बिना विचारे लक्ष्मण

फिजा में भीनी महक है। त्योहारों की मिठास और जीवन का उल्लास घुला हुआ है। मनभावन सावन में तरुणी का सिंजारा आ चुका है। लहरिये का रंग खूब सुन्दर है कावडि़यों के जयकारों की भी गूंज है। ईद की सिवइयों का जायका भी होठों पर है, जो पूरे तीस दिन के रोजे और इबादत के बाद नसीब हुआ है। बारिश की बूंदों ने हर शै को बरकत भर दी है। ये बूंदे हैं ही इतनी पवित्र कि रूखे मन और सूखे ठूंठ में भी प्राण फूंकने का माद्दा रखती है। एेसे माहौल में कोई बेतुकी बात नहीं होनी चाहिए खासकर इन मीडिया चैनलों की तरह तो बिल्कुल नहीं जो केवल चीखने-चिल्लाने को बहस का नाम दे बैठे हैं। बहस में हर पक्ष को सुना जाता है । धैर्य और समन्वय का परिचय देते हुए सुंदर नतीजे पर पहुंचा जा सकता है, लेकिन शायद सुंदर नतीजों को टीआरपी नहीं मिलती तभी जी टीवी पर एक वक्ता दूसरे को 'टुच्चा' संबोधित कर रहे थे। वे कह रहे थे आप टुच्चे हैं। चले जाइए इस देश से। ये एंकर महाशय जो अर्णव गोस्वामी की हिंदी नकल हैं, उन्होंने पहले तो पूरा वार्तालाप हो जाने दिया फिर कह दिया कि चैनल इस तरह की शब्दावली से इत्तेफाक नहीं रखता।

शिद्दत से महसूस होता है कि अभी हमें विकास की बात नहीं करनी चाहिए अभी तो जाति, धर्म, लिंग के झगड़ों से ही नहीं उबरे हैं। विकास को क्यों जबरदस्ती गले लगाने पर तुल गए हैं। ये विकास भी एेसा नटखट बालक है कि जहां ये सब बातें हो जाती हैं, उछलकर दूर भाग जाता है। शिवसेना के सांसद ने बिना विचारे केटर्रर के मुंह में रोटी ठूंस दी। वह रोजे से था। रोजे का इस कदर एहतराम है कि रोजेदार के सामने पानी पीना भी गुनाह है। हम सब अपने दफ्तरों में यह गुनाह आए दिन करते हैं। कभी यह जानने की जहमत नहीं उठाते कि एक माह के रोजों में उसकी समय-सारिणी कैसे बदलती है। दस्तूर के चलते सिवइयों का जिक्र जरूर गाहे-बगाहे कर बैठते हैं। हम नहीं झांकना चाहते उसकी दुनिया में। इसके विपरीत कुछ वरिष्ठ होते हैं, जो ध्यान रखते हैं कि अफ्तार का समय है और इस वक्त यदि वह काम की मसरूफियत में उलझा हुआ है तो अफ्तार कराना अपना फर्ज मानते हैं। बहरहाल कहा जा रहा है कि संसद राजन विचार को मालूम नहीं था कि कर्मचारी का रोज़ा है जो भी हो यह व्यवहार एक सत्ता के मद में डूबे एक सांसद का था। विचार पर पहले ही पुलिस में आठ मामले विचाराधीन हैं।
सावन के व्रत और रोजों की जुगलबंदी हमें सोचने का मौका देती है लेकिन हम इस वक्त की नब्ज को नहीं पकड़ पाते। हमारे विधायक सांसद सकारात्मक भूमिका से परे मालूम होते हैं। राजन विचारे हो या के लक्ष्मण ये बिना विचारे ही लक्ष्मण रेखा लांघते रहे हैं।
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