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एप्पल का वह हिस्सा जो कटा हुआ है

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एक समय था जब राजा-महाराजा प्रजा का हाल जानने के लिए भेस बदलकर उनके बीच जाया करते थे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी या उन्माद तो नहीं है। जो काम वे कर रहे हैं उन्हें जनता पसंद कर रही है या हाहाकार मचा है। उत्तर रामायण में तो वर्णन है कि भगवान राम को उनके गुप्तचरों ने ही सूचना दी थी कि प्रजा, माता सीता के बारे में अलग सोच रही है। इसके बाद जो हुआ वह आज तक बहस में है कि राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या नहीं। अपनी सबसे प्रिय सीता का जिन्हें पहली बार पुष्प वाटिका में देख उन्हें खयाल आया था कि वे इतनी सुन्दर हैं कि सुंदरता भी उनसे ही सुन्दर होती है, फिर भी उन्होंने प्रजा के लिए यह कठोर निर्णय लिया। सीता के वन-गमन का हृदय विदारक निर्णय। राम वे राजा थे जो प्रजा की सोच पर खरा उतरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने सबसे प्रिय का त्याग भी कर सकते थे। कालांतर में  बादशाह अकबर के नाम भी किस्से दर्ज़ हैं कि वे रूप बदल कर जनता के बीच दाखिल हो जाते थे।   दरअसल ये उस दौर के तरीके थे जब राजा जनप्रिय बने रहने के लिए निज  प्रयास करते थे। एक आज का दौर है जहां निजता हरने का कारो

ईडी टिड्डी तो आप क्या गोडावण ?

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राजस्थान का चुनावी परिदृश्य बहुत दिलचस्प हो गया है। जो वक्त प्रत्याशियों की घोषणा और उनकी हार -जीत पर अनुमान लगाने का था, वह  फुटेज ईडी खा गई है। हर ज़ुबां अब ईडी-ईडी बोल रही है। आचार संहिता के बीच ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की ऐसी सक्रियता अभूतपूर्व है। चुनाव में एक महीना भी नहीं बचा है और दोनों पार्टियों के बीच ईडी ठस गई है। ऐसा पेपर लीक मामले की जांच के लिए किया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि यह जांच दल नहीं बल्कि टिड्डी दल है जो खड़ी फसल चट कर जाता  है। पश्चिमी राजस्थान में मध्य पूर्व और पाकिस्तान के रास्ते से आने वाले टिड्डी दलों का आतंक है तब क्या अशोक गहलोत कोई गोडावण पक्षी है जो टिड्डियों का ही सफाया कर देता है? यूं गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड )राजस्थान का राज्य पक्षी है जो थोड़ा वज़नी होने की वजह से उड़ नहीं पाता लेकिन दौड़ता तेज़ है। फिलहाल ईडी हमले में  माफ़ कीजिये ईडी छापों से तो कांग्रेस एक दिखाई दे रही है। सचिन पायलट दिल्ली की प्रेस वार्ता में इसके समय को गलत बता रहे हैं। वैसे पेपर लीक मामले सरकार का विरोध करने वालों में सचिन पायलट ही आगे थे,स्थानीय भारतीय जनता पार

इजराइल-हमास के बीच जनमानस , ’मेरे नाम पर' मत लड़ो ये जंग'

