इजराइल-हमास के बीच जनमानस , ’मेरे नाम पर' मत लड़ो ये जंग'


 एक युद्ध वह था जिसे राम ने लड़ा था। कोई दुविधा नहीं थी वहां । एक ही लक्ष्य बुराई और आतंक का ख़ात्मा।यह लड़ाई इतनी ईमानदार नहीं जितनी राम की रावण के विरुद्ध थी जो होती तो आज हमास जैसे  आतंकवादी संगठन का जड़ से खात्मा हो चुका होता। भगवान राम युद्ध जीतकर गद्दी विभीषण को सौंप आए थे। लंका में भी उनके जयकारे लग रहे थे। यहां  इरादे नेक नहीं है। लंका में तो लंका के लोग ही रावण के साथ नहीं थे क्योंकि वो अपने कृत्य में ईमानदार नहीं था। जंग ऐसी ही होनी चाहिए और जो ऐसी ना हो बेगुनाह बच्चों को मारे तब आम इंसान को सड़क पर आ जाना चाहिए। उनके विरोध में जो कहलाए तो आका जाते हैं लेकिन लड़ाई में एक पक्ष चुन लेते हैं अपनी सुविधा का। यहूदियों का एक हिस्सा तो आ चुका है इस अमानवीयता के खिलाफ सड़क पर कि मेरे नाम पर मानवता के यूं टुकड़े ना करो। अस्पताल पर मिसाइलें दागी जा रही हैं,दोनों और मासूम बच्चे मारे जा रहे हैं और ये नेता गले लग कर एक दूसरे की हौसला अफजाई कर रहे हैं। कोई युद्ध विराम की कोशिश नहीं कर रहा। 

हैरानी और दुख की बात है कि अभी अस्सी साल भी नहीं बीते कि हिटलर के अत्याचार से पीड़ित एक कौम जो दर्द और मौत के समंदर में डूब रही थी ,आज किसी दूसरी को बेघर और बर्बाद करने पर तुल गई है। पूरी दुनिया यहूदियों के जिस दर्द को खुद के सीने में महसूस कर रही थी कि अब वही यहूदी इस दर्द को महसूस करने से इंकार करते दिखाई दे रहे हैं। यकीन करना मुश्किल है कि वे यहूदी जिनका एक समय अपना कोई मुल्क नहीं था, आज लोगों को ज़मीन से बेदखल करने में जुटे मालूम होते हैं । उन्होंने उत्तर गाज़ा के लोगों से कह दिया है कि तुम अपने घर छोड़ दो, फिर हम वहां बमबारी करेंगे। इससे पहले कि जगह खाली होती, एक अस्पताल पर मिसाइल दाग़ दी गई और कोई भी पक्ष ज़िम्मदारी नहीं ले रहा  है। घायलों और बीमारों को इलाज कि बजाय मौत मिली। वहां के घायल अब दूसरे अस्पताल में हैं और कोई  भरोसा नहीं कि वहां फिर मिसाइलों से हमले ना हों । बढ़–चढ़ कर दावे करने वाले दोनों पक्ष यानी हमास और इज़राइल अब,एक दूसरे पर इलज़ाम लगा रहे हैं कि यह जघन्य हरकत उनकी है। बताया जाता है कि पहले एक ट्वीट में इस हमले की ज़िम्मेदारी इज़राइली प्रवक्ता ने ली थी फिर ट्वीट को डिलीट कर दिया गया। दोनों ओर से बच्चों की दहला देने वाली तस्वीरें जारी की जा रही हैं। अस्पताल पर हमला सबसे बड़े युद्ध अपराध बतौर देखा जाता है। दुनिया के आका  माने जाने वाले अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडन ने इज़राइल पहुंचकर अपने बयान में कह दिया है कि यह दूसरी टीम का काम है, जैसे ये इंसानी जिंदगियों की बात नहीं बल्कि बास्केटबॉल का कोई मैच हो। 

