चीर हरने पर हुई थी महाभारत
द्वापर युग में भी कृष्णा (द्रौपदी) का सम्मान दांव पर लगा
था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य,सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा
।
लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील में सत्रह जुलाई को घटी यह घटना दिल्ली की निर्भया से भी जघन्य और भयावह मालूम होती है। सोलह दिसंबर 2012 को छह दरिंदे जब निर्भया को दुष्कर्म के बाद सर्दी की
रात में फेंक गए थे तब उसकी सांस बाकी थी। उसके साथ उसका मित्र था, जो उन दरिंदों को पहचानता था, निर्भया के नग्न शरीर को ढंक दिया गया था और किसी ने उसकी निर्वस्त्र तस्वीर चारों ओर नहीं फैलाई थी।
लखनऊ की बत्तीस वर्षीय स्वाभिमानी, गर्विता (कृष्णा) अपने साथ हुए इस भयावह हादसे को बताने के लिए जीवित नहीं है । उसकी तस्वीरों को वाट्स एप पर वायरल की तरह फैलाने के अपराध में उत्तरप्रदेश सरकार ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसलिए नहीं कि उन्होंने जांच में कोई कोताही की थी, बल्कि इसलिए कि हे मूर्खों! अपराध पर परदा डाल देते, €यों उसे पूरी दुनिया में फैलाया और हम पर कार्रवाई करने की मजबूरी आन पड़ी। यह वार कृष्णा (काल्पनिक नाम) की केवल देह पर नहीं था, यह उसके स्वाभिमान को भी कुचलने का प्रयास था। बेहद संघर्षशील इस महिला को सबक सिखाने के लिए रचा गया अपराध था।
एेसे हिंसक Žब्योरे दर्ज करनेमें रूह चलनी हो आती है कि एक महिला के नाजुक अंग पर हथियार से वार किए गए। उसकी मौत शरीर पर किए गए घावों से अत्यधिक र€तस्राव की वजह से हुई। स्कूल के पास बने हैंडपंप पर वह घिसटते हुए पानी की तलाश में पहुंची थी, लेकिन इससे पहले कि पानी की बूंद नसीब होती कृष्णा का दम टूट गया। द्वापर युग में भी कृष्णा (द्रौपदी) का सम्मान दांव पर लगा था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य, सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। अस्मिता के लिए महाभारत रची गयी। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा। यह कृष्णा के साथ कई-कई बार हुआ दुष्कर्म है। सरकार कहानी गढ़ रही है। एक अपराधी को पकड़ लाए हैं। अपराधी खुद भी फर्जी, उसकी पहचान भी फर्जी जिसे पकड़ा है, वह खुद तो रामसेवक यादव है, लेकिन वह राजीव नाम से कृष्णा को फोन करता था। सरकारी नुमांइदी कहतीहैं कि वह हेलमेट लगाए था, इसलिए कृष्णा उसे पहचान नहीं पाई और राजीव समझकर बाइक पर बैठ गई। उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक आरोपी यादव कृष्णा पर बुरी निगाह रखता था और जहां कृष्णा रहती है, वहीं पास ही एक साइट पर सि€योरिटी गार्ड था। पुलिस जिसने पहले सामूहिक दुष्कर्म की बात कही थी, अब रामसेवक को केंद्र में रखकर नई कहानी ले आई है।
खुद्दार कृष्णा, जो अपने पति की मौत के बाद अपनी बेटी और बेटे को पाल रही थी, उसकी हत्या ने इस समाज के उस नजरिए को भी उजागर किया है, जो वह अकेली स्त्री के लिए रखता है। इस नजरिए के
