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काली शलवार

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सच तो यह है कि उर्दू कथाकार सआदत हसन मंटो को याद करना अच्छा लगता है . वे होते तो सौ बरस के होते.  घरों में जाकर खाना बनाने वाली लाली से लेकर मिसाइल वुमन टेसी थामस तक स्त्री ने खुद को और पूर देश को तरक्की की राह पर अग्रसर किया है। स्त्री की बदलती भूमिका को स्वीकार किए जाने के बावजूद शेष आधी दुनिया में उसकी छवि ज्यादा बोलने वाली, ईष्र्यालु, अति भावुक की ही है, यहां तक कि इसे भी सत्य की तरह स्थापित कर दिया गया है कि औरत ही औरत की सबसे बड़ी दुश्मन है। कहने वाले कैकई और मंथरा को ही राम के वनवास का जिम्मेदार  बताते हुए इस धारणा को और भी मजबूत करते हैं। महाभारत के युद्ध का दोषी भी द्रोपदी को ही ठहराया जाता है। दशरथ और भीष्म पितामह के सर दोष कम है। उर्दू कहानीकार सआदत हसन मंटो ने लगभग सत्तर  साल पहले एक कहानी लिखी थी, काली शलवार। कहानी की नायिका सुल्ताना एक वैश्या है। अंबाले में उसके पास खूब काम था। गोरे अंग्रेज खूब पैसा देते थे, लेकिन जब से वह अपने साथी के साथ दिल्ली आई है, उसका काम ठप हो गया है। वह बेचैन है कि मोहर्रम पर उसके पास काली शलवार नहीं। उसका साथी प

मैंने बीहड़ में रास्ते बनाए हैं

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meera by tamanna मैं नहीं हो पाई सवित्री न ही जनक नंदिनी सी समाई धरती में न याग्यसेनी कि तरह लगी दाव पर मेरा पति भी शकुन्तला का दुष्यंत नहीं था कभी कुंती सी भटकी नहीं मैं न ही उर्मिला सी वेदना ली कभी मैं वह राधा हूँ जिसे कृष्ण ने पूरी दुनिया के सामने वरा अब जब में सावित्री नहीं हो पायी हूँ मैं हो जाना चाहती हूँ मीरा उस एक नाम के साथ पार कर जाना चाहती हूँ यह युग कालातीत हो जाना चाहती हूँ मैं राधा को भी मीरा बनना पड़ता है यही  इस जीवन की गाथा है.

ऐसे ही मौकों पर पत्नी अपना पर्दा पति पर डालती है

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bhanvari devi : no body reveals where is she leela maderna :chair person apex bank mahipal maderna : former minister rajasthan    पत्नी में वह कौनसा माद्दा होता है जिसके चलते  वह अपने पति के ऐसे गुनाह भी  माफ कर देती है जिसके लिए वह कभी कोई  समझौता नहीं करना चाहती। हैरानी होती है कि जिस मुद्दे पर घर टूट जाते हैं, रिश्ते तबाह हो जाते हैं, बच्चे अलग-थलग पड़ जाते हैं उसी मुद्दे पर पत्नियां सार्वजनिक मंच पर डटकर मोर्चा लेती हुई नजर आती हैं। कई नाम हैं बिल क्लिंटन की पत्नी हिलेरी क्लिंटन  से लेकर अमरमणि त्रिपाठी की पत्नी मधुमणि तक सब अपराधी पति की  भक्ति करने में ही यकीन करती दिखाई देती हैं । उत्तर  प्रदेश के विधायक अमरमणि ने तो कवयित्रि मधुमिता की हत्या उस वक्त करा दी थी जब वे गर्भवती थीं। अमरमणि आज जेल में हैं। अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बिल क्लिंटन  पर 1992 के चुनाव प्रचार अभियान के दौरान अभिनेत्री से  रिपोर्टर बन गईं जेनिफर फ़्लार , ने आरोप लगाया था कि उनके बारह वर्ष के बच्चे के पिता बिल हैं तब हिलेरी ने एक इंटरव्यू में कहा- 'मैं यहां इसलिए नहीं बैठी कि एक छोटी स

