संदेश

2014 की पोस्ट दिखाई जा रही हैं

पट्टी पढ़ते हुए

चित्र
कवर स्टोरी के लिए बाबाओं की भूमिका और समाज के हालात को लेकर विचार-विमर्श चल ही रहा था कि शिक्षा मंत्री स्मृति ईरानी की एेसी तस्वीर सामने आ गई जिसमें वे ज्योतिषाचार्य से पूछ रही हैं कि उनका अपना भविष्य क्या है? बेशक ज्योतिष एक गणना है और कुछ लोग इस गणित को जानते हैं ।  मंगलगृह पर सफलतापूर्वक यान पहुंचाने वाले देश के कर्णधार अगर ग्रहों को यूं पढ़वाने में यकीन रखते हैं तो समझा जा सकता है कि क्यूं देश का बड़ा हिस्सा बाबाओं की चपेट में है।                 एक दूर के रिश्ते की बुजुर्ग हैं। एक समय में वे बड़ी-पापड़ बनाकर ठीक-ठाक व्यवसाय कर लेती थीं। पिछले बीस सालों से बाबाजी की संगत में हैं। कामकाज छोड़ दिया, वहीं सेवा करती हैं, सत्संग में आती-जाती हैं। उठते-बैठते उन्हीं का नाम लेती हैं और खुश हैं। हैरत की बात है कि बाबा ने उन्हें कौनसी युक्ति दी है कि वे सब कुछ भूलकर उन्हीं को जपती हैं और उनके दर्शन को शहर-शहर जाना नहीं छोड़ती। उद्यम अब उनसे होता नहीं लेकिन बाबा की आस्था उनसे सब कुछ करवा लेती है।                     मिलन की मां उसके हकलेपन से बहुत चिंतित थी। उन्हें लगता था कि

नसबंदी नहीं नब्ज़बंदी

चित्र
ये बेदान बाई  हैं  जिनकी बेटी की बिलासपुर के नसबंदी शिविर में नब्ज़ बंद हो गयी।  अब इस बच्ची की माँ जैसी देखभाल कौन करेगा। ।तस्वीर  AP   बिलासपुर के नसबंदी शिविर में  पंद्रह युवा माओं की  जान चली गयी।  हादसे के  भी छत्तीसगढ़ सरकार की  नीयत तह तक पहुंचने की नहीं लगती, जांच की जिम्मेदारी एकल न्याय आयोग को दी गई है। न्यायाधीश अनीता झा सेवानिवृत्ति के बाद छत्तीसगढ़ वाणिज्यिक कर अभिकरण में अध्यक्ष पद के लिए पहले ही आवेदन कर चुकी हैं। जिस आदिवासी लड़की मीना खलखा को माओवादी बताकर पुलिस ने हत्या कर दी थी उस मामले की जांच भी इन्हं हीे सौंपी गई थी। रिपोर्ट तीन महीने में आनी थी आज तक नहीं आई। पिछले साल भारत में चालीस लाख नसबंदी ऑपरेशन हुए और इन्हें कराने वाली 97 फीसदी महिलाएं थीं यानी केवल तीन फीसदी पुरुषों को अपने परिवार की चिंता थी। यह छोटा सा आंकड़ा भारत के उस पारिवारिक संस्कृति की पोल भी खोलता है कि यह अगर जीवित है तो उसका 97 प्रतिशत श्रेय स्त्री को ही जाता है। वही बच्चों का लालन-पालन भी करती है तो वही अपने शरीर में एेसी व्यवस्था भी कराती है कि पति को कोई कष्ट ना हो। वही अपनी

