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सितंबर, 2013 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

आखर बंदी

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ये कौन बांधे है तुझे-मुझे अब भी जन्म में यकीं नहीं कच्ची उम्र को गुज़रे अरसा हुआ तेरे हर्फ़ बस यही  बिखरे पड़े हैं मेरे चारों ओर कभी सहलाते हैं कभी तकरार करते हैं कभी बरस जाते हैं मुझ पर गहरे भिगो देते हैं भीतर तक  मैं इन आखरों की बंदी हूँ ये आखर-बंधन मैंने लिया है सात फेरों की तरह. इस जन्म के लिए जीते जी .  image: varsha हर लो मेरा चैतन्य -------------------------- तुम नहीं जानते तुमने अनन्या मान कितना अन्याय किया है मेरे साथ मैं अचेत ही भली थी अब जब चेतना मुझे छू गयी है मुझे तुन्हारे सिवा कुछ नज़र नहीं आता हर लो मेरा चैतन्य दे दो जड़ता मुझे इस दुनिया में जीने के लिए कह दो कि मेरा-तुम्हारा कुछ नहीं आजाद करो मुझे इस मोहपाश से जानो तुम यह सब क्या तुम नहीं जानते ?  

पाकिस्तान में मलाला अफगानिस्तान में सुष्मिता

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अफगानिस्तान में अमेरिकी दखल हो जाने के बावजूद लेखिका और स्त्री सेहत से जुड़ी सक्रिय कार्यकर्ता सुष्मिता बैनर्जी की हत्या हो जाती है। इन दिनों यह ताकतवर देश जाने किस हक से सीरिया पर हमला करने की मंशा रखता है। दुनिया के बड़े हिस्से में जब स्त्री को जीने लायक परिस्थिति दे पाना ही नामुमकिन हो रहा है ये देश युद्ध के जरिए शांति प्रयासों में लगा है?  स्त्रियों की सेहत के लिए काम कर रहीं सुष्मिता बैनर्जी अफगानिस्तान में गोलियों से भून दी जाती हैं, तो स्त्री शिक्षा के लिए संघर्ष कर रही किशोरी मलाला यूसुफजई को तालिबानी पाकिस्तान में मौत देने की कोशिश करते हैं। मलाला सौभाग्यशाली रहीं कि वे आज जिंदा हैं, लेकिन सुष्मिता के साथ ऐसा    न हो सका। वे अफगानिस्तान के पूर्वी पक्तिका प्रांत में अपने घर पर मार दी गईं। उनके पति जांबाज खान को बांध दिया गया और आतंकी उन्हें यह कहते हुए मारने लगे कि तुमने हमारे खिलाफ लिखना नहीं छोड़ा। उनचास साल की सुष्मिता को प्रेम और सौहार्द की कीमत जान से चुकानी पड़ी। काबुलीवाले की बंगाली बहू के स्नेह संदेश में कट्टरपंथियों को अपने इरादों की

वो सजदे के काबिल तो हो

कई बार लगता है कि हम वो समाज हैं जिसे ईश्वर तक पहुंचने के लिए कई सारे जरियों की जरूरत होती है। हम हमेशा माध्यम की ताक में रहते हैं और उम्मीद करते हैं कि कोई आए और हमारा हाथ पकड़कर उस तक ले जाए। हमें ऐ से लोग खूब रास आते हैं, जो हमें यकीन दिला देते हैं कि वे हमें प्रभु तक ले जाएंगे। फिर एक वक्त आता है, जब ये बिचौलिये ही हमें भगवान लगने लगते हैं और हम इनके कहे मुताबिक शतरंज के मोहरों की तरह चलने लगते हैं। यह तो बहुत अच्छा हुआ कि सोलह साल की बेटी के इस पिता की आंखें खुल गईं वरना कई परिवार अपनी संतानों को समर्पित करके भी आंखें बंद किए बैठे हैं। वे इसे बाबा का प्रसाद या धर्म की राह में दी गई आहुति मानते हैं। इस लड़की के पिता भी आसाराम के अंधभक्त थे। लखनऊ से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर शाहजहांपुर में उनका अपना व्यवसाय था कि दस साल पहले आसाराम के फेर में आ गए और दीक्षा ले ली। पास ही जगह खरीदी और अपने पैसों से आश्रम बनाया। चेतना तो तब लौटी, जब आसाराम ने बेटी को भी इसी सिलसिले में जोड़ लिया।   जिस इंदौर शहर से आसाराम की गिरफ्तारी हुई है, उसी शहर की कई महिलाएं और युवतियां बीस साल पहले ही शपथ पत्र दे