हिसाब से अकेली स्त्री का अपने दम पर बच्चों को पालना एक गैरजरूरी प्रयास है, लेकिन कृष्णा की बारह वर्षीय बेटी बातचीत में बताती है कि वह संस्कारों से पाली जा रही बच्ची है। कृष्णा के पिता शिक्षक हैं, जिनकी
आंखें भी यही कहती हैं कि उनकी बेटी के जीवन में बेहिसाब संघर्ष बिंधा था। पति को किडनी की तकलीफ थी और वह संजय गांधी इंस्टीट्यूट ऑव मेडिकल साइंस में कार्यरत था। कृष्णा अपनी एक किडनी देकर भी उसे नहीं बचा सकी थी । उसके बाद कृष्णा को पति की जगह काम मिला। एक किडनी के साथ दो बच्चों को कृष्णा पूरी ईमानदारी और मेहनत से बड़ा कर रही थी, लेकिन कानून व्यवस्था के लिहाज से बदहाल प्रदेश ने उसकी
देह और मान दोनों को जमींदोज कर दिया।
लखनऊ में कृष्णा, जयपुर में 23 साल की इवेंट मैनेजर रमनजोत(जिसे उसका परिचित लैपटॉपके वायर से गला घोंटकर मार देता है) और बेंगलूरु में छह वर्षीय बच्ची के साथ स्कू ल में हुआ दुष्कर्म। जिन पर यकीन हो, वे ही कातिल बनकर सामने आ रहे हैं। देश के सब प्रदेशों की राजधानियां एक जैसी लग रही हैं। इन सबकी पुलिस एक जैसी है, लेकिन अगर सरकारी प्रतिबद्धता भी एक जैसी होगी तो इस खाज को कोढ़ होने में व€त नहीं लगेगा। सरकारों को धृतराष्ट्र बनने से रुकना चाहिए। धृतराष्ट्र की तो आंखें नहीं थीं, ये आंखें होते हुए भी अंधे बने बैठे हैं। लानत है इन अंधे बयानवीरों पर।
था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य,सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा
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लखनऊ की मोहनलालगंज तहसील में सत्रह जुलाई को घटी यह घटना दिल्ली की निर्भया से भी जघन्य और भयावह मालूम होती है। सोलह दिसंबर 2012 को छह दरिंदे जब निर्भया को दुष्कर्म के बाद सर्दी की
रात में फेंक गए थे तब उसकी सांस बाकी थी। उसके साथ उसका मित्र था, जो उन दरिंदों को पहचानता था, निर्भया के नग्न शरीर को ढंक दिया गया था और किसी ने उसकी निर्वस्त्र तस्वीर चारों ओर नहीं फैलाई थी।
लखनऊ की बत्तीस वर्षीय स्वाभिमानी, गर्विता (कृष्णा) अपने साथ हुए इस भयावह हादसे को बताने के लिए जीवित नहीं है । उसकी तस्वीरों को वाट्स एप पर वायरल की तरह फैलाने के अपराध में उत्तरप्रदेश सरकार ने छह पुलिसकर्मियों को निलंबित कर दिया। इसलिए नहीं कि उन्होंने जांच में कोई कोताही की थी, बल्कि इसलिए कि हे मूर्खों! अपराध पर परदा डाल देते, €यों उसे पूरी दुनिया में फैलाया और हम पर कार्रवाई करने की मजबूरी आन पड़ी। यह वार कृष्णा (काल्पनिक नाम) की केवल देह पर नहीं था, यह उसके स्वाभिमान को भी कुचलने का प्रयास था। बेहद संघर्षशील इस महिला को सबक सिखाने के लिए रचा गया अपराध था।