एक हिन्दू एक मुसलमान

चित्र
महात्मा गांधी को भले ही नोबेल शांति पुरस्कार ना प्रदान किया गया हो, लेकिन जिन्हें दिया गया है, वे उन्हीं के पदचिह्नों पर चले हैं। पुरस्कार उन हजारों हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्पंदित कर गया है, जो देश  दुनिया के हालात बदलने की ख्वाहिश रखते हैं।  कैलाश ही क्यों, मदर टेरेसा कुष्ठ रोगियों के घाव सहलाती हैं, सुंदरलाल बहुगुणा पेड़ों से चिपककर चिपको आंदोलन चला देते हैं। मेधा पाटकर गांवों को डूब से बचाने के लिए नर्मदा बचाओ आंदोलन खड़ा कर देती हैं। बाबा आमटे मध्य प्रदेश के बड़वानी में नर्मदा किनारे रोगियों की सेवा करते हुए ही प्राण त्याग देते हैं। पर्यावरणविद् अनुपम मिश्र को राजस्थान सरकार पानी पर कार्यशाला के दौरान सितारा होटल में ठहराना चाहती है लेकिन वे गेस्ट हाउस में सादा कमरा ही चुनते हैं। इन बेहद सादा तबीयत लोगों के पास अपने लक्ष्य हैं जो इन्हें स्पंदित रखते हैं। महात्मा गांधी को भले ही नोबेल शांति पुरस्कार ना प्रदान किया गया हो, लेकिन जिन्हें दिया गया है, वे उन्हीं के पदचिह्नों पर चले हैं। पुरस्कार उन हजारों हजार सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्पंदित कर गया है, जो देश  दुनिय

कोई क्यों बहाए एशियाड के लिए पसीना

चित्र
पिंकी प्रमाणिक याद हैं आपको? पश्चिम बंगाल की एथलीट पिंकी जिसने 2006 के दोहा एशियाड में 4 गुणा 100 रिले टीम में भारत को स्वर्ण पदक दिलाया था। अफसोस कि ये पिंकी अब इस नाते से अपनी पहचान नहीं रखती। वे उस आरोप से पहचानी जाती हैं जिसे उनकी साथी अनामिका आचार्य ने लगाया था। अनामिका ने कहा था कि पिंकी स्त्री नहीं पुरुष हैं और उन्होंने उसके साथ दुष्कर्म किया। जून 2012 में लगे आरोप के बाद पिंकी गिरफ्तार हो गईं। उन्हें लिंग परीक्षण के लिए एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल ले जाया जाता रहा। मर्द पुलिस कभी उनके कंधों पर हाथ धरती तो कभी उन्हें तंज के साथ छेड़ती। और तो और मेडिकल मुआयनों के दौरान उनका एमएमएस भी पुलिस ने लीक कर दिया। एक स्त्री के लिए यह बहुत ही भयावह अनुभव रहा होगा। बहरहाल  एक बहुत अच्छी खबर यह है कि बीते सप्ताह कोलकाता उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुब्रत तालुकदार ने पिंकी को यह कहते हुए बाइज्जत बरी कर दिया है कि वे स्त्री हैं और दुष्कर्म के इलजाम का कोई आधार नहीं है।        पिंकी को न्याय पाने में पूरे दो बरस लगे इस बीच यह एशियाई पदक विजेता एथलीट कई त्रासदियों से गुजरीं। जेल में उसे मर्दों क

हिंदी मेरी जान मेरी कोम मेरा मान

चित्र
हिंदी दिवस पर काम करते हुए मेरी कॉम देख ली जाये तो फिर जो लिखा जाता है वही आपकी नज़र  जहां उत्तर पूर्व की बॉक्सर  मेरी कोम पर हिंदी में फिल्म बनकर पूरे देश में उन्हें सम्मान दिला सकती है, जहां प्रधानमंत्री बच्चों की पाठशाला में अंग्रेजी सवालों का जवाब भी हिंदी में देते हों, जहां के दिग्गज खिलाड़ी  (सुनील गावस्कर, राहुल द्रविड़, सौरव गांगुली) जो केवल अंग्रेजी में ही शब्दों की जुगाली किया करते थे, वे भी अब हिंदी में धड़ाधड़ क्रिकेट टिप्पणियां कर रहे हों, वहां हिंदी को लेकर चिंता की क्या बात हो सकती है? हर तरफ हिंदी का ही जलवा तो है। और तो और, पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान से भी खिलाड़ी खूब हिंदी बोलते नजर आ रहे हैं। वसीम अकरम, शोएब अख्तर, रमीज राजा सब हिंदी के ही रथ पर सवार हैं। विज्ञापन दुनिया के बड़े-बड़े कॉपी राइटर इन दिनों हिंदी में पंच लाइन ढूंढते फिर रहे हैं।            पंच की बात चली है तो फिल्म मेरी कोम के जरिए एेसा कथा सत्य बाहर आया है कि हम सब उन्हें और भी जानने के लिए उत्सुक हो गए हैं, जिनके शब्दकोष में डर नाम का शब्द ही नहीं। अपनी ख्वाहिश के लिए जो पूरे समय पूरी बहादुरी के साथ

