इस छोरी में आग है?
हरियाणा की इस छोरी का चर्चा पूरी दुनिया में है। पेरिस ओलंपिक्स का मैडल इस छोरी से गले लगते-लगते वह रह गया। कोई यह भी नहीं कह पाया कि इसकी चूक थी, वज़न नहीं बढ़ना चाहिए था। उसके साथ हमदर्दी का समंदर था। प्रधानमंत्री को कहना पड़ा कि देश तुम्हें पदक विजेता ही मानता है। गलत तो कोई तब भी नहीं कह पाया जब इसने एक बाहुबली नेता से पंगा लिया। पंगा क्या था, एक नेता की अय्याशी और मनमर्ज़ी से परदा उठाने का संघर्ष था लेकिन फिर इस परदे को ऐसा तान दिया गया कि वह खिंचा ही नहीं। उसने और उसके साथियों ने पुलिस के डंडे खाए। यह तो हाल करते हैं हम उनका जो देश का झंडा बुलंद करने के सपने के साथ जीते-मरते हैं। पदक लाने पर तस्वीरें खिंचवाते हैं और जब न्याय मांगते हैं तब खदेड़ देते हैं। अब इस छोरी ने एक नया मंच चुन लिया है। कुश्ती का दंगल छोड़ सियासत के दंगल में कूद गई है। लड़ाकू और साहसी लड़की विनेश फोगाट (30 )अब कांग्रेस की नेता हो गई हैं और विधायक का चुनाव लड़ने जा रही हैं। जीत के कितने आसार हैं उनके और उनकी पार्टी के, यह जानने से पहले कुछ उस आग के बारे में जान लेते हैं जिसका ज़िक्र रसूल हमज़ातोव ने अपनी किताब 'मेरा दागिस्तान' में बार-बार किया है।
रसूल लिखते हैं -दाग़िस्तान के वीर नेता शामील से एक बार पूछा गया-“ यह बताओ, भला यह कैसे हुआ कि छोटा-सा और अधभूखा दाग़िस्तान सदियों तक बड़े-बड़े शक्तिशाली राज्यों से मुक़ाबला करता रहा? कैसे वह पूरे तीस सालों तक बहुत ही शक्तिशाली गोरे जार के विरुद्ध संघर्ष करता रहा ? ”शामील ने जवाब दिया- अगर दागिस्तान की छाती में प्यार और नफ़रत की आग न जलती होती तो वह कभी भी ऐसा संघर्ष न कर पाता। इसी आग ने चमत्कार किए और बहादुरी के कारनामे कर दिखाये। यह आग ही दागिस्तान की आत्मा यानी खुद दागिस्तान है। “मैं स्वयं भी कौन हूं,” शामील कहता गया, “गीमरी नाम के एक दूरस्थ गांव के माली का बेटा। दूसरे लोगों के मुक़ाबले में, मैं न तो लम्बा और न चौड़ी छातीवाला हूं। बचपन में तो बहुत कमजोर और दुबला-पतला लड़का था। मुझे देखकर लोग अफ़सोस से सिर हिलाते और कहते थे-बहुत दिनों तक ज़िन्दा नहीं रहेगा यह। मैं बीमार रहता। मैंने बड़ी दुनिया नहीं देखी थी, बड़े शहरों में मेरा लालन-पालन नहीं हुआ था। मेरे पास ज़्यादा धन-दौलत नहीं थी। अपने गांव के मदरसे में मैंने तालीम हासिल की। मेरे माता-पिता गधे पर आड़ू लादकर मुझे मंडी में बेचने के लिये भेजते थे। एक दिन एक घटना हुई। मैं इसे भूल नहीं सकता और भूलना भी नहीं चाहता। इसलिए कि उसी वक़्त मेरी हिम्मत, मेरे अन्दर आग जागी। उसी वक्त मैं शामील बना। मंडी के नज़दीक, एक गांव के छोर पर मुझे कुछ शरारती लड़के मिले। एक छोकरे ने मेरे सिर से समूरी टोपी उतारी और उसे लेकर भाग गया। मैं इस लड़के को पकड़ने के लिये उसके