जिरहबख्तर

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आज फिर हमने  गुस्ताखी की है तेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है   क्यों चाहा अल्फाज़ का ये जिरहबख्तर क्या होंसलों में अब कोई कमी सी है || मेरे हालात पे यूं जार-जार रोने लगा वो समझ आया खुदा ने ही नाइंसाफी की  है ||   ये नुमाया लफ्ज़ अब बूंदों में घुल रहे हैं तेरी सोहबत ने ये क्या सूरत दी है || तेरी सोहबत को दोष क्यूं कर हो खामोश पानी को इसी ने रवानी दी है ||   मेरा किया गुनाह ए कबीरा न सही गुनाह ए सगीरा से भी अब तौबा की है|| आज फिर हमने  गुस्ताखी की है तेरे ग़म को लफ़्ज़ों की शक्ल दी है || गुनाह ए कबीरा -बड़ा गुनाह गुनाह ए सगीरा -छोटा गुनाह जिरहबख्तर -कवच

लाल सलाम

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श्वेता भट्ट,इलिना सेन, जाग्रति पंड्या और चित्रा सिंह को उन पत्नियों को सलाम करने को जी चाहता है जो न्याय की राह में अपने पतियों के लिए डटी हुई हैं। निलंबित आईपीएस संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट ने गुजरात सरकार से लोहा लिया है तो विनायक सेन की पत्नी इलिना सेन छत्तीसगढ़ में लड़ रही हैं। गुजरात ही के पूर्व गृहमंत्री हरेन पंड्या की पत्नी जागृति पंड्या भी अपने पति की हत्या के पीछे रची साजिश का पर्दाफाश करना चाहती हैं । ये वो पत्नियां हैं, जिन्होंने अपने पतिके संघर्ष को आगे बढ़ाया है। पढ़ी-लिखी पत्नियां, जिन्होंने अपने पति के पेशे की चुनौतियों को समझा। ऐसी हमसफर जो अपनी भूमिका को केवल चार दीवारी और चूल्हे-चौके तक सीमित नही करती। बेशक वे लाल साड़ी और लाल बिंदी में आपको नजर नहीं आएंगी, लेकिन उनका संघर्ष आपको लालिमा से ओत-प्रोत दिखेगा। भारत में ऐसी वैचारिक शादियों की परंपरा नहीं, लेकिन ऐसी कई महिलाएं अपने मोर्चों पर डटी हुई हैं। अगर ये न होतीं तो इनके पति की आवाज जेल की सलाखों में दबा दी गई होती या फिर उनकी हत्या के राज कभी खुल नहीं पाते। करवा चौथ का व्रत भी शायद ऐसे ही साथ की हिमायत

भंवरी से भंवरी तक

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kllled!! ! borunda jodhpur ki bhnvari devi jo shayad maar di gayee raped .. .bhabteri jaipur ki bhvari devi do dashak pahle hui thi balatkaar ki shikaar भंवरी से  भंवरी तक कुछ नहीं बदला .हुक्मरान बदलते गए और भंवरियों को पैरों त ले कुचलने  की  चेष्टाएँ  और मजबूत होती गयीं... बात जब महिलाओं की आती है तो हमारी हालत बांग्लादेश से भी बद्तरहै। न्यूजवीक पत्रिका के एक सर्वेक्षण में भारत को 141 वां स्थान मिला है। सर्वेक्षण में कल 165 देश शामिल थे। देश जो महिलाओं को सर्वाधिक अधिकार और श्रेष्ठ जीवन देते हैं उनमें आइसलैंड, स्वीडन, कनाडा और डेनमार्क का नाम है। टॉप-20 में एशिया का एक मात्र देश फिलिपीन्स है जिसे सत्रहवां स्थान मिला है। सच तो यह है कि हमें इन आंकड़ों की कोई जरूरत ही नहीं है। बस एक दिन का अखबार पढऩे की जरूरत है। पिछले एक सितम्बर से राजस्थान  के मुखिया के गृह जिले जोधपुर से एक सैंतीस वर्षीय दलित महिला गायब है। उसका पति गुहार लगाते हुए बच्चों सहित आत्महत्या की बात कह चुका है लेकिन  भंवरी देवी का कोई अता-पता नहीं है।  भंवरी के पति ने इस्तगासे में कहा है कि उसकी पत्नी ज

आदम और हव्वा

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माटी होने जा रही  देह को उस दिन क्या याद आएगा मोबाइल का ब्रांड कम्प्युटर की स्पीड या फिर वह कार जिसकी खरोंच भी    दिल पर लगती थी उसे याद आएंगी महबूब की आँखें जिसमें देखी थी उसने सिर्फ मोहब्बत माटी होते हुए भी वह मुकम्मल और  मुतमइन होगी कि उसने देखी थी मोहब्बत में समर्पित स्त्री एक पुरुष में .

