क्यों नहीं देख पाते देह से परे

बड़े-बुजुर्ग अक्सर दुआओं में कहते हैं ईश्वर तुम्हें बुरी नजर से बचाए और जब ये बुरी नजरें 
लगती हैं तो कलेजा छलनी हो आता है और मन विद्रोह से भर उठता है। ये नजरें इसलिए भी खराब 
हैं, क्योंकि ये पढ़े-लिखों की हैं। उस जमात की, जिससे हम बेहतरी की उम्मीद करते हैं। ये पहले सौ किलोमीटर तक केवल देह की देहरी में घूमते हैं और उसके बाद भी ऐसे बहुत कम हैं जो समझते हैं कि इस देह के भीतर भी एक दिल है जो धड़कता है और दिमाग जो सोचता है। आखिर कब हम स्त्री के दिलो-दिमाग का सम्मान करना सीखेंगे। आसाम की एक्टर से विधायक बनीं अंगूरलता डेका की समूची उपलब्धि उन ग्लैमरस तस्वीरों के आस-पास बांध दी जाती हैं , जो उनकी हैं ही नहीं और एक हिंदी अखबार की वेबसाइट को देश की टॉप दस आईएएस और आईपीएस में खूबसूरती ढूंढऩी है। बदले में आईपीएस मरीन जोसफ की फटकार झेलनी पड़ती है और इस लिंक को हटाना पड़ता है। 
ips मरीन जोसेफ 
mla  अंगूरलता डेका 

ये अजीब समय है। एक ओर तो हम चांद और मंगल तक अपनी उड़ान भर चुके हैं और जब बात स्त्री की आती है तो हम देह से परे कहीं झांकने को ही तैयार नहीं। किसी ने जीता होगा दिन-रात एक कर चुनाव, लेकिन हमें उसकी मेहनत को ग्लैमर का नाम देते हुए वायरल कर देने में चंद मिनट लगतेे हैं। बात यहीं तक सीमित नहीं ग्लैमर का तड़का जरा ज्यादा लगे, हम अहमदाबाद की योग ट्रेनर सपना व्यास की तस्वीरें विधायक के नाम पर साझा कर देते हैं। ये दो महिलाओं का अपमान एक साथ किया जा रहा था। असम से भाजपा  की नवनिर्वाचित विधायक अंगूरलता डेका और योग शिक्षिका सपना व्यास के साथ यही हुआ पिछले दिनों। अंगूरलता के तो नाम के साथ छेड़छाड़ करने से भी सोशल मीडिया बाज नहीं आया। फिल्म मेकर रामगोपाल वर्मा ने ट्वीट किया अगर कोई विधायक ऐसा दिख सकता है मतलब अच्छे दिन आ गए। पहली बार राजनीति से प्यार हुआ है। हालांकि आपत्ति के बाद रामगोपाल वर्मा ने अपने ट्वीट पर सफा



