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ईडी टिड्डी तो आप क्या गोडावण ?

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राजस्थान का चुनावी परिदृश्य बहुत दिलचस्प हो गया है। जो वक्त प्रत्याशियों की घोषणा और उनकी हार -जीत पर अनुमान लगाने का था, वह  फुटेज ईडी खा गई है। हर ज़ुबां अब ईडी-ईडी बोल रही है। आचार संहिता के बीच ईडी यानी प्रवर्तन निदेशालय की ऐसी सक्रियता अभूतपूर्व है। चुनाव में एक महीना भी नहीं बचा है और दोनों पार्टियों के बीच ईडी ठस गई है। ऐसा पेपर लीक मामले की जांच के लिए किया गया है। मुख्यमंत्री अशोक गहलोत कह रहे हैं कि यह जांच दल नहीं बल्कि टिड्डी दल है जो खड़ी फसल चट कर जाता  है। पश्चिमी राजस्थान में मध्य पूर्व और पाकिस्तान के रास्ते से आने वाले टिड्डी दलों का आतंक है तब क्या अशोक गहलोत कोई गोडावण पक्षी है जो टिड्डियों का ही सफाया कर देता है? यूं गोडावण (ग्रेट इंडियन बस्टर्ड )राजस्थान का राज्य पक्षी है जो थोड़ा वज़नी होने की वजह से उड़ नहीं पाता लेकिन दौड़ता तेज़ है। फिलहाल ईडी हमले में  माफ़ कीजिये ईडी छापों से तो कांग्रेस एक दिखाई दे रही है। सचिन पायलट दिल्ली की प्रेस वार्ता में इसके समय को गलत बता रहे हैं। वैसे पेपर लीक मामले सरकार का विरोध करने वालों में सचिन पायलट ही आगे थे,स्थानीय भारतीय जनता पार

इजराइल-हमास के बीच जनमानस , ’मेरे नाम पर' मत लड़ो ये जंग'

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 एक युद्ध वह था जिसे राम ने लड़ा था।  कोई दुविधा नहीं थी वहां । एक ही लक्ष्य बुराई और आतंक का ख़ात्मा।यह लड़ाई इतनी ईमानदार नहीं जितनी राम की रावण के विरुद्ध थी जो होती तो आज हमास जैसे  आतंकवादी संगठन का जड़ से खात्मा हो चुका होता। भगवान राम युद्ध जीतकर गद्दी विभीषण को सौंप आए थे। लंका में भी उनके जयकारे लग रहे थे। यहां  इरादे नेक नहीं है। लंका में तो लंका के लोग ही रावण के साथ नहीं थे क्योंकि वो अपने कृत्य में ईमानदार नहीं था। जंग ऐसी ही होनी चाहिए और जो ऐसी ना हो बेगुनाह बच्चों को मारे तब आम इंसान को सड़क पर आ जाना चाहिए। उनके विरोध में जो कहलाए तो आका जाते हैं लेकिन लड़ाई में एक पक्ष चुन लेते हैं अपनी सुविधा का। यहूदियों का एक हिस्सा तो आ चुका है इस अमानवीयता के खिलाफ सड़क पर कि मेरे नाम पर मानवता के यूं टुकड़े ना करो। अस्पताल पर मिसाइलें दागी जा रही हैं,दोनों और मासूम बच्चे मारे जा रहे हैं और ये नेता गले लग कर एक दूसरे की हौसला अफजाई कर रहे हैं। कोई युद्ध विराम की कोशिश नहीं कर रहा।  हैरानी और दुख की बात है कि अभी अस्सी साल भी नहीं बीते कि हिटलर के अत्याचार से पीड़ित एक कौम जो दर्द और मौत क

'एक देश एक चुनाव' हाँ कि ना !

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 देश के पांच राज्यों में चुनाव निर्धारित हो चुके हैं। तारीख़ें भी घोषित हो चुकी हैं। अब फर्ज़ कीजिये कि इन राज्यों के मतदाताओं को यदि देश के लिए भी मतदान (अगर कुछ राज्य में होते भी हैं) करना पड़े तो क्या यह उन पर किसी तरह का अतिरिक्त बोझ होगा या यह बिल्कुल सहज होगा? देश, प्रदेश और फिर स्थानीय मुद्दे क्या गड्डमड्ड नहीं होंगे? या यह ठीक होगा कि देश के मुद्दों को ध्यान में रखते हुए मतदाता अपने विधायक और पार्षद को भी चुन लें या फिर स्थानीय मुद्दों के हिसाब से देश के लिए अपने सांसद चुन लें? तीन तरह के प्रत्याशी एक साथ उनके दरवाज़ों पर आएंगे। यूं सभी आते भी कहाँ हैं फिर भी क्या यह हालात कोई दुविधा पैदा नहीं करेंगे? हाल ही में राजस्थान चुनाव को लेकर निर्वाचन आयोग ने जो अपने फैसले पर दोबारा विचार न किया होता तो उसका चकरघिन्नी होना तय ही था। तारीख़ बदलने का पूरे राजस्थान में स्वागत हो रहा है। पहले आयोग ने राजस्थान में चुनाव की तारीख़ 23 नवंबर घोषित की थी। यह तिथि बदलनी पड़ी क्योंकि उस दिन देवउठनी एकादशी है। राज्य भर में हज़ारों शादियां इस दिन होती हैं। इसे 'अबूझ सावा' माना जाता है यानी ब्याह श

'सत्ता' महाठगिनी हम जानी

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पत्रकार का दायित्व आखिर क्या है ? सत्ता की चाटुकारिता या सत्ता से सवाल ? जब कोई सत्ता पांच साल पूरे कर रही हो और राज्य के तमाम संसाधन और शक्तियां उसके पास रही हों तब किसी भी पत्रकार को सवाल मुख्यमंत्रियों से करने चाहिए या विपक्ष से या फिर जनता को ही खरी खोटी सुना देनी चाहिए ?क्या पत्रकारों को नहीं पूछना चाहिए कि आपने अपनी शक्ति का इस्तेमाल जनता के हित में किया या बन्दर बांट में या फिर पूरी ताकत उन्हें बांटने में ही लगा दी? आपने राज्य के सुनहरे भविष्य की योजनाएं बनाईं या तात्कालिक लाभ देकर वोटर को लुभाने की कोशिश की ? सत्ता तो हमेशा चाहेगी कि आप विपक्ष से ही सवाल करो और जो जनता भी ना माने तो उनके घर भी ढहा दो ,सत्ता के गढ़ नहीं टूटने चाहिए। ऐसे  सवाल जब पत्रकार करता है तो आँख की किरकिरी बन जाता है। बड़ी सत्ता उसे बड़ा लेंस लगा कर देखने लगती है और देशद्रोही कहकर जेल में डाल देना चाहती है। हाल ही में वैकल्पिक मीडिया के न्यूज़ पोर्टल न्यूज़ क्लिक के संस्थापक  ,पत्रकार ,कार्टूनिस्ट,कॉमेडियन ,सामाजिक कार्यकर्ताओं के साथ यही हुआ । सरकार से अलग सोचना क्या देशद्रोही हो जाना है? पत्रकार,जनता अलग सोच