'सत्ता' महाठगिनी हम जानी
पत्रकार का दायित्व आखिर क्या है ? सत्ता की चाटुकारिता या सत्ता से सवाल ? जब कोई सत्ता पांच साल पूरे कर रही हो और राज्य के तमाम संसाधन और शक्तियां उसके पास रही हों तब किसी भी पत्रकार को सवाल मुख्यमंत्रियों से करने चाहिए या विपक्ष से या फिर जनता को ही खरी खोटी सुना देनी चाहिए ?क्या पत्रकारों को नहीं पूछना चाहिए कि आपने अपनी शक्ति का इस्तेमाल जनता के हित में किया या बन्दर बांट में या फिर पूरी ताकत उन्हें बांटने में ही लगा दी? आपने राज्य के सुनहरे भविष्य की योजनाएं बनाईं या तात्कालिक लाभ देकर वोटर को लुभाने की कोशिश की ? सत्ता तो हमेशा चाहेगी कि आप विपक्ष से ही सवाल करो और जो जनता भी ना माने तो उनके घर भी ढहा दो ,सत्ता के गढ़ नहीं टूटने चाहिए। ऐसे सवाल जब पत्रकार करता है तो आँख की किरकिरी बन जाता है। बड़ी सत्ता उसे बड़ा लेंस लगा कर देखने लगती है और देशद्रोही कहकर जेल में डाल देना चाहती है। हाल ही में वैकल्पिक मीडिया के न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ क्लिक के संस्थापक ,पत्रकार ,कार्टूनिस्ट,कॉमेडियन ,सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ यही हुआ ।
सरकार से अलग सोचना क्या देशद्रोही हो जाना है? पत्रकार,जनता अलग सोच सकते हैं यह समझ किसी भी लोकतान्त्रिक सरकार को उसी दिन से होती है जिस दिन वह चुनकर आती है। उसे पता होता है कि जो जनसमर्थन आज उसके लिए जुटा है कल किसी और के लिए जुटा था , कल किसी और के लिए जुटेगा। आखिर क्यों इस सरकार का भरोसा उन मतदाताओं पर से ही डिग रहा है जिन्होंने इसे चुना था। लोकतंत्र में डम -डम डिगा डिगा का राग कब हमेशा किसी एक के लिए बजता रहा है ? नौ साल पहले यही पत्रकार आज़ादी के पैरोकार थे और 1975 के आपातकाल में तो पूजनीय लेकिन अब वे देशद्रोही हो गए हैं । इस अविश्वास की वजह क्या है? प्रधानसेवक बनते –बनते यह तानाशाह का डंडा भला क्यों हाथ में ले लिया गया है? क्या महान पूर्ववर्तियों को इस बात का आभास पहले ही था जो उन्होंने कह दिया था कि राजधर्म का पालन नहीं हुआ है। आज पत्रकार गिरफ्तार हो रहा है और विपक्ष जेल में ठूसा जा रहा है। लगभग 46 पत्रकारों और सामाजिक कार्यकर्ताओं के घरों पर मंगलवार को पुलिस ने छापे मारे जो मुख्य धारा में नहीं बल्कि वैकल्पिक मीडिया के ज़रिये अपनी पत्रकारिता कर रहे थे। उनके फ़ोन लैपटॉप जब्त कर लिए गए। बुधवार तक तो न्यूज़ क्लिक न्यूज़ पोर्टल के संस्थापकों को सात दिन की पुलिस रिमांड पर ले लिया गया था और उन्हें एफआईआर की कॉपी देना भी ज़रूरी नहीं समझा जिसके लिए कोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा। उन पर यूएपीए (गैरकानूनी गतिविधि निरोधक कानून ) लगाया गया जिसकी अधितम सजा आजीवन कैद और मृत्युदंड है। आखिर क्यों किसी माध्यम पर इतना सख्त कानून लगता है ?क्या पत्रकार केवल लिख-बोल कर इतना भीषण अपराध कर जाते हैं वह भी वैकल्पिक मीडिया को कॉन्टेंट देने वाले पत्रकार ?
