांव के लोगों से मिलवाया तो सबने उनके हाथ में शगुन रखा।पापा यह भी बताना नहीं भूलते कि तुम्हारे नाना -नानी को मैंने सिर्फ काम करते हुए देखा है। आज याद करती हूं तो लगता है, ये लोग जैसे अलग ही दुनिया के वासी थे। रिश्तों में इतनी ऊष्मा और ऊर्जा के साथ, सबको साथ लेकर चलने वाले। 

हमारी नानी माँ 
बचपन में नानी की एक बड़ी याद इस बात को लेकर भी है कि वे कहतीं - "दोपहर हो गई है, जाओ सब बच्चे ऊपर जाकर सो जाओ।" ऐसा करना इतना बुरा लगता जैसे किसी ने मीठा आम बच्चे के हाथ से छीन लिया हो। नानी आम तो खूब खिलातीं ,उनकी काली मटकी से निकले सफ़ेद मक्खन में भी हम बच्चे तर रहते लेकिन यह सोने जाने की सख़्त हिदायत जैसे कोई दंड थी। ऐसे में प्यारे अशोक मामा फिर हम बच्चों के साथ ऊपर खेलने आते।अब समझ आता है कि नानी का ऐसा करने की वजह शायद बेटियों को कुछ आराम देना और उनके दिल का हाल लेना होता था कि जहां हमने तुम्हें ब्याहा है, वहां सब ठीक तो है। नानी के इसी प्यार का बैटन उनके जाने के बाद फिर मामा और मामियों ने संभाल लिया। नानी का नाम सावित्री देवी है। नाना उन्हें सावित्री बेन भी कह देते थे। एक और बात हमने नाना-नानी को कभी लड़ते हुए नहीं देखा। कोई बहस नहीं, सिर्फ कांधे से कांधा मिलकर काम। शुक्रिया मेरी प्यारी नानी इतने सुंदर गांव से. इतने प्यारे लोगों की दुनिया हम बच्चों के लिए खोल देने के लिए। आपकी मज़बूत जड़ों की वजह से ही आज सारे पेड़ और उसके फल आबाद हैं। आप नहीं हो लेकिन वह ननिहाल हमेशा रहेगा उस नदी की तरह जो गाँव में प्रवेश करते ही दिल खोलकर स्वागत करती है। 


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