जाना

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  जाना कितना मुश्किल है किसी रूह का रूह के भीतर जाना हमारे बीच कैसे हँसते-खेलते हो गया सब पाक जज़्बे-सा  यह गठजोड़ ....  मेरा शीश अब वहीँ झुका जाता है मेरा शिवाला वही मेरा काबा वहीँ फिर भी  मैं  हूँ काफ़िर  तो वही सही .

ANNAtomy of the politicians

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om puri and kiran bedi at ramleela ground अनशन तो अन्ना का था लेकिन विषैले पदार्थ नेताओं के शरीर से निकल रहे हैं। ईमानदार वरिष्ठ नागरिक, अपने झोले में समाज की चिंताए लेकर चलने वाले, कम संसाधनों के बावजूद जीवट से आगे बढऩे वाले जिस तेजी से खुद को हाशिए पर धकेले जाते हुए देख  रहे थे, वे अब फिर से खुद को मुख्यधारा में महसूस कर  रहे हैं। उनकी सोच को जैसे आवाज मिल गई है, चेहरा मिल गया है। इस बड़ी सफलता में छोटी-मोटी परेशानियां  आई हैं। प्रशांत भूषण,किरण बेदी और ओम पुरी के खिलाफ संसद में विशेषाधिकार हनन का प्रस्ताव पेश किया गया है। किरण ने साफ कह दिया है कि वे माफी नहीं मांगेगी और जरूरत पड़ी तो अपने पक्ष की पैरवी भी खुद करेंगी। कुछ देर के लिए मान भी  लिया जाए कि किरण उस दिन अपने आचरण से अलग नजर आईं। दुपट्टा ओढ़कर जो कटाक्ष उन्होंने किए वे तीर की तरह चुभे। इसकी वजह शायद नेताओं का लगातार बदलता रवैया रही होगी। किरण ने साफ कहा था कि ये नेता हमसे कुछ बात करते हैं, मीडिया से कुछ कहते हैं और अन्ना के पास फोन कुछ और आता है। मानना पड़ेगा कि टीम अन्ना का समन्वय आला दर्जे का था अन्यथ

फरेब

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बड़े बवंडर थाम लेती हैं ये पलकें याद का तिनका तूफ़ान ला देता है   पथरीले रास्तों में संभल जाती है वो  नन्हा- सा  एक    फूल घायल कर देता है    सेहरा की धूप नहीं जला पाती उसे बादल का एक टुकड़ा सुखा देता है   कभी तो आओ  मेरे  सुकून ए जां क्यों  सब गैर ज़रूरी    दिखाई  देता है    आज हर तरफ परचम और रोशनी है लोगों को इसमें भी फरेब दिखाई देता है

उम्र उधेड़ के, साँसें तोड़ के

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आज गुलज़ार साहब की 76 वीं सालगिरह है उन्हीं की एक नज़्म जो मेरे  सवाल का जवाब भी है.   रोज़गार के सौदों में जब भाव-ताव करता हूँ गानों की कीमत मांगता हूँ - सब नज्में आँख चुराती हैं और करवट लेकर शेर मेरे मूंह ढांप लिया करते हैं  सब वो शर्मिंदा होते हैं मुझसे मैं उनसे लजाता हूँ बिकनेवाली चीज़ नहीं पर सोना भी तुलता है तोले-माशों में और हीरे भी 'कैरट' से तोले जाते हैं . मैं तो उन लम्हों की कीमत मांग रहा था जो मैं अपनी उम्र उधेड़ के, साँसें तोड़ के देता हूँ नज्में क्यों नाराज़ होती हैं ? ps:गुलज़ार साहब की  किताब छैंया- छैंया के बेक कवर से

न चीर होंगे न हरण होगा !!!

