एक समय था जब राजा-महाराजा प्रजा का हाल जानने के लिए भेस बदलकर उनके बीच जाया करते थे क्योंकि वे जानना चाहते थे कि उनके ख़िलाफ़ कोई नाराज़गी या उन्माद तो नहीं है। जो काम वे कर रहे हैं उन्हें जनता पसंद कर रही है या हाहाकार मचा है। उत्तर रामायण में तो वर्णन है कि भगवान राम को उनके गुप्तचरों ने ही सूचना दी थी कि प्रजा, माता सीता के बारे में अलग सोच रही है। इसके बाद जो हुआ वह आज तक बहस में है कि राम को सीता का त्याग करना चाहिए था या नहीं। अपनी सबसे प्रिय सीता का जिन्हें पहली बार पुष्प वाटिका में देख उन्हें खयाल आया था कि वे इतनी सुन्दर हैं कि सुंदरता भी उनसे ही सुन्दर होती है, फिर भी उन्होंने प्रजा के लिए यह कठोर निर्णय लिया। सीता के वन-गमन का हृदय विदारक निर्णय। राम वे राजा थे जो प्रजा की सोच पर खरा उतरने के लिए किसी भी हद तक जा सकते थे। अपने सबसे प्रिय का त्याग भी कर सकते थे। कालांतर में बादशाह अकबर के नाम भी किस्से दर्ज़ हैं कि वे रूप बदल कर जनता के बीच दाखिल हो जाते थे। दरअसल ये उस दौर के तरीके थे जब राजा जनप्रिय बने रहने के लिए निज प्रयास करते थे। एक आज का दौर है जहां निजता हरने का कारो
मनने से तनिक अधिक, भजने से तनिक कम।
जवाब देंहटाएंयह राह तो सबसे मुश्किल होती है ...... कमाल का शाब्दिक चयन है रचना में....
जवाब देंहटाएंaapka bahut shukriya praveenji aur dr. monika
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना है...
जवाब देंहटाएंमनोभावनाओं को कागज पर उकेरना तो कोई आपसे सीखे
जवाब देंहटाएंshukriya firdaus aur mangalamji
जवाब देंहटाएं