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 एक युद्ध वह था जिसे राम ने लड़ा था।  कोई दुविधा नहीं थी वहां । एक ही लक्ष्य बुराई और आतंक का ख़ात्मा।यह लड़ाई इतनी ईमानदार नहीं जितनी राम की रावण के विरुद्ध थी जो होती तो आज हमास जैसे  आतंकवादी संगठन का जड़ से खात्मा हो चुका होता। भगवान राम युद्ध जीतकर गद्दी विभीषण को सौंप आए थे। लंका में भी उनके जयकारे लग रहे थे। यहां  इरादे नेक नहीं है। लंका में तो लंका के लोग ही रावण के साथ नहीं थे क्योंकि वो अपने कृत्य में ईमानदार नहीं था। जंग ऐसी ही होनी चाहिए और जो ऐसी ना हो बेगुनाह बच्चों को मारे तब आम इंसान को सड़क पर आ जाना चाहिए। उनके विरोध में जो कहलाए तो आका जाते हैं लेकिन लड़ाई में एक पक्ष चुन लेते हैं अपनी सुविधा का। यहूदियों का एक हिस्सा तो आ चुका है इस अमानवीयता के खिलाफ सड़क पर कि मेरे नाम पर मानवता के यूं टुकड़े ना करो। अस्पताल पर मिसाइलें दागी जा रही हैं,दोनों और मासूम बच्चे मारे जा रहे हैं और ये नेता गले लग कर एक दूसरे की हौसला अफजाई कर रहे हैं। कोई युद्ध विराम की कोशिश नहीं कर रहा।  हैरानी और दुख की बात है कि अभी अस्सी साल भी नहीं बीते कि हिटलर के अत्याचार से पीड़ित एक कौम जो दर्द और मौत क

'एक देश एक चुनाव' हाँ कि ना !

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 देश के पांच राज्यों में चुनाव निर्धारित हो चुके हैं। तारीख़ें भी घोषित हो चुकी हैं। अब फर्ज़ कीजिये कि इन राज्यों के मतदाताओं को यदि देश के लिए भी मतदान (अगर कुछ राज्य में होते भी हैं) करना पड़े तो क्या यह उन पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ होगा या यह बिल्कुल सहज होगा? देश, प्रदेश और फिर स्थानीय मुद्दे क्या गड्डमड्ड नहीं होंगे? या यह ठीक होगा कि देश के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मतदाता अपने विधायक और पार्षद को भी चुन लें या फिर स्थानीय मुद्दों के हिसाब से देश के लिए अपने सांसद चुन लें? तीन तरह के प्रत्याशी एक साथ उनके दरवाज़ों पर आएंगे। यूं सभी आते भी कहाँ हैं फिर भी क्या यह हालात कोई दुविधा पैदा नहीं करेंगे? हाल ही में राजस्थान चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने जो अपने फैसले पर दोबारा विचार न किया होता तो उसका चकरघिन्नी होना तय ही था। तारीख़ बदलने का पूरे राजस्थान में स्वागत हो रहा है। पहले आयोग ने राजस्थान में चुनाव की तारीख़ 23 नवंबर घोषित की थी। यह तिथि बदलनी पड़ी क्योंकि उस दिन देवउठनी एकादशी है। राज्य भर में हज़ारों शादियां इस दिन होती हैं। इसे 'अबूझ सावा' माना जाता है यानी ब्याह श

'सत्ता' महाठगिनी हम जानी

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पत्रकार का दायित्व आखिर क्या है ? सत्ता की चाटुकारिता या सत्ता से सवाल ? जब कोई सत्ता पांच साल पूरे कर रही हो और राज्य के तमाम संसाधन और शक्तियां उसके पास रही हों तब किसी भी पत्रकार को सवाल मुख्यमंत्रियों से करने चाहिए या विपक्ष से या फिर जनता को ही खरी खोटी सुना देनी चाहिए ?क्या पत्रकारों को नहीं पूछना चाहिए कि आपने अपनी शक्ति का इस्तेमाल जनता के हित में किया या बन्दर बांट में या फिर पूरी ताकत उन्हें बांटने में ही लगा दी? आपने राज्य के सुनहरे भविष्य की योजनाएं बनाईं या तात्कालिक लाभ देकर वोटर को लुभाने की कोशिश की ? सत्ता तो हमेशा चाहेगी कि आप विपक्ष से ही सवाल करो और जो जनता भी ना माने तो उनके घर भी ढहा दो ,सत्ता के गढ़ नहीं टूटने चाहिए। ऐसे  सवाल जब पत्रकार करता है तो आँख की किरकिरी बन जाता है। बड़ी सत्ता उसे बड़ा लेंस लगा कर देखने लगती है और देशद्रोही कहकर जेल में डाल देना चाहती है। हाल ही में वैकल्पिक मीडिया के न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ क्लिक के संस्थापक  ,पत्रकार ,कार्टूनिस्ट,कॉमेडियन ,सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ यही हुआ । सरकार से अलग सोचना क्या देशद्रोही हो जाना है? पत्रकार,जनता अलग सोच