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पिछले दिनों कनाडा के टोरंटो शहर में एक पुलिस कांस्टेबल ने महिला विद्यार्थियों से कह दिया कि अवॉइड ड्रेसिंग लाइक स्लट्स...... पुलिसवाला नहीं जानता था कि उसकी इस एक टिप्पणी से तूफान आ जाएगा और स्लट वॉक नाम का आंदोलन शुरू हो जाएगा। महिलाएं कम कपड़े पहनकर सड़कों पर निकल आएंगी और  कहेंगी देखो कपडे कम हो या पूरे छेड़छाड़ न हो इसके लिए कपड़े नहीं वह  मानसिकता जिम्मेदार है जो ऐसा करना  अपना हक़ समझती है .  आंदोलन की सोच ने समूचे कनाडा और अमेरिका को झकझोर डाला। महिलाओं ने यह बताने की कोशिश की कि अगर कम कपड़े पहनने पर आप हमें स्लट् यानी फूहड़, कुलटा और ढीठ की संज्ञा देंगे तो यही सही। ऐसा कहकर आप अपराधी को तो बरी कर देते हैं और स्त्री को अपराधी ठहरा देते हैं। यह और बात है कि सकारात्मक भाव के साथ दिल्ली पुलिस कमिश्नर बी.के. गुप्ता भी यही कह चुके हैं कि देर रात किसी महिला को बाहर निकलना हो तो वह अपने रिश्तेदार या फ्रेंड के साथ हो। जाहिर है पुलिस प्रशासन यह स्वीकार चुका है कि महिलाएं अपने भरोसेमंद पुरुष के साथ ही ज्यादा सुरक्षित हैं। जब स्त्री अपने-आप में ही असुरक्षित है तो उसके कपड़े और कम

दो बच्चों के साथ लापता मां का सुराग नहीं

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खाली छोड़े गए फ्रेम में आप एक स्त्री और दो बच्चों की तस्वीर की कल्पना कर लीजिए। दो बच्चों के साथ लापता मां का सुराग नहीं शीर्षक के साथ यह खबर मय तस्वीर के मंगलवार को जयपुर के एक एक बड़े अखबार में प्रकाशित हुई है । खबर के अनुसार थाने में 13 जुलाई को रिपोर्ट दर्ज कराई गई कि 12 जुलाई को सुबह ग्यारह बजे उसकी [पति का नाम ] पत्नी (27), बेटी (11) और बेटा (2) के साथ कहीं चली गई। उसके पास चालीस हजार रुपए भी हैं। यह रकम पति ने मकान का पट्टा प्राप्त करने के लिए दी थी। पति और उसके परिजनों ने महिला को किसी व्यक्ति द्वारा बहलाकर ले जाने की आशंका व्यक्त की है। सवाल यह उठता है कि किसी भी महिला की तस्वीर छापकर या उसे 'भगौरिया घोषित कर हम क्या बताना चाहते हैं। वह  वयस्क और दो बच्चों की मां है। बच्चे भले ही नाबालिग हों, मां बालिग है और अपने फैसले ले सकती है। ऐसी खबरें किसी भी स्त्री के आत्न्सम्मान को ठेस ही पहुंचाएगी। यह कहकर भी अपमान किया गया है कि कोई उसे बहला-फुसलाकर ले गया और वह चालीस हजार रुपए लेकर गई है यानी चोर कहने से भी कोई बाज नहीं आया है। यह सूचना मय स्त्री और बच्चों की तस्वीर के

मेरे करीब मेरे पास

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यादों में मसरूफ़ एक सुबह तुम्हारे आते ही भीग जाती हैं ये आंखें इतनी शिद्दत से कोई नहीं  आता मेरे पास ये जो धरती का सिंगार देख रहे हो इन दिनों   इतना हरापन तुम्हीं से आया है मेरे पास   हर मुश्किल हालात में मेरा तेरी ओर ताकना अब कहीं से कोई जवाब नहीं आता मेरे पास टू टते तारे का नज़र आना भी अच्छा होता है कभी गम में शरीक होने ही आ जाओ मेरे पास ये जो मधुर कलरव हमारे पंछियों का है तुम हो यहीं मेरे बेहद करीब मेरे पास