आधे घंटे का आसमां

चित्र
ये आधे घंटे का आसमां  कोई जादुई करिश्मा-सा था  एक ऐसा रंगमंच  जहाँ ज़िन्दगी खेली जा रही थी।   साँझ के इस अनुपम टुकड़े से  आँखें तब तक जुडी रहीं  जब तक वहां रौशनी मौजूद रही  आखिरी कतरे तक  काले बादलों के बीच ।   कभी के अस्त हो चुके सूरज से  सुनहरी रेखाएं चमकीले बिंदु  एक विराट खेल  रच रहे थे  ऐसा खेल जो कह रहा था रोशन दिल ही शिनाख्त है  ज़िन्दगी की।   ज्यों ही आसमां गहराया  रेखाओं  और बिन्दुओं  की  लय-ताल टूटी  निगाह भी छूटी  हाँ केवल और केवल  रौशनी ही शिनाख़्त  है ज़िन्दगी की  आज के दिन यही पाठ  पढ़ाया कुदरत ने 

लव जी हद

चित्र
लव जी हद, सिंधी भाषा में  इसके मायने हुए प्रेम की हद तय करना और कुछ लोग इस काम में इन दिनों बढ़ -चढ़कर लगे हुए हैं।  सोमवार की शाम  times now के एंकर अर्णव गोस्वामी ने एक बहस में भाजपा प्रवक्ता से तीन बार पूछा कि 'लव जिहाद'  क्या है फैक्ट या फिक्शन तो उन्होंने तीनों बार बहुत कुछ कहा लेकिन एक बार भी स्पष्ट जवाब नहीं दिया 'लव जिहाद' और 'प्रेम युद्ध' इन दो शब्द युग्मों से इन दिनों  खूब पाला पड़ रहा है। प्रेम, मोहब्बत, लव ये अपने आप में मुकम्मल शब्द हैं इनके साथ जब कुछ और जुड़ता है तो तय मानिए मामला संदिग्ध है। इरफाना पढ़ी-लिखी समझदार लड़की है। लिखने का शौक उन्हें अखबार के कार्यालय तक ले गया। वहीं बेहद काबिल लेखक वसंत से उनकी मुलाकात हुई। मुलाकातें  क्या होती दुनिया के तमाम मुद्दों पर दो व्यक्ति विचारों की एेसी रेल बनाते कि वक्त का पता ही नहींं चलता। दोनों को लगा कि हम साथ रहने के लिए ही बने हैं। वसंत ने कहा न तुम्हें अपना धर्म बदलने की जरूरत है, न मुझे। क्या हम शादी कर सकते हैं? लड़की बोली ये तो मुश्किल है। काज़ी दो मुसलमान का निकाह कराते हैं और पंडित दो हिंदुओं

केवल पूछने से काम नहीं चलेगा

चित्र
बेशक, लाल किले की प्राचीर से दिया गया वह भाषण बिना पढ़े, बिना अटके, बिना बुलेट प्रुफ के धाराप्रवाह दिया गया था। बंधेज का लाल-हरा साफा इस भाषण को अतिरिक्त गरिमा प्रदान कर रहा था। जोधपुर के त्रिपोलिया बाजार से ऐसे छह साफे मंगवाए गए थे जिनमें से एक को चुना गया। साथ ही एक कलाकार भी दिल्ली भेजा गया जो साफा बांधने की कला में माहिर था। साफे से जहां राजस्थान का गौरव जगजाहिर था, वहीं राजस्थान का प्रतिनिधित्व सरकार में ना के बराबर होना भी एक बड़ा सवाल। खैर, प्रधानमंत्री के इस भाषण को स्तंभकार  शोभा डे   ने सिंघम की दहाड़ का नाम दिया, जिसमें सब कुछ हिन्दी फिल्मों की तरह लाउड-सा था। संवाद, एक्शन, प्रेम सभी कुछ जरूरत से ज्यादा। किसी ने कहा लगातार बढ़ते दुष्कर्मों के सन्दर्भ में यह राजनैतिक प्रतिबद्धता  का मामला न होकर   सोशल इंजीनियरिंग का पार्ट था, जिसमें प्रधानमंत्री समाज के बदलने की बात कर रहे थे, जबकि अपने चुनावी भाषणों में उन्होंने देश के तमाम हालात के लिए सरकार को जिम्मेदार ठहराया था। उन्होंने दावा किया था कि एक सशक्त सरकार और व्यक्ति के आते ही सबकुछ बदल जाएगा। प्रधान सेवक (उन्होंने खुद को यह