राजस्थान,भाजपा-कांग्रेस कोई कम नहीं

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अब से एक महीने तक हम सब चुनावी बुख़ार में होंगे और पांच राज्यों में यह किसी बड़े समर से कम नहीं होगा। ऐसे में किसी क्विज या प्रश्नोत्तरी कार्यक्रम में राजनीतिक दलों से जुड़ा यह  सवाल आ जाए तो आपका जवाब क्या होगा ? सवाल -दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी भारतीय जनता पार्टी में इन चुनावों को लेकर क्या रणनीति अपनाई है ? अ -किसी भी राज्य में पूर्व मुख्यमंत्रियों और मुख्यमंत्रियों को कोई महत्व नहीं देना  ब -संसद में धर्म विशेष के सांसद को अभद्र शब्द कहने वाले को नवाज़ा जाना  स-महिलाओं से जुड़े बड़े बिल को पास कराने के बावजूद उसे लागू करने की गारंटी देना  ? द -कह नहीं सकते, लेकिन सब सही लग रहे हैं  अब एक सवाल भारत की आज़ादी से जुड़े दल कांग्रेस के बारे में - अ -इसके नेता आपस में ही लड़ते रहते हैं ? ब -टीवी एंकरों का बहिष्कार कर देते हैं  स -पार्टी की नीतियों को लेकर भी दुविधा में रहते हैं  द -उपरोक्त सभी  मुस्कराहट नहीं जवाब चाहिए। आपसे भी और इन दलों से भी जो आनेवाले पांच सालों में हमारे प्रदेशों पर राज करने वाले हैं।मध्यप्रदेश,राजस्थान,छत्तीसगढ़,तेलंगाना और मिजोरम में मुनादी हो चुकी है। राजस्थान बीते छह बार

राजस्थान : जनता की पैनी निगाह है चौपड़ के पासों पर

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जयपुर का खूबसूरत परकोटा विश्व विरासत की महत्वपूर्ण धरोहर है और इसी परकोटे में वास्तुकार विद्याधर जी की बनाई चौपड़ भी है। यहाँ का बाज़ार चौपड़ के डिज़ाइन-सा है, वही चौपड़ जिस पर पासे फेंक-फेंक  कर कौरवों और पाण्डवों ने  द्युत क्रीड़ा को अंजाम दिया था और उसके बाद फिर द्वापर युग की पूरी राजनीति बदल गई थी। यहाँ भी  चुनावी राजनीति का रंग राजधानी जयपुर से जमना शुरू हो गया जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राहुल गांधी ने एक के बाद एक चुनावी सभाएं की । इन दोनों के आने से जनता के बीच भले ही कोई बड़ी हलचल न हुई हो लेकिन दलों के भीतर भूचाल आ गया है। मोदी के मंच पर दो बार की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को बोलने का मौका नहीं मिला तो राहुल गांधी भी जाते-जाते बम फोड़ गए कि मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ तो हम जीत जाएंगे लेकिन राजस्थान में टक्कर कांटे की है। बेचारे अशोक गेहलोत जिन्होंने रेगिस्तान की धरती पर जितनी बारिश नहीं होती उतनी तो योजनाओं की बरसात कर दी है,केवल इतना ही कह पाए कि हम और मेहनत करेंगे। कोई बिरला नेता ही होगा जो सरे आम अपनी पार्टी के पीछे होने की बात कह जाए।  रवायत तो यही है घर में चाहे दाने ना ह