एेसे हिंसक Žब्योरे दर्ज करनेमें रूह चलनी हो आती है कि एक महिला के नाजुक अंग पर हथियार से वार किए गए। उसकी मौत शरीर पर किए गए घावों से अत्यधिक र€तस्राव की वजह से हुई। स्कूल के पास बने हैंडपंप पर वह घिसटते हुए पानी की तलाश में पहुंची थी, लेकिन इससे पहले कि पानी की बूंद नसीब होती कृष्णा का दम टूट गया। द्वापर युग में भी कृष्णा (द्रौपदी) का सम्मान दांव पर लगा था। कौरवों ने सरे दरबार कृष्णा का चीरहरण किया, लेकिन वहां उसे बचाने के लिए द्रौपदी के आराध्य, सखा कृष्ण आ गए। दु:शासन के हाथ जवाब दे गए, लेकिन कृष्ण के हाथ से चीर कम नहीं हुआ। अस्मिता के लिए महाभारत रची गयी। यह कलियुग है। यहां कोई कृष्ण नहीं आया। दु:शासन तो कामयाब हुआ ही दरबारियों ने भी तन पर कपड़ा रखना जरूरी नहीं समझा। यह कृष्णा के साथ कई-कई बार हुआ दुष्कर्म है। सरकार कहानी गढ़ रही है। एक अपराधी को पकड़ लाए हैं। अपराधी खुद भी फर्जी, उसकी पहचान भी फर्जी जिसे पकड़ा है, वह खुद तो रामसेवक यादव है, लेकिन वह राजीव नाम से कृष्णा को फोन करता था। सरकारी नुमांइदी कहतीहैं कि वह हेलमेट लगाए था, इसलिए कृष्णा उसे पहचान नहीं पाई और राजीव समझकर बाइक पर बैठ गई। उत्तर प्रदेश पुलिस के मुताबिक आरोपी यादव कृष्णा पर बुरी निगाह रखता था और जहां कृष्णा रहती है, वहीं पास ही एक साइट पर सि€योरिटी गार्ड था। पुलिस जिसने पहले सामूहिक दुष्कर्म की बात कही थी, अब रामसेवक को केंद्र में रखकर नई कहानी ले आई है।
खुद्दार कृष्णा, जो अपने पति की मौत के बाद अपनी बेटी और बेटे को पाल रही थी, उसकी हत्या ने इस समाज के उस नजरिए को भी उजागर किया है, जो वह अकेली स्त्री के लिए रखता है। इस नजरिए के
हिसाब से अकेली स्त्री का अपने दम पर बच्चों को पालना एक गैरजरूरी प्रयास है, लेकिन कृष्णा की बारह वर्षीय बेटी बातचीत में बताती है कि वह संस्कारों से पाली जा रही बच्ची है। कृष्णा के पिता शिक्षक हैं, जिनकी
आंखें भी यही कहती हैं कि उनकी बेटी के जीवन में बेहिसाब संघर्ष बिंधा था। पति को किडनी की तकलीफ थी और वह संजय गांधी इंस्टीट्यूट ऑव मेडिकल साइंस में कार्यरत था। कृष्णा अपनी एक किडनी देकर भी उसे नहीं बचा सकी थी । उसके बाद कृष्णा को पति की जगह काम मिला। एक किडनी के साथ दो बच्चों को कृष्णा पूरी ईमानदारी और मेहनत से बड़ा कर रही थी, लेकिन कानून व्यवस्था के लिहाज से बदहाल प्रदेश ने उसकी
देह और मान दोनों को जमींदोज कर दिया।
लखनऊ में कृष्णा, जयपुर में 23 साल की इवेंट मैनेजर रमनजोत(जिसे उसका परिचित लैपटॉपके वायर से गला घोंटकर मार देता है) और बेंगलूरु में छह वर्षीय बच्ची के साथ स्कू ल में हुआ दुष्कर्म। जिन पर यकीन हो, वे ही कातिल बनकर सामने आ रहे हैं। देश के सब प्रदेशों की राजधानियां एक जैसी लग रही हैं। इन सबकी पुलिस एक जैसी है, लेकिन अगर सरकारी प्रतिबद्धता भी एक जैसी होगी तो इस खाज को कोढ़ होने में व€त नहीं लगेगा। सरकारों को धृतराष्ट्र बनने से रुकना चाहिए। धृतराष्ट्र की तो आंखें नहीं थीं, ये आंखें होते हुए भी अंधे बने बैठे हैं। लानत है इन अंधे बयानवीरों पर।
आखिर कब तक ???
जवाब देंहटाएंकब तक लूटती रहेगी
रोज अस्मत सरे बाज़ार
कब तक यूँ एक बेटी
रोज बेआबरू की जायेगी |
कब तक चुकानी है कीमत
उसको एक लड़की होने की
कब तक एक निर्दोष पर
यूँ अंगुली उठाई जायेगी |
कब तक शोषित होगी नारी
इस सभ्य संकीर्ण समाज में
कब तक उसके अरमानो की
यूँ रोज चिता जलाई जायेगी |
कब तक ..आखिर कब तक ???
सु-मन