क्यों दें मेहनत की कमाई इस निकम्मे सिस्टम को

चित्र
पंद्रह अगस्त को हमारे आजाद देश के  67 साल पूरे होने वाले हैं। हम सब इस आजादी का खूब एहतराम करते हैं, अपने पुरखों के त्याग को याद करते हैं, अपने शहीदों के आगे सिर झुकाते हैं, लेकिन एक सवाल अकसर जेहन में उठता है कि क्या ऐसे ही भारत के लिए जिंदा लोगों ने अपना सब-कुछ कुर्बान किया था? क्या हम सही दिशा में हैं? जवाब तो नहीं आता, लेकिन एक छटपटाहट सामने आती है। यह अंतहीन बेचैनी कभी-कभी गुस्से और दुख को ऐसा पसरा देती है कि लगता है कि ये वो सुबह तो नहीं। मेरे शहर जयपुर    में  बीते एक पखवाड़े की तीन घटनाएं आपकी नजर-                 गांधी नगर स्थित पोस्ट ऑफिस में शुक्रवार सुबह साढ़े ग्यारह का वक्त। 'भाई साहब राखी पोस्ट करनी हैं, अजमेर। पहुंच तो जाएगी ना दो दिन में!' मेरा सहज सवाल था। 'सोमवार को पहुंचेगी।'डाक बाबू ने असहज-सा उत्तर दिया 'लेकिन विभाग तो दावा करता है कि स्पीड पोस्ट चौबीस घंटे में पहुंचाता है, फिर यह तो एक ही स्टेट का मामला है।' मैंने कहा। 'आप तो कुरिअर कर दो मैडम वो ही अच्छा  है।'डाककर्मी ने लिफाफा लौटाते हुए कहा। वाकई प्राइवेट कुरिअर से राखी अगले ही

नग्नता अपराध नहीं

चित्र
       क्या  एक निर्वस्त्र तस्वीर इस कदर विवादित और तकलीफदेह हो सकती है? नागपुर की एक अदालत में आमिर के पोस्टर के खिलाफ याचिका दायर हो गई है। याचिका में आरोप लगाया गया है कि पोस्टर अश्लील है और यौन हिंसा को बढ़ावा देता है। एक बिना कपड़ों की देह पर €क्या  शोर मचाना। देह नहीं उसका रवैया, आंखें, बॉडी लैंग्वेज तय करती हैं अपराध की तीव्रता। लखनऊ के मोहनलाल गंज क्षेत्र में सामूहिक दुष्कर्म की शिकार दो बच्चों की मां कृष्णा की नग्न देह में भला क्या  अपराध छिपा हो सकता है? वह तो फेंक दी गई थी, दुष्कर्म के बाद। अपराध का भाव जिनके भीतर था उन्होंने एक कपड़ा भी नहीं डाला उस देह पर।       आमिर खान की फिल्म  पीके के पोस्टर के बहाने हमारी उस मानसिकता की पोल खुल गई है, जो नग्नता को देखकर हायतौबा मचाने लगती है। अपराध वो है, जब एक स्त्री को निर्वस्त्र कर गांव में घुमाया जाता है, एक खौफ पैदा किया जाता है कि संभल जाओ अगर जो मर्यादा लांघी, हम तु्हारा भी यही हश्र करेंगे। हम उघाड़ेपन को लेकर बेहद अजीब समाज हैं। छोटे कपड़े पहने विदेशी सैलानियों का हम सड़क पर चलना मुश्किल कर देते हैं। अपराधबोध इतना ज़्यादा है