पीछे भागता रहा, इसी बीच दूसरे लड़के मेरे गधे पर से फलों की टोकरियां उतारने लगे। मेरी असहाय और रोनी-सी सूरत देखकर वे सभी ठहाके लगा रहे थे। उनके ये मज़ाक़ मुझे अच्छे नहीं लगे और मेरे भीतर वह आग जल उठी जिससे मैं अभी तक अनजान था। मैंने हड्डी के सफ़ेद हत्थेवाला खंजर जैसा कुछ म्यान से बाहर निकाल लिया। उस लड़के को, जो मेरी समूरी टोपी लेकर भागा था, मैंने गांव के फाटक पर जा पकड़ा। उसने माफ़ी मांगी।
क्या विनेश के भीतर भी ऐसी कोई आग है ? हम सबने देखा है उसे और उसके साथियों को दिल्ली की सड़कों पर घसीटा गया। दुखी और हताश खिलाड़ी अपना मैडल तक गंगा में बहाने जा रहे थे। 2018 में एशियाई खेलों,और लगातार तीन कॉमनवेल्थ खेलों में गोल्ड लाने वाली विनेश के साथ कांग्रेस में शामिल हुए बजरंग पुनिया एशियाड के स्वर्ण और टोकियो ओलंपिक्स के ब्रॉन्ज़ मैडल विजेता हैं। क्या इस आग ने उन्हें सियासत के दंगल में आने पर मजबूर किया है ? क्या सत्तापक्ष को इसकी अपेक्षा थी ? जिस बाहुबली ब्रजभूषण के खिलाफ यह संघर्ष था, वे अचानक हमलावर हो गए हैं। यौन शोषण के आरोपों में घिरे बृजभूषण शरण सिंह ने कहा कि उनके खिलाफ दिल्ली के जंतर-मंतर पर हुआ आंदोलन खिलाड़ियों का नहीं, बल्कि एक परिवार और एक अखाड़े का प्रदर्शन था। दिल्ली में आंदोलन को कौन लीड कर रहा था? भूपेंद्र हुड्डा और दीपेंद्र हुड्डा लीड कर रहे थे। प्रियंका गांधी भी आई थीं और आज जो सिक्वेंस मिल रहे हैं, वो कांग्रेस के साथ मिल रहे हैं। हालांकि, बीजेपी की तरफ से सख्त हिदायत दे दी गई है कि विनेश फोगाट और बजरंग पुनिया को लेकर कोई सार्वजानिक बयानबाजी नहीं की जाए। सरकार को डर है कि खिलड़ियो के ख़िलाफ़ बयानबाज़ी चुनाव में नुकसान पहुंचा सकती है। ऐसी ही हिदायत कंगना राणावत को भी दी गई थी जिन्होंने कहा था कि किसान आंदोलन में लाशें लटकी हुईं थीं ,बलात्कार हुए थे।
बहरहाल भाजपा अब अतिरिक्त विनम्रता और लगभग माफ़ी की मुद्रा में हरियाणा चुनाव में है क्योंकि खट्टर सरकार ने किसानों की राह में कीलें बोई थीं और आंसू गैस के गोले छोड़े थे। असर लोकसभा नतीजों पर भी दिखा। 10 में से पांच सीटें भाजपा हारी थी। इधर 90 सदस्यों वाली विधानसभा में 5 अक्टूबर को चुनाव हैं और नतीजे 8 अक्टूबर को घोषित होंगे। 2019 के नतीजों की बात करें तो भाजपा को 40, कांग्रेस को 31 और जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को 10 सीटें मिली थीं। इस बार बेरोज़गारी, पेपर लीक ,अग्निवीर योजना के साथ किसानों का मुद्दा हावी है। किसानों की आमदनी दुगुनी करने और बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ के नारे भी प्रधानमंत्री ने पंजाब और हरियाणा में ही दिए थे लेकिन ना किसानों की सुध ली गई ,न बेटियों को न्याय दिया गया और ना ही जवानों की भर्ती के लिए अग्नवीर योजना में कोई बदलाव किया गया। 