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ब्याह के इस मौसम मे

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 शादी, ब्याह इस दिव्य संबंध को चाहे जिस नाम से पुकारा जाए जब दो जिंदगियां साथ चलने का फैसला करती हैं तो कुदरत दुआ देती ही मालूम होती है। शहनाई की मंगल ध्वनि इसी दुआ की संगीतमय अभिव्यक्ति है। ब्याह की तमाम परंपराएं, फेरे, वचन, आहुति, मंत्र ऐसे दिव्य वातावरण का आगाज करते हैं कि ब्याह को बरसों-बरस जी चुका जोड़ा भी नई ताजगी का अनुभव करता है। सच है कि हम विवाह संस्था और कुटुंब का हिमायती समाज हंै। हम किसी भी कीमत पर इस संस्था को बचाए रखना चाहते हैं। शादी में ईमानदारी बुनियादी जरूरत है लेकिन हम इस नींव के खिसकने के बाद भी शादी को बचाए रखने में यकीन रखते हैं। आखिर क्या वजह है इसकी? हमारी अदालतें, हमारा समाज सब शादी को बचाए रखने में यकीन रखते हैं क्योंकि तमाम मतभेदों के बावजूद सुबह झगड़ते पति-पत्नी शाम को फिर एक हो जाते हैं। यह स्पेस इस रिश्ते में हमेशा बना रहता है। कई जोड़े तलाक की सीमारेखा को छूने के बाद इस कदर एक होते हैं कि मालूम ही नहीं होता कि विच्छेद शब्द उन्हें छूकर भी गुजरा था। सवाल यह उठता है कि हमारे पुरखों ने एकनिष्ठ होने की अवधारणा के साथ विवाह संस्था को स्थापित किया था तो आज क