बिना विचारे लक्ष्मण

चित्र
फिजा में भीनी महक है। त्योहारों की मिठास और जीवन का उल्लास घुला हुआ है। मनभावन सावन में तरुणी का सिंजारा आ चुका  है। लहरिये का रंग खूब सुन्दर है कावडि़यों के जयकारों की भी गूंज   है। ईद की सिवइयों का जायका भी होठों पर है, जो पूरे तीस दिन के रोजे और इबादत के बाद नसीब हुआ है। बारिश की बूंदों ने हर शै को बरकत भर दी है। ये बूंदे हैं ही इतनी पवित्र कि रूखे मन और सूखे ठूंठ में भी प्राण फूंकने का माद्दा रखती है। एेसे माहौल में कोई बेतुकी बात नहीं होनी चाहिए खासकर इन मीडिया चैनलों की तरह तो बिल्कुल नहीं जो केवल चीखने-चिल्लाने को बहस का नाम दे बैठे हैं। बहस में हर पक्ष को सुना जाता है । धैर्य और समन्वय का परिचय देते हुए सुंदर नतीजे पर पहुंचा जा सकता है, लेकिन शायद सुंदर नतीजों को टीआरपी नहीं मिलती तभी जी टीवी पर एक वक्ता दूसरे को   'टुच्चा' संबोधित कर रहे थे। वे कह रहे थे आप टुच्चे हैं। चले जाइए इस देश से। ये एंकर महाशय जो अर्णव गोस्वामी की हिंदी नकल हैं, उन्होंने पहले तो पूरा वार्तालाप हो जाने दिया फिर कह दिया कि चैनल इस तरह की शब्दावली से इत्तेफाक नहीं रखता।            जिन दो मुद्

चीर हरने पर हुई थी महाभारत

चित्र
द्वापर युग में भी कृष्णा (द्रौपदी) का सम्मान दांव पर लगा था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य,सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा ।  लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील में सत्रह जुलाई को घटी यह घटना दिल्ली की निर्भया से भी जघन्य और भयावह मालूम होती है। सोलह दिसंबर 2012  को छह दरिंदे जब निर्भया को दुष्कर्म के बाद सर्दी की रात में फेंक गए थे तब उसकी सांस बाकी थी। उसके साथ उसका मित्र था, जो उन दरिंदों को पहचानता था, निर्भया के नग्न शरीर को ढंक दिया गया था और किसी ने उसकी निर्वस्त्र तस्वीर चारों ओर नहीं फैलाई थी। लखनऊ की बत्तीस  वर्षीय स्वाभिमानी, गर्विता (कृष्णा) अपने साथ हुए इस भयावह हादसे को बताने के लिए जीवित नहीं है । उसकी तस्वीरों को वाट्स एप पर वायरल की तरह फैलाने के अपराध में उत्तरप्रदेश सरकार ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसलिए नहीं कि उन्होंने जांच में कोई कोत

माहौल में ठंडक बातों में उमस

चित्र
shobha dey and her daughter...          image mahesh acharya jaipur women... image  rakesh joshi जयपुर में शनिवार की वह दोपहर उमस से भरी हुई थी लेकिन एक सुंदर होटल का एक सुंदर हिस्सा महिला अतिथियों से गुलजार था। माहौल में कोई भारीपन नहीं था, बल्कि इंतजार था लेखिका शोभा डे का। इंतजार खत्म हुआ, शोभा डे अपनी बेटी के साथ दाखिल हुईं। इस स्वागत के बारे में शोभा ने बाद में खुद ही कहा कि मैं दुनियाभर में घूमी हूं, लेकिन एेसा शानदार स्वागत मेरा कहींं नहीं हुआ। वैसे यदि पता न हो कि यहां शोभा डे एक व्याख्यान देने आई हैं, जिसका विषय बैंड-बाजा और कन्फ्यूजन है, तो यही लगता है कि आप किसी बॉलीवुड की अवॉर्ड सैरेमनी नाइट में बैठे हैं  और सामने से अभी कोई साड़ी के फॉल सा दिल मैच किया रे ... गाते हुए धमक जाएगा। बहरहाल, सुरभि माहेश्वरी और फिक्की फ्लो की जयपुर चैप्टर की अध्यक्ष अपरा कुच्छल ने प्रभावी एंकरिंग के साथ शोभा डे को मौजूद अतिथियों से रू-ब-रू कराया। दरअसल बैंड-बाजा-कन्फ्यूजन विषय से ही स्पष्ट है कि भारत सदी के नहीं, बल्कि सदियों के भीषण बदलाव से गुजर रहा है। शादी की पारंपरिक मान्यताएं नए

