तनु शर्मा के हक़ में


बाईस जून 2014 से पहले तनु शर्मा इंडिया टीवी में एंकर थीं। इस दिन उन्होंने चैनल के दफ्तर के आगे खुदकुशी करने की कोशिश की। वे चूहे मारने की दवा को पी गईं थी लेकिन तुरंत चिकित्सा मिल जाने से बचा ली गईं। तनु ने एेसा करने से पहले चैनल के दो वरिष्ठों (जिनमें एक महिला हैं) के बारे में अपने फेसबुक
स्टेटस पर लिखा कि बहुत मजबूत हूं मैं, सारी जिंदगी मेहनत की, स्ट्रगल किया, हर परेशानी से पार पाकर यहां तक पहुंची। चैनल ने मेरे साथ जो किया वो भयानक सपने से कम नहीं। मैं आपको कभी माफ नहीं करूंगी। अफसोस रहेगा मरने के बाद भी कि मैंने यह चैनल जॉइन किया और एेसे लोगों के साथ काम किया, जो विश्वासघात करते हैं, षड्यंत्र करते हैं। मैं बहादुर हो होकर थक चुकी हूं। बाय।
तनु का कहना है कि सीनियर एडिटर्स  हमेशा जलील करते रहे। उनके कपडे़, हेअर स्टाइल पर तो टिप्पणियाँ
होती ही थी, यह भी कहा जाता कि  आप बिल्कुल भी ग्लैमरस नहीं। आपकी आवाज भी ठीक नहीं, जबकि
मैं कई कार्यक्रमों में अपनी आवाज दे रही थी। वे कहती हैं, अगर आवाज इतनी ही खराब थी तो मुझे वॉइस
ओवर के लिए €यों लिया जाता? तनु का आरोप है कि उससे उ्मीद की जाती थी कि वह तमाम राजनीतिक
हस्तियों और कार्पोरेट घरानों से मुलाकात कर उनकी अनुचित मांगें भी पूरी करें। प्रकारांतर से यह भी
समझाया गया कि यह कोई नई और बड़ी बात नहीं।
       चैनल का अपना जवाब है कि तनु उनके साथ चार महीने पहले जुड़ी थीं और इस दौरान उनका काम बिल्कुल भी संतोषजनक नहीं था। उनकी वजह से दो बार चैनल को शर्मिंदा होना पड़ा। पहली बार तो वे गंभीर खबर को प्रस्तुत करते हुए हंस रही थीं और दूसरी बार वे स्टूडियो ड्यूटी पर रहते हुए कैफेटेरिया में चली गईं जहां उन्होंने अपना फोन साइलेंट मोड पर छोड़ दिया। चैनल को बे्रकिंग न्यूज ग्राफि€स
के सहारे चलानी पड़ी। दोनों बार उन्हें चेतावनी दी गई। अब जब उन्होंने एसएमएस पर नौकरी छोडऩे के बारे में लिखा तो उसे मंजूर कर लिया गया। गौरतलब है कि चैनल के साथ तीन
महीने का कॉन्ट्रे€ट था।
    इन आरोप-प्रत्यारोप के बीच एक बात साफ है कि ढोल-नगाड़ों के साथ खबरें सुनाने और दिखाने वाले इन चैनलों के संचालक और कर्मचारियों के बीच हालात गरिमापूर्ण और शालीन तो नहीं हैं। चैनल्स में काम कर रहे और छोड़ चुके तमाम मित्रों की राय में स्थितियां सामान्य नहीं हैं। वे कहते हैं अगर अध्ययन किया जाए तो बीच में ही काम छोड़ देने वाली लड़कियों की तादाद बहुत ज्यादा है। कई बार लगता है कि हम न्यूज एंकर नहीं, आइटम गर्ल्स हैं। माना कि प्रेजेंटेबल होना इस मीडिया की जरूरत है, लेकिन जब यह अपेक्षा सीमा पार करने लगे तो सब कुछ असहनीय हो जाता है।
        गौरतलब है कि तनु की खुदकुशी की कोशिश को किसी भी चैनल ने कोई तवज्जो नहीं दी मानो कोई छिपा समझौता हो, जबकि यही चैनल तरुण तेजपाल प्रकरण में खूब सक्रिय रहे थे। इन चैनल्स ने प्रीति-नैस की झड़प को भी खूब दिखाया, लेकिन तनु के लिए बोलने वाला कोई नहीं। यही घटना किसी और संस्थान की होती तो भी €या चुह्रश्वपी का यही समझौता कारगर होता? चकित करता है कि जो मीडिया एेसे ही अन्य मामलों में बढ़-चढ़कर पहल करता है, इस मामले में खुद का बचाव बड़े ही पारंपरिक तरीके से करता है। बीबीसी को चैनल ने कहा कि यह गैर-ज्मिेदाराना पत्रकारिता है। €या एेसा नहीं हो सकता था कि चैनल तनु पर सिलसिलेवार इल्जाम लगाने के बजाय केवल इतना कहता कि हम इस मुद्दे को गंभीरता से लेकर स्वयं इसकी जांच करेंगे। आरोपों के जिस तरह जवाब दिए गए हैं वे वैसे ही हैं जैसे किसी भी आम आरोपी के होते हैं। यहां चैनल नई भूमिका अख्तियार कर सकता था। आईबीएन-7 के मैनेजिंग एडिटर
विनय तिवारी का कहना है कि टीवी न्यूज चैनलों में नेतृत्व की भूमिका निभा रहे लोग उन जगहों को सामंती
विचारधारा के तहत अपनी जागीर की तरह चला रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार पामेला फिलीपोज के मुताबिक बदसलूकी होती है, लेकिन भारत में खुद पत्रकार ही मुद्दे को उठाने से डरते हैं। यही चुह्रश्वपी मीडियाकर्मी और मीडिया कंपनियों के असमान रिश्तों को दर्शाती है। बहरहाल, इस मामले में दोनों पक्षों की ओर से एफआईआर दर्ज है, लेकिन जिनसे उ्मीद की जाती है उन्होंने आपसी सहमति से मुद्दे को सुंदर कालीन के नीचे सरका दिया है।सहमतियों से भरी इस चुप्पी  के बीच कई सवाल सर उठा-उठा कर झांकरहे हैं।
खामोशी के मायने सब खैरियत नहीं है
चेहरे जो मुस्कुरा रहे हैं वे भी खुश नहीं हैं


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