इस बार के इवेंट में आधी आबादी है केंद्र में

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मूमल की मां रसोई में रोटी बेल रही थी कि मूमल के पिता ने तेज़ आवाज़ में कहा –"अरे सुनो महिला आरक्षण बिल पास होने वाला है। अब 33 फ़ीसदी महिलाएं लोकसभा और विधानसभा में आ जाएंगी। ये है असली मास्टर स्ट्रोक है भई, अब कुछ नहीं हो सकता इस विपक्ष का। " सुनकर मूमल की मां के चेहरे पर मुस्कान खिल गई थी। "यह तो कमाल हो गया... जो कोई न कर पाया वह इन्होंने कर दिया... इतने सालों में हम तो इसे भूल ही गए थे।" कहते-कहते मूमल की मां बेलन और मुस्कुराहट दोनों को  लिए बैठक में आ गई थी। "ज़्यादा खुश मत हो यह इस बार नहीं होने वाला। अभी जनगणना होगी , फिर नई सिरे से संसदीय क्षेत्र बनेंगे, 2029 में होगा यह सब।” मूमल के पिता जिन्हें वे शर्माजी कहती थीं, उन्होंने अपनी गर्दन को कुछ टेढ़ी  करते हुए कहा। इतना सुनना था कि मूमल की मां की खिली मुस्कान एकदम से सिकुड़ गई। "हे भगवान फिर किस लिए इतना तामझाम। क्यों नहीं की अब तक जनगणना, क्यों नहीं इतने सालों में इस पर विचार किया? 2029 तो बहुत दूर है और  किसने देखा है।"वह निराश स्वर में बोली थी।  मूमल की मां जैसा हाल कई महिलाओं का है।  उनकी ख़ुशी जै

सनातन पर सत्ता के हिंसक बयान और 'घमंडिया '

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अगर पूछा जाए कि घमंडिया और इंडी अलायंस  किसके नाम हैं तो झट जवाब आएगा विपक्षी गठबंधन के । प्रचार और शब्दावली की ताकत ऐसी है कि बेचारे  इंडिया गठबंधन का असली नाम ही कहीं पीछे छूट गया है। प्रधानमंत्री ने मध्यप्रदेश के बीना में इस गठबंधन के लिए कहा कि घमंडिया गठबंधन के लोग सनातन को समाप्त करने का संकल्प लेकर आए हैं। दरअसल करूणानिधि के पोते और तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के बेटे उदयनिधि स्टालिन  ने कहा था कि सनातन धर्म को जड़ से ख़त्म किया जाना चाहिए और मच्छर, डेंगू ,मलेरिया और कोरोना ये कुछ ऐसी चीज़ें हैं ,जिनका केवल विरोध नहीं किया जा सकता बल्कि उन्हें ख़त्म करना ज़रूरी होता है। इसके बाद तो तश्तरी में रखे इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी की पूरी सरकार टूट पड़ी है । विपक्ष ने ऐसा बढ़िया मौका खुद सत्ता पक्ष को दिया और अब जब तीर कमान से निकल चुका इंडिया अलायंस ने कह दिया है कि  मुख्यमंत्री एम के स्टालिन और गठबंधन इस मुद्दे पर कोई बयान नहीं देंगे और इसे यहीं समाप्त करने का फैसला ले लिया गया है। विपक्ष को इन दिनों जो थोड़ी सुर्खियां मिली  है वह उन 14 एंकरों की सूची है जिनकी टीवी बहसों में अब

आज़ाद वतन में क्यों उजड़ रहे गुलशन

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क्या बीते दस बरसों में आपकी किसी मित्र या परिजन से कोई बहस नहीं हुई ? कभी ऐसा नहीं हुआ कि आप उलझ पड़े हों सियासी मुद्दों पर और फिर साम्प्रदायिक टसल की तंग गलियों में जकड़ गए हों ? कभी ऐसा नहीं लगा कि जिससे बहस हो रही है वह पहले कुछ और था अब कुछ और है? आखिर मेरी समझ में यह तब क्यों नहीं आया ?अगर जो ऐसा आपके साथ नहीं हुआ है तब आज की तारीख़ में आप सबसे खुशनसीब व्यक्ति हैं। आपकी सदाशयता का स्तर सर्वोत्तम है और हर हिंदुस्तानी जिस दिन ऐसा हो जाएगा, ज़हर फैलानी वाली ताकतें खुद-ब-खुद परास्त हो जाएंगी। अभी तो लगता है जैसे हर शख्स कोई ज़िंदा बम है जिसे बस एक चिंगारी तबाह करने के लिए काफ़ी है। दुनिया दुसरे विश्वयुद्ध में  बम गिराने को लेकर बहस कर रही है और हम खुद बम बन रहे हैं। हम जो यूं तब्दील हुए हैं यह सब यकायक नहीं हुआ। पूरी एक सदी की एक्सरसाइज है । अब जो नया हुआ है वह उन्मादियों को सरंक्षण देने का काम  है। अब व्यवस्था इनसे हमदर्दी रखने लगी है। मणिपुर, नूंह और जयपुर-मुंबई ट्रैन में जो हुआ और हो रहा है वह हमारे ज़िंदा बम होने की दुखद दास्तानें हैं। तब क्या इस दशा में उम्मीद इन नेताओं से की जाए जो खुद