जान का सदका

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मैं फिर जिंदा हो जाना चाहती हूँ तेरी जान का सदका लेना चाहती हूँ   नज़र ए बद से दुआ का सफ़र एक  पल में करना चाहती हूँ   ये जो ख्वाहिश  दिल ने की है  अल सुबह तेरे ज़ख्मों में खुद को पैबस्त करना चाहती हूँ  माजी कहकर भूलने को न कहना दोस्त स्वर्णिम दौर को लौटा लाना चाहती हूँ   पाषाण युग से यही आरज़ू  रही है मेरी तेरे लिए  कायनात किनारे कर देना चाहती हूँ   यह लोह - ओ-क़लम   भी ले जा रहा है तेरे  करीब मैं तो बस इसमें सवार हो जाना चाहती हूँ   होगी जब कभी क़यामत एक रोज़  मैं  पूरी तरह सज जाना चाहती हूँ

जीना नहीं आएगा

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 इसमें न कविता की लय है न ग़ज़ल का सलीका ...एक असर है जो बस मुखर हो जाना चाहता है . . . तेरे बिना जीना नहीं आएगा बिन बरसे सावन  कैसे जाएगा   बेमायने है सहज होने की कल्पना समंदर अपना अक्स छोड़  ही जाएगा       ये जो सीली-सीली सी आँखें हैं मेरी एक दिन आएगा पानी सूख जाएगा जानते हो वह दिन क़यामत का होगा तेरा-मेरा सिलसिला फिर जुड़ जाएगा     इसे विलाप का आलाप न समझना दोस्त आस का यह दिया अब नहीं बुझाया जाएगा

वह चुप है

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राजस्थान विश्वविद्यालय के परिसर में लों की परीक्षा देकर लौट रही एक छात्रा को छात्र छेड़ने के बाद पीटते रहे लेकिन कोई आगे नहीं आया और तो और घटना  के बाद प्रतिकार  स्वरुप किसी नेता, छात्र नेता का बयान भी नहीं आया  है ...यदि एक भी नेता/कुलपति  यह कह दे कि यदि दोबारा ऐसी घटना परिसर हुई तो ऐसे छात्रों का विश्वविद्यालय में पढ़ना मुश्किल हो जाएगा तब शायद अनुशासन का सायरन बजे. शायद तब भी नहीं .यहाँ तो न किसी को पढ़ना है न पढ़ाना . होठ तो अब छात्रा ने भी सी लिए हैं ...यह चुप्पी चौंकाती है और संकेत देती है कि सब कुछ ऐसे  ही चलता रहेगा शुभदा अपनी उम्र के तीन दशक पार कर चुकी हैं, लेकिन आज वे चौदह की उम्र में घटे जिस वाकये को सहजता से सुना रही थीं तब दिल में केवल दहशत थी। बचपन से ही खेलने-कूदने में शुभदा की दिलचस्पी थी। नए बन रहे मकानों की छतों से रेत के ढेरों पर कूदना शुभदा के ग्रुप के बच्चों का शौक था। उस दिन शुभदा ने घेरदार स्कर्ट पहन रखी थी। नीचे कूदते ही वह स्कर्ट छतरी की तरह खुल गई। शुभदा बहुत घबरा गई और उसे खुद पर शर्म आने लगी। बाजू से शरारती लड़कों का समूह गुजर रहा

जय डे

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jyotirmay dey ie  j dey  चार साल पहले एक लड़की आई थी। दीदी मेरा बहुत मन है पत्रकारिता की पढ़ाई करने का।  चयन हो गया और मैं इस फील्ड में अपना करियर बनाना चाहती हूं। फिर दिक्कत क्या है? ... 'पापा मना कर रहे हैं, एक बार आप चलकर उनसे बात कर लो शायद वे मान जाएं।' उसने कहा। आखिर, वे मना क्यों कर रहे हैं। 'पापा को लगता है कि इस फील्ड में खतरा ज्यादा है और पैसा भी नहीं। वे चाहते हैं कि मैं एमबीए कर लूं या फिर कॉम्पिटिटिव एग्जाम्स देकर  सेफ करियर चुनूं। 'लिखने -पढऩे वाली लड़की थी। पापा का सम्मान करती थी। पत्रकारिता में नहीं आई, आज उसके  पास बढिय़ा सरकारी नौकरी है। इससे कुछ और पहले एक लड़का भी पत्रकारिता में आया था। बड़े पैशन के साथ लेकिन मनमाफिक काम नहीं मिलने और कम तनख्वाह ने उसके पैशन की हवा निकाल दी। कुछ समर्पण और प्रतिबद्धता की भी कमी रही होगी, जो ये दोनों अखबारनवीसी को अपना नहीं पाए। सवालों के इन चक्रव्यूहों से निकलकर जो युवा इस विधा को अपना पेशा बनाता है, वह बेशक प्रतिबद्ध होता है, सुनिश्चित होता है। पैसा भले कम सही, लेकिन समाज के लिए कुछ नेक काम वह  कर जाना चाहता है। उ

