मैंने बीहड़ में रास्ते बनाए हैं

meera by tamanna
मैं नहीं हो पाई सवित्री
न ही जनक नंदिनी सी समाई
धरती में
न याग्यसेनी कि तरह लगी दाव पर
मेरा पति भी शकुन्तला का दुष्यंत नहीं था
कभी कुंती सी भटकी नहीं मैं
न ही उर्मिला सी वेदना ली कभी
मैं वह राधा हूँ जिसे कृष्ण ने
पूरी दुनिया के सामने वरा
अब जब में सावित्री नहीं हो पायी हूँ
मैं हो जाना चाहती हूँ मीरा
उस एक नाम के साथ

पार कर जाना चाहती हूँ यह युग
कालातीत हो जाना चाहती हूँ मैं
राधा को भी मीरा बनना पड़ता है
यही  इस जीवन की
गाथा है.

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