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इंद्रप्रस्थ में महाभारत और राजदंड

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महाभारत ग्रन्थ में इंद्रप्रस्थ नाम के एक नगर का उल्लेख है जिसे पांडवों ने बसाया था। उस शहर और उसके महल में हैरान कर देने वाला शिल्प और जादू था जो अच्छों-अच्छों को भ्रमित कर देता था। ऐसा लगता था जैसे आगे दीवार है लेकिन वहां से गुज़रा जा सकता था। जहाँ लगता कि आईना या दरवाज़ा है वह अभेद्य था । फ़र्श ऐसा कि पांवों के नीचे झरने बह रहे हों ,और अर्श हज़ारों दीयों और कंदीलों की रौशनी से नहाया हुआ। झूमर नई नक्काशी और चांदनी का मिलाप थे। इसी चकाचौंध में जब दुर्योधन का पांव फिसला तो द्रौपदी व्यंग्य से कह उठी -"अंधे का पुत्र अंधा! " विद्वान् कहते हैं यही महाभारत की जड़ था। दरअसल  इंद्रप्रस्थ पहले खांडवप्रस्थ का खंडहर था जिसे शकुनि ने पांडवों को शांत कर लेने के लिए दे दिया था। बाद में श्रीकृष्ण और अर्जुन ने इसे विश्वकर्मा और मयासुर के सहयोग से स्वर्ग से सुंदर बना दिया था। विश्वकर्मा को दुनिया का पहला आर्किटेक्ट भी कहा जाता है।  मयासुर ने अपनी माया से उस   खंडहर में पड़ा दिव्य रथ ,गदा ,धनुष और अक्षय गांडिव अर्जुन को दिया था और कहा था की इस तरकश के तीर कभी ख़त्म नहीं होंगे। ये सब महाभारत के युद्ध

जो गीत दिलों में क़त्ल हुए हर गीत का बदला मांगेंगे

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अच्छा है कि ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री एंथनी अल्बनीज ने हमारे प्रधानमंत्री को 'बॉस' कहा और यह भी अच्छा है कि अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन ने उनसे ऑटोग्राफ लेने की ख़्वाहिश की। कोई उनके पैर छूने को ही लालायित है।सच तो यह है कि भारत की जनता भी उनसे कुछ उम्मीद रखती है। उन्हें यही कहना चाहती है या शायद कहती भी रही है लेकिन अक्सर देखा जाता है कि वे सरकार में मिलकर जनता के हित साधने में चूक कर जाते हैं। किसी भी लोकतंत्र में सरकार के मायने क्या होते हैं? यही कि उसके फैसलों से उसके नागरिकों की जिंदगी आसान हो, उनकी तकलीफ़ों की सुनवाई हो, वे सुरक्षित हों लेकिन क्या ऐसा है? तो फिर जंतर-मंतर पर देश के लिए मैडल लाने वाली पहलवानों की तकलीफ पर कोई क्यों कान नहीं धरता? ,दिल्ली पर जनता के विरुद्ध क्यों अध्यादेश आता है? और मणिपुर में 75 लोगों के प्राण जाने के बाद हिंसा का दोबारा भड़कना क्यों होता है? क्यों ऐसा होता है कि केंद्र  जिसका 'बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ' में गहरा यकीन है वह महिला पहलवानों की पीड़ा को यूं अनदेखा कर देता है? 'सबका साथ सबका विकास' कहते-कहते मणिपुर में क्यों ऐसा