ई पेश की। ग्लैमरस, हॉट, सेक्सी शब्द सुनकर एक एक्टर या मॉडल की मुस्कान भले ही बड़ी हो सकती है, लेकिन चुनावी समर में कमर कसने वाली महिला, या आईपीएस, वैज्ञानिक या पत्रकार की नही। तभी तो आईपीएस मरीन जोसेफ आहत हो गईं और उन्होंने फेसबुक पर एक बड़ी हिंदी वेबसाइट को लताड़ते हुए अपना गुस्सा जाहिर किया। वेबसाइट को देश की टॉप टेन खूबसूरत आईपीएस और आईएएस के  लिंक को हटाना पड़ा।
बोल्ड ऑफिसर हैं मरीन
आईपीएस  मरीन जोसेफ फिलहाल केरल के मन्नार में सहायक पुलिस अधीक्षक के पद पर नियुक्त हैं और उनका सिंघम स्टाइल उस समय ही लोकप्रिय हो गया था जब वे केरल के ही अर्नाकुलम जिले में  ट्रेनी थीं। एक साल पहले हिंदू अखबार को दिए एक इंटरव्यू में उन्होंने कहा था कि हम इंटरनेट के दौर के हैं और देश के ज्यादा से ज्यादा नौजवानों को इससे जुडऩा चाहिए। वे मानती थीं कि एक अच्छा  पुलिस ऑफिसर बनना और 24 घंटे जनता के लिए उपलब्ध रहना बड़ी चुनौती है। यह सच है कि विभाग में 99 फीसदी पुरुषों का वर्चस्व है और मुझे अपने अधीनस्थों का विश्वास भी जीतना होगा। जोसफ ने जब पोस्ट लिखी कि क्यों नहीं टॉप टेन मेल मॉडल्स की खूबसूरती की कोई सूची बनती तो उसे जबरदस्त समर्थन हासिल हुआ।
कोसने से बात नहीं बनेगी
समाज की आधी दुनिया दूसरी आधी दुनिया को कोसती रहे इससे बात नहीं बनेगी। बार-बार पितृसत्तात्मक समाज या पुरुष प्रधान समाज के उल्लेख से हम ऊब चुके हैं। स्वीकारना होगा कि इस नई दुनिया में स्त्री भी उसी स्पेस की हकदार है। फर्ज कीजिए एक मर्द रिपोर्टर अपनी रिपोर्ट पर बात करने कि लिए संपादक के पास जाए और वह रिपोर्ट के बजाय मुद्दे को देह के आस-पास केंद्रित कर दे तो या एक ट्रेनी ऑफिसर को उनका वरिष्ठ काबिलियत के लिए नहीं उनकी बॉडी के लिए शाबाशी दे तो? कोई कोच नई खिलाड़ी को फिजियो के टिप्स की बजाय कुछ और समझाने लगे तो? यह सब होता है, कई लड़कियों के साथ होता है। लड़कियां निराश होकर लक्ष्य से दूर हो जाती हैं। ये अतिरिक्त बाधाएं कई लड़कियों को कई स्तर पर पार करनी पड़ती हैं।
माता-पिता को पता चलता है तो वे पहला काम उन्हें रोकने का करते हैं, जो नहीं पता चलता तो अनाम समझौतों की गंदी गलियों में उनका प्रवेश हो जाता है। इसलिए लड़कियों को पहली ही हरकत पर ही आवाज उठानी होगी। उन्हें सायरन की तरह बजना होगा, ताकि लड़कियां सायरन की आवाज सुन सतर्क हो जाएं। मरीन जोसफ ने इस सायरन को ही बजाया है। अपनी बात कहना हर हाल में जरूरी है।
मीडिया के मायने
इन दिनों हर किसी को लगता है कि सोशल मीडिया महत्वपूर्ण जरिया है अपनी बात कहने का, अपने काम को प्रचारित करने का । यह सच भी है।यहां बहुत जल्दि हमजुबां लोगों का कारवां बनता चला जाता है।कुछ बयान, तस्वीरें,विचार वायरल होते हैं यानी उनको देखने-पढऩेवालों की तादाद इतनी ज्यादा होती है कि पोस्ट वायरल हो जाती है और ट्रेंड करने लगती है। वेबसाइट के लिए काम कर रही संगीता कहती हैं अजीब ट्रेंड्स हैं, आप कितना ही अच्छा लिखें वायरल तोवही होता है, जिसमें लव सेक्स और धोखेवाला तत्व शामिल हो।
संगीता कहती हैं 
बेशक संगीता की बात में दम है, लेकिन फेसबुक की बात करें तो कई स्त्रियों ने बेशुमार मुद्दों को सलीके से रखा है और उनकी पोस्ट पर मिले हजारों लाइक्स बताते हैं कि पाठक उनसे इत्तेफाक रखते है। रजिया शबाना 'रूही', मनीषा पांडेय, आराधना  मुक्ति, स्वर्णलता की बेबाक लेखनी हजारों बरसों के ढर्रे को आईना दिखाती हैं तो पाठक जिनमें पुरुष भी शामिल है खूब पसंद करते हैं। सच्चाई यह भी है कि उनके इनबॉक्स में अपशब्दों की भरमार उड़ेली जाती है। कई बार इन्हें बेचैनी महसूस हुई होगी, मन, घृणा से भरा, दिल रोया भी, लेकिन इनका सबसे मजबूत पक्ष है कि इन्होंने लिखना नहीं छोड़ा। वही लिखा जो महसूस किया। ऐसी कई स्त्रियां हमारे समाज का सायरन ही हैं। एक ईरानी ब्लॉगर सही कहती हैं  कि भारत का समाज आज भी परंपराओं में जकड़ा है। कानून से ज्यादा यहां परंपरा मायने रखती है। परंपरा कई बार वक्त के साथ अप्रासंगिक होती चली जाती है और ये स्त्रियां इन्हीं परंपराओं को नए जमाने का आईना दिखाती है। इन बातों में दम आता है जब पुरुषों की राय भी साथ हो लेती है। आरोप-प्रत्यारोप से हालात नहीं बदलेंगे। देह को बीच में मत लाइए। ईमानदारी से मुद्दे की बात करें।

टिप्पणियाँ

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