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दहेज़ नहीं दिया तो माथे पर लिख दिया मेरा बाप चोर है

महिलाओं के खिलाफ ऐसे नए-नए अपराधों की बाढ़ आ गई है कि दहेज थोड़ा पुराना-सा लगने लगा है। आउट ऑव फैशन-सा लेकिन यह धोखा है, भ्रम है हमारा। इसे आउट ऑव फैशन समझने-बताने वाले वे लोग हैं जो इन बातों के प्रचार में लगे हैं कि महिलाएं दहेज का झूठा केस ससुराल वालों पर करा देती हैं और अधिकांश ऐसे मामले अदालत की देहरी पर हांफने लगते हैं। ठीक है कुछ देर के लिए यही सच है ऐसा मान भी लिया जाए तो क्या बेटी के  माता-पिता के मन में बेटी के पैदा हेाते ही धन जोडऩे के खयाल ने आना बंद कर दिया है? क्या बेटे के जन्म लेने के बाद माता-पिता ने धन का एक हिस्सा इसलिए रख छोड़ा है कि यह नई बहू और बेटे के लिए हमारा तोहफा होगा? क्या बहुओं के मानस पर ऐसी कोई घटना अंकित नहीं है जब ससुराल पक्ष के किन्ही रिश्तेदारों न लेन-देन को लेकर ताने ना कसे हों?  जब तक इस सोच में बदलाव देखने को नहीं मिलेगा दहेज का दानव कभी पीछा छोड़ ही नहीं सकता। दरअसल दहेज की अवधारणा लड़की की विदाई से जुड़ी है। पाठक नाराज हो सकते हैं कि क्या लड़की क ो विदा करना ही गलत हो गया? हां, हम क्यों कन्यादान, विदाई, पराई, जैसे शब्द इस्तेमाल करते हैं? सारी

गुजरात उड़ता है दमन तक

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गुजरात  में नशे पर रोक है, लेकिन ज्यों ही गुजरात सीमा खत्म होकर समुद्र से सटे केंद्र शासित शहर  दमन की सीमा शुरू होती है, शराब की दुकानें साथ चलने लगती है। पहले दो-तीन किलोमीटर तक आपको सिर्फ यही दुकानें मिलती हैं, क्योंकि जिन गुजरातियों को नशे की लत है वे बिंदास रफ्तार से दमन तक आते हैं, समंदर किनारे देर रात तक रहते हैं और लौट जाते हैं। ये गुजरात उड़ता है दमन तक। जाहिर है बैन इसका इलाज नहीं। इसका उपलब्ध होना ही समस्या है। तेजाब से लड़कियां जलाई जा रही हैं, तेजाब फेंकना अपराध है, लेकिन तेजाब का मिलना उससे भी बड़ा अपराध है। जब एसिड ही नहीं होगा तो एसिड अटैक कैसे होंगे?  हाल ही नशाखोरी से जुड़ी उड़ता पंजाब बड़े संघर्ष के बाद सिनेमाघरों की सूरत देख सकी। कुछ लोगों का मानना है कि अगर कें द्रीय फिल्म सेंसर बोर्ड ने इतना हल्ला न मचाया होता तो फिल्म आती और चली जाती, लेकिन क्या वाकई देश की गंभीर समस्याएं भी यूं  ही आकर चली जाती हैं? ये तो पूरी पौध को बरबाद कर रही हैं। कम अज कम फिल्म ने बताया है कि पंजाब नशे की लत में डूब चुका है। ये खरीफ या रबी की फसल के बरबाद होने की कथा नहीं है, बल्कि एक सम्

ग़ैर ज़िम्मेदार मॉम -डैड ने ली गोरिल्ला की जान !