लक्ष्मण रेखाओं की कैद से आज़ाद हो गए किरन रिजिजू

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पूर्व कानून मंत्री किरन रिजिजू (51)की अब तक की कहानी को थोड़े में समेटा जाए तो अरुणाचल प्रदेश के छोटे से गाँव नाखु में जन्मा एक बच्चा जिसे खेलों से बहुत लगाव था और जिनके पिता अरुणाचल प्रदेश की पहली  विधानसभा के पहले अध्यक्ष (प्रोटेम स्पीकर) रहे। कानून में रूचि उन्हें विरासत में मिली और खेल तो  पसंद रहा ही इसीलिए कानून से पहले वे खेल मंत्री थे। दिल्ली के हंसराज कॉलेज से कानून की डिग्री लेने के बाद 33 की उम्र में ही वे अरुणाचल से लोकसभा सदस्य चुन लिए गए। अपने क्षेत्र से जुड़े मुद्दों पर जोशीली बहस करते हुए , उन्हें संसद में सबने देखा। बहुत कम लोग जानते हैं कि रिजिजू कुछ समय के लिए कांग्रेस में भी रहे। यह तब की बात है जब कांग्रेस के उम्मीदवार ने उन्हें लोकसभा चुनाव में हरा दिया था। फिर वे भाजपा में शामिल हो गए और 2014 की मोदी लहर पर सवार होकर संसद सदस्य बने । दो साल पहले वे देश के 34 वें कानून मंत्री बने। उनसे पहले रवि शंकर प्रसाद इस पद पर थे जिन्हें वकालत का लम्बा अनुभव था। हिंदी पर पकड़ अच्छी होने से रिजिजू का भाजपा और उनके संगठनों के बीच  संवाद बढ़िया रहा लेकिन सुप्रीम कोर्ट से उनका संवाद

कर्नाटक के नतीजे नहीं लिखेंगे 2024 की नई गाथा

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यह बहुत अजीब था कि जिस दिन कर्नाटक की जनता मतदान करने जा रही थी, ठीक उसी दिन राजस्थान में कांग्रेस के बागी नेता ख़म ठोंक रहे थे। कभी प्रदेश कांग्रेस समिति के अध्यक्ष और पूर्व उप उप मुख्यमंत्री रहे सचिन पायलट ने अपने ही मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था। उन्होंने कहा कि मुख्यमंत्री की राजनीति पैसों के दम पर चलती है, इनकी नेता सोनिया गांधी नहीं बल्कि वसुंधरा राजे सिंधिया हैं और इसीलिए ये मेरे कहने के बावजूद वसुंधरा सरकार के कार्यकाल में हुए भ्रष्टाचार की जांच नहीं कर रहे हैं। पायलट ने राजस्थान लोक सेवा आयोग को भंग किये किए जाने की मांग की जो एक संवैधानिक इकाई है। अपनी ही सरकार के खिलाफ अजमेर से जयपुर की पदयात्रा निकाली। इससे पहले मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह चुके थे कि सचिन के नेतृत्व में विधायक दस-बीस करोड़ रूपए ले चुके हैं और उनकी सरकार बचाने में वसुंधरा राजे सिंधिया का योगदान है। पायलट को 'निकम्मा' और 'नालायक' सम्बोधन वे पहले ही दे चुके हैं। पायलट अपनी ही सरकार के खिलाफ धरना और प्रदर्शन सब कर चुके हैं। कर्नाटक में मतदान के दिन वे अपने पंद्रह विधायकों के साथ

एग्जिट पोल जो एक्जैक्ट साबित हुए तब

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अगर जो कर्नाटक विधानसभा चुनाव से जुड़े एग्जिट पोल्स सही साबित होते हैं तो मानकर चलिये कि सरकार चलाने में और फिर चुनाव प्रचार में बहुत कुछ ऐसा हुआ है जिसे नहीं होना चाहिए था। संदेश साफ़ होगा कि बड़े नेता मैसूर पाक खाते हुए स्थानीय लोगों के दुख-दर्द बांटे तो ठीक लेकिन अपना एजेंडा लादेंगे तो वह जनता को मंज़ूर नहीं होगा। बहुत संभव है कि नतीजों के बाद ये बड़े-बड़े दल अपने प्रचार अभियान और शैली पर गंभीर चिंतन करेंगे। अगर बहुमत कांग्रेस को मिलता है, जैसा कि अधिकांश एग्जिट पोल्स दिखा रहे हैं, तब शायद बहुत कुछ पुनर्विचार के लायक होगा। अव्वल तो कभी भी कोई दल अपने किसी दल या संगठन को सर्वशक्तिमान से जोड़ने की जुर्रत नहीं करेगा, कभी धमकी की जुबां में बात नहीं करेगा कि "अगर आपने वोट नहीं दिया तो आपको प्रधानमंत्री का आशीर्वाद नहीं मिलेगा", तीसरे, कभी यह समझने में भी भूल नहीं करेगा कि चुनाव में स्थानीय नेतृत्व की भूमिका होती है, केवल केंद्रीय ताकत की नहीं। गुजरात अपवाद हो सकता है क्योंकि वहां का स्थानीय नेतृत्व ही अब केंद्र में है। गुजरात में भी भारतीय जनता पार्टी ने अपने तमाम बड़े स्थानीय नेताओ