हमास (हरकत अल मुकम्मल अल इस्लामिया ) एक आतंकवादी संगठन है और इसका मकसद है इजराइल को ख़त्म कर एक फिलिस्तीन देश बनाना। जो विचार इस आतंकी संगठन को मज़बूती देता है वह ये  कि यहूदियों को उनकी ज़मीन पर ज़बरदस्ती बसाया गया और वे धीरे– धीरे उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर रहे हैं। इसी का नतीजा है कि सात अक्टूबर को हमास ने इज़राइल पर आतंकी हमला किया जिसमे पांच सौ से ज़्यादा इज़राइलियों की जान गई, जिसमें बच्चे भी शामिल हैं। कई  नागरिकों को बंधक (संख्या 203 बताई जाती है) बना लिया गया। पूरी दुनिया हमास के इस खूनी हमले से दहल गई। नतीजतन कई देशों के राष्ट्रध्यक्षों ने इजराइल के प्रधानमंत्री के साथ खुद को खड़ा बताया। जॉर्डन, सिरिया, लेबनान, इजिप्ट जैसे देश जो फिलिस्तीन से थोड़ी हमदर्दी रखते हैं, उन्होंने भी हमास की तीखी भर्त्सना की।भारत के प्रधानमंत्री ने भी ऐसा ही किया लेकिन हमास के हमले के बाद इज़राइल ने हमास के आतंकवादियों की तलाश में जो भीषण हमले किए उसने दुनिया को फिर सोचने पर मजबूर कर दिया कि यह लड़ाई आख़िर किस दिशा में बढ़ रही है।  इजराइल के हमले में  साढ़े तीन हज़ार फिलिस्तीनी मारे गए और बारह हज़ार के करीब घायल हुए हैं। भारत के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने भी कहा - "अंतर्राष्ट्रीय युद्ध नियमों का पालन अनिवार्य है और पूरी दुनिया की ज़िम्मेदारी है कि वह आतंकवाद से उन्हीं घोषणाओं के मुताबिक मुकाबला करे।" 

फ़िलहाल जो दिख रहा है वह है खेमों में बंटी दुनिया। अस्पताल पर हमले के बाद अरब देशों के साथ अमेरिकी राष्ट्रपति की जॉर्डन में तय बैठक नहीं हुई । इस बैठक में फ़िलिस्तीन के मान्यता प्राप्त हिस्से के राष्ट्रपति महमूद अब्बास भी भाग लेने वाले थे। तीसरे विश्वयुद्ध की आशंका में अब दुनिया भर के नागरिक संगठन नेताओं को याद दिला रहे हैं कि फ़िलिस्तीन लम्बे अर्से से विवादित रहा है और इसके हल के लिए कभी भी ज़िम्मेदार देशों ने सार्थक प्रयास नहीं किए । फिलिस्तीनी लिबरेशन आर्गेनाईजेशन के यासिर अराफ़ात के समय ज़रूर बात कुछ बनी और फिलिस्तीन के एक हिस्से में अब उन्हीं के उत्तराधिकारी फतेह पार्टी के महमूद अब्बास सरकार चलाते हैं। दूसरे हिस्से गाज़ा पट्टी पर हमास का कब्ज़ा है जिसके दोनों और इजराइली सेना का पहरा है। इस विवाद में एक समय  इजराइल के नेता को उन्हीं के देश के उग्र संगठन ने मौत के घाट उतार दिया क्योंकि वे शांति चाहते थे। अब जो बातें राष्ट्रपति बाइडन इस वक्त कह रहे हैं वे भी शांति स्थापित करने  वाली तो नहीं हैं। तेलअवीव  में इज़राइल के प्रधानमंत्री को गले लगा  कर कहना कि गाज़ा के अस्पताल पर हमला दूसरी टीम का काम है और यह नौ ग्यारह से भी बड़ा हमला है ,इसने तटस्थ देशों को भी चौंकाया है । क्या चाहता है अमेरिका कि हमास को अल कायदा के ओसामा बिन लादेन की तरह किसी  भी देश में घुसकर मार दिया  जाए लेकिन यहां  तो इस तलाश में दोनों ओर के हज़ारों बेगुनाह नागरिक मारे जा रहे हैं।  

यह कह देना भी किस क़दर अमानवीय कि आप अपना मुल्क खाली कर के निकल जाओ, हम यहां बम बरसाएंगे।  कहां चला जाए और कोई कितने दिन किसी शरणार्थी कैंप में गुज़ार सकता है? आज भी 15 लाख फिलस्तीनी शरणार्थी  पहले ही जॉर्डन,सीरिया, लेबनान और इजिप्ट की सीमा पर कैंपों में रह रहे हैं। कोई  देश उन्हें भीतर नहीं ले रहा। बीबीसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि लोग गाज़ा नहीं छोड़ना चाहते। उन्हें मिसाइल का शिकार होना मंज़ूर है, बेघर होकर दर-दर की ठोकरें खाना नहीं। पानी-भोजन की जबरदस्त किल्लत है। वे घूम -घूम कर नलों में पानी तलाश रहे हैं। दुश्मनी का आलम यह है कि कोई राहत सामग्री भी उत्तरी गाज़ा तक नहीं पहुंचने दी जा रही है। कोई बड़ा देश युद्ध विराम की बात नहीं कर रहा ताकि प्रभावित इलाकों तक राहत सामग्री पहुंच सके। फिलहाल मिस्र के रास्ते राहत पहुंचने की बात चल रही है।  अमेरिकी राष्ट्रपति ने हमास के हमले को 'नाइन-इलेवन' के हमले से भी बड़ा हमला तो  बताया है लेकिन अस्पताल के क़ब्रगाह बनने पर उनका कोई सख्त बयान अब तक नहीं आया है। यह पक्षपात ही कहीं पश्चिम एशिया के इस  हिस्से की उथल-पुथल का कारण न बन जाए ?

