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सितंबर, 2011 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

जाना

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  जाना कितना मुश्किल है किसी रूह का रूह के भीतर जाना हमारे बीच कैसे हँसते-खेलते हो गया सब पाक जज़्बे-सा  यह गठजोड़ ....  मेरा शीश अब वहीँ झुका जाता है मेरा शिवाला वही मेरा काबा वहीँ फिर भी  मैं  हूँ काफ़िर  तो वही सही .

ANNAtomy of the politicians

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om puri and kiran bedi at ramleela ground अनशन तो अन्ना का था लेकिन विषैले पदार्थ नेताओं के शरीर से निकल रहे हैं। ईमानदार वरिष्ठ नागरिक, अपने झोले में समाज की चिंताए लेकर चलने वाले, कम संसाधनों के बावजूद जीवट से आगे बढऩे वाले जिस तेजी से खुद को हाशिए पर धकेले जाते हुए देख  रहे थे, वे अब फिर से खुद को मुख्यधारा में महसूस कर  रहे हैं। उनकी सोच को जैसे आवाज मिल गई है, चेहरा मिल गया है। इस बड़ी सफलता में छोटी-मोटी परेशानियां  आई हैं। प्रशांत भूषण,किरण बेदी और ओम पुरी के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया गया है। किरण ने साफ कह दिया है कि वे माफी नहीं मांगेगी और जरूरत पड़ी तो अपने पक्ष की पैरवी भी खुद करेंगी। कुछ देर के लिए मान भी  लिया जाए कि किरण उस दिन अपने आचरण से अलग नजर आईं। दुपट्टा ओढ़कर जो कटाक्ष उन्होंने किए वे तीर की तरह चुभे। इसकी वजह शायद नेताओं का लगातार बदलता रवैया रही होगी। किरण ने साफ कहा था कि ये नेता हमसे कुछ बात करते हैं, मीडिया से कुछ कहते हैं और अन्ना के पास फोन कुछ और आता है। मानना पड़ेगा कि टीम अन्ना का समन्वय आला दर्जे का था अन्यथ