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रेस दौड़ने से पहले मत हारो यार

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वह दीवार खुरच कर चला गया। उसने लिखा मैं सिलेबस पूरा नहीं कर पाया। मैं समय बरबाद करता रहा। आज का काम कल पर छोड़ देना मेरी सबसे बड़ी कमी थी। यह लिखकर वह फांसी के फंदे से झूल गया। अठारह साल का केशव यूं इस दुनिया से कूच कर गया। ये हकीकत हमारे प्रदेश के कोटा शहर का स्थाई भाव बनती जा रही है। इस साल की यह छठी खुदकुशी है, जो कोटा में हुई है। हैरानी है कि हम सब यह मंजर देख-सुनकर भी चुप हैं। ना केवल चुप हैं बल्कि अपने बच्चों को भी उसी दिशा में धकेलने को लालायित भी। कितने माता-पिता हैं जो अपने बच्चे की काउंसलिंग इसलिए कराना चाहते हैं कि वह भी इस भेड़चाल का हिस्सा ना बने। हम तो वे माता-पिता हैं जो बच्चे के विज्ञान विषय चुनने की बात से ही खुश हो जाते हैं कि अरे वाह ये तो सही दिशा में है। क्या वाकई? वह सही दिशा में है या उस पर भी दबाव है क्योंकि उसके ज्यादातर मित्रों-सहपाठियों ने विज्ञान विषय ही लिया है। वह भी गणित के साथ। जिन्हें गणित से तकलीफ है वह बायोलॉजी के साथ हैं। यही तो peer pressure है जो हम सब झेल रहे हैं।   विज्ञान बेहतरीन विषय है लेकिन इस रूप में? हम जिस दबाव की बात करते हैं देखि