अब वैकल्पिक मीडिया इतना शक्तिशाली हो गया है कि सरकार को लगता है कि मतदाता इससे प्रभावित हो रहा है ? खुद प्रधानमंत्री ने भी पिछले दिनों यू ट्यूब पर खुद को सब्सक्राइब करने की अपील की है। मंगलवार को न्यूज़ क्लिक पोर्टल के संस्थापकों के साथ ही उनके लिए लिखने और कार्क्रम बनाने वाले यू ट्यूबर्स से भी गहरी पूछताछ की गई। उनसे पूछा गया कि क्या आप शाहीन बाग़ गए थे ,क्या आपने दिल्ली दंगों और किसान आंदोलन को कवर किया है ? क्या आप जेएनयू संघर्ष के समय वहां थे ? सब जानते हैं कि ये तमाम मसले सरकार के ग्रह मंत्रालय की नाक में दम कर देने वाले थे। शाहीन बाग़ में आंदोलन कर रही महिलाओं को उठाने के लिए सरकार के मंत्रियों ने अपशब्दों और फिर बल प्रयोग का समर्थन किया जो अंत में दिल्ली के दंगों की आग में बदल गया। किसान आंदोलन के समय बरसों बाद फिर से खालिस्तानी लफ्ज़ का इस्तेमाल हुआ जो अब वास्तव में बार-बार दोहराए जाने से विदेशी धरती पर खाद -पानी पा गया लगता है। पत्रकारों की इस गिरफ़्तारी और पूछताछ का आधार चीन से मिले पैसों को बनाया गया है जिसे नकारते हुए पत्रकार अभिसार शर्मा ने कहा कि मैंने ऐसा एक भी कार्यक्रम नहीं बनाया है जिसमें चीन का प्रोपेगेंडा हो उलटे मैंने सरकार से ये सवाल ज़रूर किये थे कि सीमा पर हमारे 20 सैनिक क्यों शहीद हुए। पत्रकार ने यह भी साफ़ किया कि मेरी जो भी कमाई है, मेरे बैंक ट्रांज़िशन का हिस्सा है। छूटने के बाद पत्रकार ने अपने चैनल के कार्यक्रम में कहा कि मेरे बच्चे पुलिस की इस स्पेशल सेल के छापे के समय स्कूल जा रहे थे फिर भी मैं हर सवाल का जवाब दूंगा लेकिन सवाल पूछना बंद नहीं करने वाला हूँ।
अमेरिकी चिंतक और आलोचक नॉम चोम्स्की ने कहा है कि जिनसे हम नफ़रत भी करते हैं और उनकी अभिवयक्ति की आज़ादी में यकीन नहीं करते तो यकीनन हम अभिवयक्ति की आज़ादी में भी यकीन नहीं करते। देश में पत्रकारों के 16 संगठनों ने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश डी वाय चंद्रचूड़ से गुहार लगाई है कि आप ही हमारी अंतिम उम्मीद हैं और एक एसओएस संदेश दिया है 'सेव अवर सोल' यानी हमारी आत्मा की रक्षा कीजिये। पत्र में लिखा गया है कि हम कानून से ऊपर नहीं हैं लेखों आज के दौर में व्यक्ति का काम उसकी निजता उसके गेजेट्स में है और इन्हें ज़ब्त कर उसके अधिकारों का हानन किया जा रहा है। एडिटर्स गिल्ड ऑफ़ इंडिया ने भी इन गिरफ्तारियों का विरोध किया है। अच्छी बात यह है कि पत्रकारों का हौसला अब भी बना हुआ है। पहले गिरफ्तार और फिर रिहा हुए उम्रदराज़ पत्रकार उर्मिलेश कहते हैं -मेरे जैसे फ्रीलान्स जर्नालिस्ट पर आरोप राजनीतिक द्वेष और राजनीतिक मंशा से प्रेरित हैं,इसको कहने में मुझे कोई भी संकोच नहीं है , बाकी उनको जो आदेश आ रहा है उसका वे पालन कर रहे हैं। मेरी पत्रकारिता मेरा ज़मीर है और जो मेरा ज़मीर है मैं उसका पालन कर रहा हूँ।जो मेरे जीवन की प्रतिबद्धता है उससे मैं कोई समझौता नहीं करूँगा।" हमारा सलाम है ऐसे सभी पत्रकारों को।
आपातकाल में मैं युवा था और परिवार कांग्रेसी था, तब मैं जेपी आन्दोलन से जुड़े गया और अपने स्तर एवं क्षमता से उसका विरोध किया,आज वृद्धावस्था में देख रहा हूं कि आज का युवाओं में नैतिक मूल्यों के प्रति कोई चिंता ही नहीं है, जबकि स्थितियां आज आपातकाल के दौर से अधिक त्रासद है ।
जवाब देंहटाएंयही कमी है इस दौर की। एक चश्मा सबको पहना दिया गया है और युवा भी उसी से सब देख रहा है।
हटाएंयही कमी है इस दौर की। एक चश्मा सबको पहना दिया गया है और उसी चश्मे से आज का युवा भी देख रहा है
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