तनु शर्मा के हक़ में

बाईस जून 2014 से पहले तनु शर्मा इंडिया टीवी में एंकर थीं। इस दिन उन्होंने चैनल के दफ्तर के आगे खुदकुशी करने की कोशिश की। वे चूहे मारने की दवा को पी गईं थी लेकिन तुरंत चिकित्सा मिल जाने से बचा ली गईं। तनु ने एेसा करने से पहले चैनल के दो वरिष्ठों (जिनमें एक महिला हैं) के बारे में अपने फेसबुक स्टेटस पर लिखा कि बहुत मजबूत हूं मैं, सारी जिंदगी मेहनत की, स्ट्रगल किया, हर परेशानी से पार पाकर यहां तक पहुंची। चैनल ने मेरे साथ जो किया वो भयानक सपने से कम नहीं। मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी। अफसोस रहेगा मरने के बाद भी कि मैंने यह चैनल जॉइन किया और एेसे लोगों के साथ काम किया, जो विश्वासघात करते हैं, षड्यंत्र करते हैं। मैं बहादुर हो होकर थक चुकी हूं। बाय। तनु का कहना है कि सीनियर एडिटर्स  हमेशा जलील करते रहे। उनके कपडे़, हेअर स्टाइल पर तो टिप्पणियाँ होती ही थी, यह भी कहा जाता कि  आप बिल्कुल भी ग्लैमरस नहीं। आपकी आवाज भी ठीक नहीं, जबकि मैं कई कार्यक्रमों में अपनी आवाज दे रही थी। वे कहती हैं, अगर आवाज इतनी ही खराब थी तो मुझे वॉइस ओवर के लिए €यों लिया जाता? तनु का आरोप है कि उससे उ्मीद की जाती थी कि व

अपराध की जात बताओ भैया

चित्र
पिछले सप्ताह खुशबू की कवर स्टोरी गायत्री मांगे इंसाफ (http://dailynewsnetwork.epapr.in/290314/khushboo/18-06-2014#page/1/1 ) पर पाठको की खूब प्रतिक्रियाएं मिलीं। ज्यादातर गायत्री के हालात पर दुखी थे तो कुछ का यह भी मानना था कि ये सांसी जाति तो यूं भी आजीविका के लिए शराब और देह व्यापार के अपराध में लिप्त होती है। ये तो पुलिस रिकॉर्ड में भी ‘जरायम पेशा ’ के नाम से दर्ज होते हैं। जरायम फारसी भाषा का शब्द है जिसके मायने अपराध चोरी-डकैती को पेशा बनाने वाली बिरा दरी से है। अंग्रेजों के शासनकाल में एेसी कई जातियों को जरायम पेशा समूह में रखा गया था। उनका मानना था कि इन जातियों के समूह के समूह अपराधिक गतिविधियों में लिप्त हैं और यही उनका पेशा है और इनके साथ कोई ढील नहीं बरती जाए।अंग्रेजों से आजाद हुए देश को 67 बरस हो चले हैं लेकिन हमारी पुलिस अब भी इस नजरिए से आजाद नहीं हो पाई है। पुलिस ऐसा ही मानती है और सरकार व समाज ने कभी इस दायित्व को नहीं समझा कि आखिर कब तक हम इन्हें यूंही संबोधित करते रहेंगे और एेसा ही बनाए रखेंगे। इन्हें मुख्यधारा में लाने के

और कितना तपोगे थार

चित्र
  शून्य से पचास  डिग्री के बीच झूलते थार में इन दिनों मामला एकदम दूसरे छोर पर है।  जयपुर भी पचास को छूकर अब भारी उमस की चपेट में है  लेकिन थार की जुबां  उफ़ जैसे शब्दों के लिए नहीं है । रंगीलो राजस्थान का कोई रंग फीका नहीं है। गर्मी से थर्राते थार का मानस जाने कैसे कूल बना रहता है लेकिन तुम और कितना तपोगे थार   सोमवार की  जेठ दोपहरी इस लिहाज से बहुत शानदार थी कि  चलती सड़क के  दोनों ओर से कुछ सेवाभावी युवा हाथ में शरबत और नीबू पानी लेकर आ खड़े हुए। तपती गर्मी में नीबू पानी एक ही सांस में भीतर उतर गया। इस राहत के  भीतर जाते ही एक दुआ-सी बाहर आई।  वाकई जयपुर में श्याम नगर से सिविल लाइंस तक  इन छोटे-छोटे तंबूओं से उस दिन सुकून और राहत बांटी जा रही थी । यह निर्जला एकादशी का  दिन था। माना जाता है की इस दिन सूखे कंठों  को  शीतल जल, शिकंजी  शरबत पिलाकर पुण्य अर्जित किया जाता है। कितना सुन्दर फलसफा कि  राहत पहुंचाओ पुण्य कमाओ। निर्जला एकादशी का  संदर्भ जानने के  लिए वैद्य हरिमोहन शर्मा जी को  फोन से दस्तक  दी। वैद्य जी ने बताया कई  कि संदर्भ महाभारत से जुड़ता है। पांडवों में भीम को  सर्व

