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लिव- इन रिश्ता बोले तो . . . अप्रैल fool !!!

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इस दौर में जब हर शख्स एक दूसरे को टोपी पहनाकर अपना ·काम निकालना चाहता है मूर्ख दिवस की बात करना कोई मायने नहीं रखता। हर रोज कोई न कोई, कहीं न कहीं छला जा रहा है। छलने से याद आया लिव-इन-रिलेशनशिप यानी बिना शादी के साथ-साथ रहना। सामाजिक विश्लेषको का मानना है कि इसमें स्त्री ही छली जाती है। रिश्ते ·की अनिश्चितता उसे अंत में तबाह करती है। वह रोती है, बिसूरती है और पुरुष चट्टान कि तरह अडिग। उसका कुछ नहीं बिगड़ता है। ब्रिटेन में रह रहीं भारतीय नागरिक नीरा जी ने एक पोस्ट के कमेन्ट में लिखा है कि ऐसे देश में रहती हूं जहां लिव-इन टुगेदर  आम बात है। इसका अंजाम मैंने देखा है कि नॉन कमिटल मर्दों के साथ अकेली मांओं ·की संख्या बढ़ी है। नारीवादी हूं। दो बेटियों की मां भी। कल अगर वे ऐसा करना चाहें तो खुशी-खुशी करने दूंगी, कह नहीं सकती। यह भाव सिर्फ और सिर्फ इसलिए आता है की स्त्री के पास मातृत्व ·की जिम्मेदारी है।  पुरुष मुक्त है। वह  इस रास्ते में पल्ला झाड़कर आगे निकल जाता है और स्त्री वहीं की वहीं ठहरी हुई। यह ठहराव उसे पीड़ा देता है। लिव-इन में हम इसी ठहराव को देखते हैं और विरोध करते हैं। न्यायाल