हम सब ज़हरीली गैस से भरे गुब्बारे हो गए हैं

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कबीले के सरदार ने अपने एक लड़ाके को दुश्मन कबीले के भीतर दाख़िल होकर एक आदमी को जान से मारने के लिए भेजा। उसे बताया गया था कि उस आदमी के पास हमारे कबीले को तबाह करने की ताकत है और जो उसे मार दिया तो हम हर खतरे से मुक्त हो जाएंगे। उसे बताया गया कि उस कबीले में हमारा एक आदमी पहले से ख़ुफ़िया ढंग से मौजूद है जो वहां पहुंचते ही कैसे और किसे मारना है, इसकी योजना समझा देगा। अपने कबीले को बचाने का जोशीला भाषण सुन लड़ाका तुरंत तैयार हो गया और चल पड़ा अपना भाला और तीर-धनुष लेकर। रास्ते में घना जंगल था। अंधेरा होने पर वह सतर्क था लेकिन एक जंगली जानवर ने उस पर हमला कर दिया। होश आया तो वह एक मचान पर दो लोगों से घिरा हुआ था। उनमें से एक युवा था और दूसरा कुछ उम्रदराज़। पास में कुछ खाना और पानी रखा हुआ था। लड़ाके को होश में आया देख दोनों के चेहरे पर ख़ुशी और तसल्ली का भाव था। उम्र में बड़े व्यक्ति ने फख़्र से अपनी जड़ी-बूटी की ओर इशारा करते हुए बताया कि तुम पर तो एक बाघ ने हमला कर दिया था, वो तो सही समय पर तुम्हें इसने देख लिया वरना तुम्हारा बचना नामुमकिन था। लड़ाके की आँखों में विनम्रता और धन्यवाद का भाव था। दो

गुस्से में मणिपुर, ओपेनहाइमर सब एक

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हमारी सरकार की मानसिकता को समझने में हाल ही में रिलीज हुई  एक  हॉलीवुड फ़िल्म ओपनहाइमर बहुत मदद कर सकती है। इन दिनों भारत में किसी भी हिंदुस्तानी  फिल्म से यह ज़्यादा देखी जा रही है। यह भौतिकशास्त्री और  परमाणु  वैज्ञानिक   जूलियस  ओपनहाइमर के उस द्वन्द को रेखांकित करती है जिसमें दूसरे विश्वयुद्ध में जापान के दो शहर परमाणु बम के हमले से नेस्तनाबूत हो चुके थे और मनुष्य इन विकिरणों के घातक हमलों से अगली  पीढ़ियों तक विकलांग होने जा  रहा था। हम सब जानते हैं हमारी सरकार  आए दिन भारत को विश्वगुरु का  दर्जा दिलाने को लेकर सचेत रहती है लेकिन जब वास्तव में ऐसा अवसर आता है, वह उसका महत्व समझने की बजाय अपनी संकीर्ण मानसिकता का परिचय देने लगती है। शायद लगातार नफ़रत और गुस्से का भाव ऐसा ही व्यवहार  करने पर मजबूर कर देते हैं। बहरहाल इस फिल्म में महान वैज्ञानिक ओपनहाईमर एक दृश्य में कहते हैं कि भागवत गीता दर्शन शास्त्र की बेहतरीन पुस्तक है और उन्होंने इसे समझने के लिए संस्कृत भाषा सीखी है (यह सच है कि वैज्ञानिक  ओपनहाइमर   भाषा विज्ञान के भी जीनियस रहे ) लेकिन हमारे सूचना और प्रसारण मंत्री अनुराग ठाकुर