'खेलो इंडिया खेलो' के तहत बड़ा बजट गुजरात को आवंटित किया गया जबकि ज़मीनी स्तर पर कुश्ती और एथलेटिक्स में हरियाणा के खिलड़ियों का प्रदर्शन पिछले कई सालों से अच्छा रहा है। हरियाणा वह राज्य है जहां 20 फीसदी से ज़्यादा आबादी दलितों की है और देश में यह सर्वाधिक है। 17 सीटें अनुसूचित जाती के लिए आरक्षित हैं और 47 सीटें ऐसी हैं जहां 20 फीसदी की यह आबादी निर्णायक है। यह वोट अब भाजपा से शिफ्ट हो रहा है। हाल के लोकसभा चुनावों में इन 17 आरक्षित सीटों में से 11 पर कांग्रेस का दबदबा रहा जो 2019 के लोकसभा में केवल दो और कुछ ही महीनों बाद हुए विधानसभा चुनाव में सात था। वोट शेयर की बात करें तो कांग्रेस को 51.3 प्रतिशत और भाजपा को 41.3 मत मिले। मैदान में मायावती की बहुजन समाज पार्टी भी है और चंद्रशेखर की आज़ाद समाज पार्टी भी जिसने जेजेपी से गठबंधन किया है। बसपा का गठबंधन इनेलो (इंडियन नेशनल लोकदल) के साथ है। ये नुक़सान कांग्रेस को ही होगा। कांग्रेस की बड़ी दलित नेता कुमारी सैलजा भी बहुत खुश नहीं हैं। भाजपा ने यहां दो मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है।
कांग्रेस को बड़ा झटका कोई पार्टी देगी तो वह आम आदमी पार्टी। अरविंद केजरीवाल जमकर प्रचार में जुटेंगे। जेल के बाद वे अब बड़े नेता में तब्दील हुए हैं।पार्टी सभी सीटों पर चुनाव लड़ रही है और कोई समझौता नहीं हो सका है । जम्मू कश्मीर में नेशनल कॉन्फ्रेंस से समझौता होकर दोनों ही पार्टियां पांच सीटों पर दोस्ताना चुनाव भी लड़ रही हैं लेकिन यहां इंडिया गठबंधन नाकाम रहा है। भिवाड़ी की एक सीट ज़रूर कांग्रेस ने कम्युनिस्ट पार्टी को दे दी है। आम आदमी पार्टी ने तो विनेश फोगाट के खिलाफ भी कविता दलाल (37) को उतार दिया है। जींद ज़िले की जुलाना सीट पर अब चतुष्कोणीय मुकाबला है। कविता खुद पहलवान रही हैं और 2016 के दक्षिण एशियाई खेलों में 75 किलोग्राम की गोल्ड मैडल विजेता हैं। कविता पहली भारतीय महिला हैं जिन्होंने ग्रेट खली से ट्रेनिंग लेकर साल 2017 डब्लूडब्लूई की रिंग में भी खलबली मचाई थी। कविता कहती हैं वे विनेश की कुश्ती और उनकी उपलब्धियों की बहुत इज़्ज़त करती हैं लेकिन अब वे प्रत्याशी हैं ,मेरी लड़ाई विनेश से नहीं , जुलाना क्षेत्र के लोगों की तकलीफों हैं। बेशक मुकाबला किसी दंगल से भी ज़्यादा दिलचस्प होगा क्योंकि भाजपा ने पूर्व पायलट कैप्टन योगेश बैरागी को उतारा है। जेजेपी ने यहां से अमरजीत ढांडा को टिकट दिया है। वे 2019 में भी जीते थे। ढांडा दुष्यंत चौटाला के करीबियों में हैं। देखा जाए तो हरियाणा का यह चुनाव फोगाट की आग में ही होता दिख रहा है जिस पर शायद प्रधानमंत्री की अगली पांच चुनावी रैलियां ठंडे छीटें डाल सकें।
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