माहौल में ठंडक बातों में उमस

shobha dey and her daughter...          image mahesh acharya
jaipur women... image  rakesh joshi

जयपुर में शनिवार की वह दोपहर उमस से भरी हुई थी लेकिन एक सुंदर होटल का एक सुंदर हिस्सा महिला अतिथियों से गुलजार था। माहौल में कोई भारीपन नहीं था, बल्कि इंतजार था लेखिका शोभा डे का। इंतजार खत्म हुआ, शोभा डे अपनी बेटी के साथ दाखिल हुईं। इस स्वागत के बारे में शोभा ने बाद में खुद ही कहा कि मैं दुनियाभर में घूमी हूं, लेकिन एेसा शानदार स्वागत मेरा कहींं नहीं हुआ। वैसे यदि पता न हो कि यहां शोभा डे एक व्याख्यान देने आई हैं, जिसका विषय बैंड-बाजा और कन्फ्यूजन है, तो यही लगता है कि आप किसी बॉलीवुड की अवॉर्ड सैरेमनी नाइट में बैठे हैं  और सामने से अभी कोई साड़ी के फॉल सा दिल मैच किया रे ... गाते हुए धमक जाएगा। बहरहाल, सुरभि माहेश्वरी और फिक्की फ्लो की
जयपुर चैप्टर की अध्यक्ष अपरा कुच्छल ने प्रभावी एंकरिंग के साथ शोभा डे को मौजूद अतिथियों से रू-ब-रू कराया।
दरअसल बैंड-बाजा-कन्फ्यूजन विषय से ही स्पष्ट है कि भारत सदी के नहीं, बल्कि सदियों के भीषण बदलाव से गुजर रहा है। शादी की पारंपरिक मान्यताएं नए सिरे से गढ़ी जा रही हैं, दायरे बढ़ गए हैं, पंख खुल गए हैं। वर्जनाएं टूट रही हैं और वर्जिनिटी कोई बड़ा मुद्दा नहीं रह गया है। उम्मीद थी कि मिस डे विषय पर पहले तो कन्फ्यूजन को सामने रखेंगी और फिर किसी एेसी दिशा की ओर इशारा करेंगी जिससे समाज में व्याप्त इस दुविधा से उबरा जा सके। उन्होंने इंदिरा नूई के हाल ही के इंटरव्यू और इरा त्रिवेदी की किताब इंडिया-फॉलिंग इन लव के साथ बॉलीवुड की फिल्मों का भी जिक्र किया। उनका कहना था कि इंदिरा नूई जब अपनी मां को अपने सीईओ बन जाने की खुशखबरी सुनाना चाहती थीं तो उनकी मां ने कहा जाओ पहले बच्ची के लिए दूध लेकर आओ और अपने सीईओ का ताज गैराज में रखकर आओ। क्या वाकई अगर कोई बेटा मां को एेसी खबर सुनाता तो मां का यही रवैया होता। शायद नहीं। यह सबके लिए एक उत्सव का समय होता। फिर व्याख्यान के अगले हिस्से में ही वे यह भी कहती हैं कि पश्चाताप पुरुष के जीवन में भी होते हैं उन्हें भी चौदह साल बाद  समीक्षा करनी पडे़ तो कई चीजें उनकी भी छूटती हैं, दूर होती हैं।
सारी दुनिया की महिलाओं के दिलों को पेप्सिको सीईओ नूई के इस इंटरव्यू ने अगर छुआ है तो इसलिए कि वे सभी यह मानती हैं कि  वे जहां भी जिस किसी मुकाम पर हैं अपना सौ फीसदी नहींं पा सकतीं। कुछ हासिल करती हैं तो कुछ छूटता है। वे बेहतरीन करना चाहती हैं लेकिन फिर भी कभी उनका काम, तो कभी उनका मां का दायित्व तो कभी पत्नी धर्म प्रभावित होता है। एेसा उनकी जैविक संरचना की वजह से होता है। वे मां बनती हैं  दायित्वों के साथ
। शरीर और मन से बेहद संवेदनशील स्त्री केवल चाहने से एेसी नहीं है। यह खूबी उसे कुदरत ने बख्शी है। वह एेसी ना हो तो सृष्टि के चक्र में बाधा होगी।
कन्फ्यूजन केवल बैंड-बाजे का नहीं बैंड बाजे के बाद काम और परिवार में से किसे प्राथमिकता देनी है उसका भी है। मिस डे ने विश्वास जताया कि सदियों से भारतीय स्त्री समय प्रबंधन को साधती आई है और उसे उसकी प्राथमिकताएं पता हैं। फिक्की फ्लो के जयपुर चैप्टर का मकसद यदि महिला सदस्यों की मौजूदगी में एक कार्यक्रम करवाकर अखबार में कवरेज पाना था तो वह उसमें कामयाब रहा है। लेकिन जिस बडे़ कन्फ्यूजन से महिलाएं इन दिनों रू-ब-रू हैं उसका केई हल कम-आज-कम शोभा भा डे के पास तो नहीं था शायद  यह आर्थिक आजादी की कीमत है जो उसे देनी है।
           सर्वथा अजीबोगरीब जुनून पर नॉवल लिखने वाली और व्याख्यान में हम्पटी शर्मा ...और रांझणा का जिक्र करने वाली मिस डे के उद्बोधन में कमी सी मालूम हुई। हकीकत बहुत अलग है। कई कन्फ्यूजन सर उठा रहे हैं। दिल्ली-बदायूं की घटनाएं और इन पर आने वाले बयान सबकी पोल खोल रहे हैं कि कन्फ्यूजन जख्म बनकर फैल गया है। यह कैंसर से कम नहीं। शोभा डे का यह सतही व्याख्यान दिशा देनेवाला नहीं मालूम हुआ, यह किसी बॉलीवुड मसाला फिल्म -सा होकर ही रह गया था
सितारा होटलों में सितारों के साथ ऐसे कार्यक्रमों से कौन जाग्रत होता है यह  फिक्की से पूछने का मन करता  है मिस डे की एक बात जरूर गौर करने लायक रही  कि अरुण जेटली के इस बजट ने महिला सुरक्षा के लिए 50  करोड़ रुपए रखे हैं और सरदार पटेल की मूर्ति के लिए 200  करोड़। ये आंकड़ा पोल खोलता है कमजोर इच्छाशक्ति की। बॉलीवुड-टॉलीवुड तो हर शुक्रवार को अपना बॉक्स ऑफिस गिनते हैं। इनके कोई सामाजिक सरोकार अब नहीं रहे। जिनके हैं भी तो मिस डे की बातों में वे नहीं ही थे।

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