टोपी तिलक सब लीनी

टोपी हो या तिलक  इसे  ना कहने वालों के  लिए एक  ही खयाल सामने आता है कि  ये या तो हिंदुस्तान की तहजीब से वाकिफ नहीं या फिर अपने पुरखों को नहीं मानते। ये उन लोगों का  अपमान है जो अपने मजहब का  पालन करते हुए भी सर पर हाथ रखकर तिलक  स्वीकार करते हैं, टोपी पहनते हैं, बिंदी धारण करते हैं। हमारी एक  साथी थीं । अभी दूसरे शहर हैं । भरापूरा कुनबा था उनका । दफ्तर बिंदी लगाकर आती थीं।   कभी किसी ने एतराज नहीं किया। कई साहित्यकार, लेखक , कलाकार स्वागत में तिलक स्वीकार करते हैं। दीप प्रज्ज्वलित   करते हैं। मूर्तिपूजक न होने के बावजूद ई श्वर की मूर्तियां हाथ जोड़कर ग्रहण करते हैं। तो क्या वे धर्मद्रोही हो गए, क्या ऐसा करने से इनकी आस्था घट गई या वे उस मजहब के नहीं रहे, जहां वे पैदा हुए हैं। बनारस के  गंगा घाट पर बने मंदिर के  अहाते में बिस्मिल्लाह खां साहब का शहनाई वादन तो जैसे  कुफ़्र   (पाप) हो गया। अस्वीकार एक  तरह की  फिरकापरस्ती ही है फिर चाहे वह किसी भी ओर से हो। यह अमीर खुसरो, तुलसी, गुरुनानक की  रवायत का अपमान है। अमीर खुसरो ने लिखा है अपनी छवि बनाई के  मैं पी के पास गई ज

देह की मंडी में बिक गयी लक्ष्मी

चित्र
जयपुर में गुरुवार की  वह दोपहर काफी अलग थी। संतरी लिबास में खिली हुई महिलाओं का यूं मिलना अक्सर नहीं ही होता था। वे सब एक  फिल्म देखने के  लिए आमंत्रित की  गई थीं। प्रवीणलता संस्थान यह फिल्म इन महिलाओं को  दिखाने की  ख्वाहिश रखता था, जो काम-काजी हैं, ऊंचे पदों पर हैं और जो दृश्य बदलने की  ताकत रखती हैं। लक्ष्मी यही नाम था फिल्म का । फिल्म के  शुरू होने से पहले जो जुबां चहक  रही थीं , चेहरे दमक  रहे थे, वे फिल्म शुरू होते-होते खामोश और मायूस होते गए। सन्नाटा यकायक  कभी सिसकियों में तो कभी कराह में बदल उठता था। घटता पर्दे पर था टीस दर्शक के भीतर उठती थी।   मानव तस्करी से जुड़ी है कथा लक्ष्मी एक चौदह साल की लड़की  है। बेहद खूबसूरत और प्यारी जिसे उसका  पिता तीस हजार रुपए में बेच देता है। कसाईनुमा चिन्ना इन लड़कियों को  भेड़-बकरियों की  तरह भरकर देह की  मंडियों तक  पहुंचाता है। रेड्डी सबसे छोटी लक्ष्मी को  यह कहकर चुन लेता है कि  यह तो सबसे छोटी है फिर उसी लड़की  को घर में रखकर उसके  साथ दुष्कर्म करता है। जबरदस्ती के  बाद पानी में घुलता रक्त सिनेमा हॉल में मौजूद कई यु