या हुसैन !!

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naman: in mumbayee at mahboob studio..image shahid mirza मकबूल फिदा हुसैन से दिल्ली, मुंबई और इंदौर में हुईं आठ मुलाकातें उन पर लिखने का हक नहीं दे देतीं, न ईरानी होटल में उनके साथ ली गई चाय की चुस्की और न ही कफ परेड स्थित उनके फ्लैट पर खाई बिरियानी , न महबूब स्टूडियो में गजगामिनी के लिए लगाया गया सेट, न वरली नाका में उनका एक साथ पांच बड़े पैनल पर रंगों से खेलना और न ही इंदौर के कॉफी हॉउस में घंटों उनकी सोहबत। दरअसल, हुसैन बाबा से हुईं ये सारी मुलाकातें एक भीतरी परिवर्तन के दौर से गुजरने की कवायद है। आप एक कायांतरण सा महसूस करते हैं, आप विकसित होते चले जाते हैं, आपके भ्रम टूटते चले जाते हैं, माधुरी पर लट्टू एक बूढ़े की छवि तहस-नहस होती है। हमारे देवी-देवताओं को नग्न चित्रित करने वाला दृष्टिकोण चकनाचूर हो जाता है, जब आप उनकी फिल्म गजगामिनी के चरित्रों में भारतीय दर्शन को महसूस करते हैं। उनकी कला में छुपे दर्शन को उनके विरोधियों ने नहीं पहचाना। इसी के चलते उन्हें देश छोड़ना पड़ा। वे कभी लंदन तो कभी दुबई के बीच झूलते रहे। कुछ लोगों ने इसे ओढ़ा हुआ निर्वासन कहा। इस बीच किसी सरकार या समूह ने

क्या होता है दुर्भाग्यपूर्ण ?

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दुर्भाग्यपूर्ण । भारतीय राजनीति में इस एक  शब्द का जितना दुरुपयोग हुआ है वह वाकई दुर्भाग्यपूर्णहै। क्या होता है यह दुर्भाग्यपूर्ण? सत्ता आपके पास है, फैसले आप लेते हो, डंडे आप चलाते हो और ऊपर से कहते हो दुर्भाग्यपूर्ण। दुर्भाग्यपूर्ण आप खुद  ही तो नहीं। इस देश के लिए। प्रजातंत्र के लिए। ईमानदारी के लिए। महंगाई के लिए। फेहरिस्त लंबी है। गिनते चले जाइए। आधी रात के बाद यदि यह भीड़  को तितर-बितर करने का षड्यंत्र था, तो बेशक यह लोकतंत्र के खिलाफ था। भीड़ यदि खतरा है, तो प्रजातंत्र  भी  खतरा है। स्वयं आपकी सरकार खतरा है, क्योंकि यह सब भीड़ का ही नतीजा है। शायर अल्लामा इकबाल ने कहा भी है  जम्हूरियत यानी प्रजातंत्र वह तर्ज -ए-हुकूमत है, जहां बंदों को तौला नहीं, गिना जाता है। बाबा रामदेव कितने सच्चे हैं, उन्हें योग सि खा ना चाहिए, राजनीति नहीं करनी चाहिए, इन सब बातों का रामलीला मैदान पर हुए अनशन से कोई ताल्लुक नहीं होना चाहिए। बच्चन साहब एक्टर  हैं एक्टिंग  ही करनी चाहिए, अरुण शौरी को सिर्फपत्रकारिता और किरण बेदी को सामाजिक कार्यकर्ता की सरहद नहीं लांघनी चाहिए। कौन तय करेगा