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आशंकाओं का जनाज़ा

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बीता सप्ताह हर   हिन्दुस्तानी को  फ़क्र से भर गया, वह भी तब जब वह सबसे ज्यादा आशंकित था .३० सितम्बर  और ३ अक्तूबर की तारीख केवल तारीखभर नहीं बल्कि हमारी नज़र और नज़रिए का विकास है. इन दोनों ही घटनाओं को द हिन्दू  के कार्टूनिस्ट केशव की नज़रों से देखना भी दिलचस्प होगा . अयोध्या फैसले के बाद उन्होंने दो पंछी बनाये जो एक पतली-सी डाली को साझा किये  उड़े  जा रहे हैं और राष्ट्रमंडल  खेलों के उद्घाटन समारोह के बाद एक मस्त हाथी जो आशंकाओं के गुबार को  पीछे छोड़ अपनी मतवाली चाल से चला जा रहा है . बेशक इस भव्य समोराह ने पूरी दुनिया को सकते में डाल दिया है. भारत का समूचा वैविध्य इन तीन घंटों में ऐसे सिमटा जैसे एक रंगीन दुनिया जादू के पिटारे में. कितने खूबसूरत हैं हम. कितना सौंदर्य भरा पड़ा है हममें. इंग्लॅण्ड के अखबार ने लिखा कोई कुत्ता बीच में नहीं आया कहीं ध्वनि नहीं टूटी और कोई बिजली गुल नहीं हुई यानी कि  यही सब अपेक्षित था . फ़र्ज़ कीजिये अगर समारोह फीका -फीका सा रहता और भारत के बजाय   इंडिया झांकता  तो? बतौर भारतवासी  हम कैसा अनुभव करते?  इतने बड़े आयोजन किसी एक व्यक्ति की बपौती नहीं होते,पूरे