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मैंने चाहा था ख़ुशबू को मुट्ठी में कैद करना

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ख़ुशबू मैंने चाहा था ख़ुशबू को मुट्ठी में कैद करना ऐसा कब होना था वह तो सबकी थी उड़ गयी मेरी मुट्ठी में रह गया वह लम्स उसकी लर्ज़िश और खूबसूरत एहसास काफ़ी है एक उम्र के लिए       नासमझी   अक्सर दुआओं में उठे तुम्हारे हाथ देखकर, मैं कहती इनकी सुनना मौला मैं नासमझ नादाँ कहाँ समझ पाई थी कि तुम्हारी हर अरदास हर अर्ज़ हर इबादत में मैं थी. काश, कोई एक सजदा कभी अपने लिए भी किया होता तुमने .. .

ग़ैर मुल्क में कोई अपना

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यह चेहरा है अमेरिकी  नागरिक  एडवर्ड स्नोडेन का , जो अमेरिका  की  सुरक्षा एजेंसी(एनएसए) में कार्यरत हैं। उनतीस साल के  एडवर्ड का अच्छा खासा जॉब है लेकिन रक्षा विभाग में काम क रते हुए उन्हें लगा कि   सुरक्षा के  नाम पर अमेरिका उन करोड़ों नागरिकों  की  निजता का  हनन कर रहा है, जो गूगल, फेसबुक स्काइप, यू ट्यूब, माइक्रोसॉफ्ट, एप्पल, याहू जैसी साइट्स पर सक्रिय  हैं। अमेरिकी  सुरक्षा एजेंसियों की  पहुंच इन्हें चलाने वालों के सर्वर तक है। इन कम्पपनियों के  संचालक भले ही कहते फिरें कि  हमने अमेरिकी  सरकार से इन सूचनाओं को  साझा नहीं किया है, लेकिन एडवर्ड स्नोडेन की माने, तो उनके  जमीर ने यह गवारा नहीं किया कि  हर गैर-अमेरिकी का  निजी खाता महज इसलिए अमेरिकी  सरकार के  पास हो, क्योंकी  उन्हें अपनी सुरक्षा की  चिंता है।   अचरज की  बात है, लेकि न सच्चाई यही है कि  आप अपनी मासूमियत के  चलते जो भी इन सोशल नेटवर्किंग  साइट्स पर साझा करते है, वह अमेरिका  को  मालूम है। एडवर्ड ने जब इसे उजागर किया, तो उन्हें अमेरिका  छोडऩा पड़ा। उन्हें मालूम हो गया है कि  उनका  यह कदम देशद्रोह की  श्रेणी में रखा ज