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माता-पिता होना दुनिया की सबसे बड़ी खुशनसीबी हैं तो उससे भी बड़ी जिम्मेदारी है। किसी कंपनी के सीईओ होने से भी बड़ी जिम्मेदारी। दिल दहल गया था जब पिछले सप्ताह सिनसिनाती जू में तीन साल के बच्चे को बचाने के लिए सत्रह साल के गोरिल्ला हरांबे को गोली मारने पड़ी थी। यहां इस बात में कोई दुविधा नहीं होनी चाहिए कि एक बच्चे की जान बचाने के लिए गोरिल्ला की जान ली गई। इंसानी जान बचाना पहला फर्ज होना चाहिए लेकिन लापरवाह माता-पिता को भी बेशक तलब किया जाना चाहिए। हरांबे के समर्थन में बड़ा जनसमूह आ गया है। उनका मानना है कि उस बेजुबां कि खामखा जान गई। फेसबुक पर जस्टिस फॉर हरंबे   नाम से एक पेज बन चुका है जिससे तीन लाख से भी ज्यादा वन्यजीव प्रेमी जुड़ चुके हैं, उनका कहना है हरंबे  बच्चे को कोई नुकसान नहीं पहुंचा रहा था। जबर्दस्त विरोध के बीच बच्चे की मां मिशेल ग्रेग का कहना है कि हमें दोषी ठहराना आसान है। मैं हमेशा अपने बच्चों को कड़ी निगरानी में रखती हूं। यह एक दुर्घटना थी।            बच्चों की परवरिश के दौरान माता-पिता गंभीर होते हैं लेकिन यह भी सच्चाई है कि कई बार बच्चे उन्हीं की लापरवाही का शिकार

मैं और तुम

दरख़्त  था एक दरख़्त हरा घना छायादार इस क़दर मौजूद कि अब ग़ैरमौजूद है फिर भी लगता है जैसे उसी का साया है उन्हीं पंछियों का कलरव है और वही पक्का हरापन है सेहरा ऐसे ही एहसासों में जीता है सदियों तक और एक दिन मुस्कुराते हुए हो जाता है समंदर ख़ुशबू   मैंने चाहा था ख़ुशबू को मुट्ठी में कैद करना ऐसा कब होना था वह तो सबकी थी उड़ गयी मेरी मुट्ठी में रह गया वह लम्स  उसकी लर्ज़िश और खूबसूरत एहसास काफ़ी है एक उम्र के लिए याद  यादों की सीढ़ी से आज फिर  एक तारीख उतरी है मेरे भीतर...  तुम जान भी पाओगे जाना कि बाद तुम्हारे मैं कितनी बार गुजर जाती हूँ इन तारीखों से गुजरते हुए।

क्यों नहीं देख पाते देह से परे

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बड़े-बुजुर्ग अक्सर दुआओं में कहते हैं ईश्वर तुम्हें बुरी नजर से बचाए और जब ये बुरी नजरें  लगती हैं तो कलेजा छलनी हो आता है और मन विद्रोह से भर उठता है। ये नजरें इसलिए भी खराब  हैं, क्योंकि ये पढ़े-लिखों की हैं। उस जमात की, जिससे हम बेहतरी की उम्मीद करते हैं। ये पहले सौ किलोमीटर तक केवल देह की देहरी में घूमते हैं और उसके बाद भी ऐसे बहुत कम हैं जो समझते हैं कि इस देह के भीतर भी एक दिल है जो धड़कता है और दिमाग जो सोचता है। आखिर कब हम स्त्री के दिलो-दिमाग का सम्मान करना सीखेंगे। आसाम की एक्टर से विधायक बनीं अंगूरलता डेका की समूची उपलब्धि उन ग्लैमरस तस्वीरों के आस-पास बांध दी जाती हैं , जो उनकी हैं ही नहीं और एक हिंदी अखबार की वेबसाइट को देश की टॉप दस आईएएस और आईपीएस में खूबसूरती ढूंढऩी है। बदले में आईपीएस मरीन जोसफ की फटकार झेलनी पड़ती है और इस लिंक को हटाना पड़ता है।  ips मरीन जोसेफ  mla  अंगूरलता डेका  ये अजीब समय है। एक ओर तो हम चांद और मंगल तक अपनी उड़ान भर चुके हैं और जब बात स्त्री की आती है तो हम देह से परे कहीं झांकने को ही तैयार नहीं। किसी ने जीता होगा दिन-रात एक कर चु