यूं हज़ारो सालों का इतिहास बताता है कि यहूदी पूरी दुनिया में सर्वाधिक सताया गया समुदाय है। प्रभु ईसा मसीह स्वयं एक यहूदी (ज्यू )थे जिन्हें सलीब पर टांग दिया गया और यह मान्यता घर कर गई कुछ यहूदी ऐसा ही चाहते थे। यहूदियों के लिए यह नफरत बढ़ती गई जो धर्म युद्ध में बदल गई। नफ़रत इस कदर फैली  कि यहूदी और ईसाई खून के प्यासे हो गए। अफ़वाह फैलाई जाती थी कि यहूदी, ईसाई बच्चों का खून पीते हैं या उन्हें धार्मिक रीति रिवाज़ों  के लिए इस्तेमाल करते हैं। अठारवीं सदी तक यह नफरत एक ख़ास किस्म की नस्लीय या जातीय भेद में बदल गई थी। यहूदी  मानने लगे थे कि पूरी दुनिया उनसे नफ़रत करती है और उन्हें अपना एक देश बनाना ही होगा जो उन्हें मज़बूत सुरक्षा दे। उन्नीसवीं सदी के अंत में 'ज़ायोनिस्म मूवमेंट ' की शुरुआत हुई। इस वक्त कुछ यहूदी जेरुसलम में आकर बसने लगे। यह उनके लिए पवित्र स्थान था। ठीक वैसे ही जेरुसलम ईसाईयों और मुसलमानों के लिए भी आस्था स्थल है। आज यह इजराइल के पास है। तब वहां कोई ग़ाज़ा , इजराइल और  वेस्ट बैंक नहीं था ।केवल फिलिस्तीन था खाली ज़मीन के साथ। सम्राट ऑटोमन का साम्राज्य था और यहां  तीनों मुसलमान ,ईसाई और यहूदी अमन से रहते थे। 

                                                image credit:the washingon post

अमन यह शब्द यहां उस दिन से खो गया जिस दिन हिटलर के बंकर से यह ख़बर आई कि 'तानाशाह मर गया। ' उसने ख़ुदकुशी कर ली थी। इसके बाद दुनिया को शांति से भर जाना चाहिए था कि अब कोई जंग नहीं। आज के हालात देख लगता है कि इस दुनिया के हुक्मरान अब भी जंग के प्यासे हैं। उनकी हुकूमत को बड़ा आसरा युद्ध  में काम आने वाले हथियार देते हैं। वे इस आग को सुलगाए रखना चाहते हैं। दुनिया का बंटवारा भी मन मुताबिक कर जाते हैं। धरती पर ऐसी आड़ी -तिरछी रेखाएं खींचतें हैं कि मानवता बस रोती ही चली जाती है। हिंदुस्तान अपने सीने पर लगे इस घाव को कैसे भूल सकता है जब शरणार्थियों की बाढ़ आई थी। वह अकेले कहां  आई थी साथ नफ़रत भी लाई थी। फिलिस्तीन में भी यही हुआ। नफरत की लड़ाई  जारी है, फिलहाल इसके नाम हमास और इजराइल हैं। हमास का ख़ात्मा होना चाहिए लेकिन यह इरादा भी पक्का नहीं दीखता । इस दौर में उम्मीद की जानी चाहिए की दुनिया के अच्छे नागरिक और संगठन सड़कों पर निकल कर इन हुक्मरानों को शांति की भाषा बोलने के लिए प्रेरित करें। ऐसा दिखने भी लगा है। एक अमरीकी अधिकारी जॉर्ज पॉल सरकार के रवैये के खिलाफ इस्तीफा दे दिया है और अमेरिका के ही वॉशिंगटन   में  यहूदी संगठनों ने 'नॉट इन माय नेम' और 'अब युद्ध विराम करो' की तख्तियां लेकर प्रदर्शन शुरू कर दिए हैं जिन्हें बाद में गिरफ्तार कर लिया गया। 


 

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