समलैंगिक विवाह : समाज क्रूर सरकार नर्म !

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भारत के सर्वोच्च न्यायालय में बहस चल रही थी कि समलैंगिकों को शादी का अधिकार हो या नहीं ?  फिलहाल  इस लम्बी बहस को सकारात्मक विराम मिला है क्योंकि सरकार के वकीलों ने कह दिया है कि जल्दी ही वे एक समिति का गठन करेंगे क्योंकि इसमें कई विभागों के समन्वय की ज़रुरत होगी।कैबिनेट सचिव स्तर की समिति के सदस्य इस पर भी विचार करेंगे कि इन जोड़ों को सामान्य शादी माना  जाए या फिर एक नए कानून के तहत इनके अधिकार सुरक्षित किये जाएं।  यहाँ तक पहुंचने के लिए इस समुदाय ने  जिसे LGBTQ कहा जाता है ,लंबी लड़ाई लड़ी है। पहले तो वे अपराधी ही माने जाते थे। जेलों में डाल दिए जाते थे केवल इसलिए  क्योंकि वे सामान्य स्त्री-पुरुष की तरह सम्बन्ध नहीं जी पाते थे। धारा 377  जो उन्हें अपराधी क़रार देती थी, वह 128 साल तक देश में बनी रही। कंपनी शासन के साथ भी और कंपनी शासन के बाद भी। इस धारा के हटने के बाद अब समलैंगिक जोड़े शादी के करार में बंधना चाहते हैं जो लोग इसके ख़िलाफ़ हैं वे लगातार  लिख-बोल  रहे हैं कि भारतीय संस्कृति  में विवाह एक संस्कार है, दो आत्माओं का मिलन है। वे पूछते हैं  कि क्या विदेश में जो होता है ,वही एकमात्र ज

चालीस फ़ीसदी कमीशन वाली भाजपा अब बजरंग बली की शरण में

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        कर्नाटक का चुनाव प्रचार शबाब पर है और शबाब पर हैं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रैलियां, गालियां और मन की बातें। अगर आप आईपीएल क्रिकेट में खिलाडियों की बल्लेबाज़ी का हिसाब रख रहे हैं, तो राजनीति के मैदान पर भी एक मंजे हुए खिलाड़ी हैं जिनके शतक का हिसाब-किताब रखा जा रहा है। उनकी 'मन की बातों' का शतक लग चुका है और उन्हें मिलने वाली गालियों का भी पूरा होने वाला है। अब तक वे 91 गालियां खा चुके हैं। यानी शतक से नौ दूर। कर्नाटक चुनाव का घमासान सामने है और हिसाब-किताब रखने वालों को पूरी उम्मीद है कि शतक जड़ दिया जाएगा। कर्नाटक चुनाव के अधिकांश सर्वेक्षण जो कि ज़रूरत से ज़्यादा ही आ रहे हैं, सभी या तो कांग्रेस का बहुमत बता रहे हैं या फिर कांटे की टक्कर। कर्नाटक बड़ा राज्य है जिसकी 224 सीटों पर एक साथ 10 मई को मतदान होना है और नतीजे 13 मई को आएंगे। अकेला राज्य है जहाँ इस समय चुनाव हो रहे हैं। पूरे देश का फोकस उस पर है लेकिन बीच-बीच में उसका पड़ोसी राज्य  महाराष्ट्र बिना चुनाव के ही बाज़ी मार लेता है। हार-जीत से अलग इस चुनाव को लोकतान्त्रिक प्रक्रिया और सियासी दलों की खिसियाहट के हवाले स